संवत्सर
‘संवत्सर’ यह संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है 'वर्ष' । हिन्दू पंचांग में ‘60 संवत्सर’ होते हैं।भारतीय पंचांग प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक ‘वर्ष’ का एक विशिष्ट नाम होता है, और प्रत्येक नाम का एक विशिष्ठ अर्थ!
जिस तरह प्रत्येक ‘माह’ के नाम नियुक्त हैं (जैसे चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन)
उसी तरह प्रत्येक आने वाले ‘वर्ष’ का एक नाम होता है। 12 माह के 1 काल को ‘संवत्सर’ कहते हैं और हर संवत्सर का एक नाम होता है।संवत्सर तीन प्रकार के होते हैं एवं पाँच भाग होते हैं जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों। भारतीय संवत्सर के पांच भाग हैं- सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास
तीन प्रकार हैं :
सावन संवत्सर - यह 360 दिनों का होता है। संवत्सर का मोटा सा हिसाब इसी से लगाया जाता है।इसमें एक माह की अवधि पूरे 30 दिन की होती है।
चान्द्र संवत्सर - यह 354 दिनों का होता है। अधिकतर माह इसी संवत्सर द्वारा जाने जाते हैं। यदि मास वृद्धि हो तो इसमें तेरह मास अन्यथा सामान्यतया बारह मास होते हैं।इसमें अंग्रेज़ी हिसाब से महीनों का विवरण नहीं होता है बल्कि इसका एक माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक या कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा तक माना जाता है।
सौर संवत्सर - यह 365 दिनों का माना गया है।यह सूर्य के मेष संक्रान्ति से आरंभ होकर मेष संक्रांति तक ही चलता है।
बृहस्पति ग्रह के वर्षों के आधार पर युगों के नाम : सूर्यसिद्धान्त अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20 -20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं।बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभवादि’ साठ संवत्सर 12 युगों में विभक्त हैं जिसमें प्रत्येक युग 5 वर्ष का होता है।
बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय।
प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर (वर्ष) हैं,उनमें से प्रथम का नाम ‘संवत्सर’ है। दूसरा ‘परिवत्सर’, तीसरा ‘इद्वत्सर’, चौथा ‘अनुवत्सर’ और पांचवा ‘युगवत्स’र है।
60 संवत्सरों के नाम तथा क्रम इस प्रकार हैं
(1) प्रभव, (2) विभव, (3) शुक्ल, (4) प्रमोद, (5) प्रजापति, (6) अंगिरा, (7) श्रीमुख,(8) भाव,(9) युवा, (10) धाता, (11) ईश्वर,(12) बहुधान्य, (13) प्रमाथी, (14) विक्रम, (15) विषु, (16) चित्रभानु, (17) स्वभानु, (18) तारण, (19) पार्थिव, (20) व्यय, ( 21 ) सर्वजित्, (22) सर्वधारी, (23) विरोधी, (24) विकृति, (25) खर, (26) नंदन, (27) विजय, (28) जय, (29) मन्मथ, (30) दुर्मुख, ( 31 ) हेमलम्ब, ( 32 ) विलम्ब,(33) विकारी, (34) शर्वरी, (35) प्लव, ( 36 ) शुभकृत्, (37) शोभन, (38) क्रोधी,(39) विश्वावसु, (40) पराभव, (41) प्लवंग, (42) कीलक,(43) सौम्य, (44) साधारण, (45) विरोधकृत्, (46) परिधावी, (47) प्रमादी, (48) आनन्द, (49) राक्षस, (50) नल,(51) पिंगल, ( 52 ) काल, ( 53 ) सिद्धार्थ,(54) रौद्रि, (55) दुर्मति, (56) दुंदुभि, (57) रुधिरोद्गारी, (58) रक्ताक्ष, (59) क्रोधन और (60) अक्षय
वर्ष 2019-20 का नाम विकारी रखा गया, जो एक बीमारी वर्ष बनकर अपने नाम पर खरा उतरा! कोविड की शुरुआत 2019 से हुई।वर्ष 2020-21 का नाम शर्वरी' रखा गया,जिसका अर्थ है अंधेरा और इसने दुनिया को एक अंधेरे चरण में धकेल दिया! ‘प्लावा वर्ष 2021-22 रहा । 'प्लावा' का अर्थ है, "पार करा देने वाला।
वराह संहिता कहती है: यह दुनिया को असहनीय कठिनाइयों के पार ले गया,यानी अंधेरे से प्रकाश की ओर चलने का समय वर्ष 2022-23 का नाम 'शुभकृत' रखा गया है, जिसका अर्थ है कि जो शुभता पैदा करता है।
अब 2023 -24 यानी संवत्सर 2080 का नाम होगा पिंगल, जिसमें कुछ विकास कार्यों में बाधा आ सकतीं है। सावधान रहना होगा।