शरीर को ब्रह्म नगरी (ब्रह्म नगरी) क्यों कहा जाता है?
ब्रह्म को पुरुष या विराट पुरुष कहा जाता है। यह शरीर उसका निवास स्थान है, इसलिए शरीर को ब्रह्म की नगरी कहते हैं। पुरुष शब्द की वुत्पत्ति है पुरि शेते इति पुरुषः', या 'पुरि वसति इति पुरुषः पुर + वस् से पुरुष शब्द बना है। शरीररूपी नगरी में निवास करता है,इसलिए ब्रह्म को पुरुष या परम पुरुष कहते हैं। अथर्ववेद का कथन है कि यह शरीर देवों की नगरी है। इसे अयोध्या नगरी कहते हैं। इसमे 8 चक्र और 9 द्वार हैं। इसमें एक सुनहरी कोश है, वह ज्योतिर्मय है। यह ज्योतिर्मय कोश ही ब्रह्म है, जो इस शरीररूपी अयोध्या में विराजमान है।
अथर्ववेद में इस
में इस शरीररूपी अयोध्या का वर्णन एक दुर्ग के तुल्य किया गया है। इसमें ९ द्वार हैं- दो आँख, दो कान, दो नाक, एक मुख, मलेन्द्रिय और मूत्रेन्द्रिय ।
शरीर में ८ चक्र हैं। ये शक्ति के केन्द्र हैं। अंग्रेजी में इन चक्रों को Plexus (प्लेक्सस, नाडी-गुच्छ) कहते हैं। इन चक्रों या केन्द्रो पर ध्यान केन्द्रित करने से अनेक विभूतियां प्राप्त होती हैं। इन ८ चक्रों का संक्षिप्त विवरण यह है।
१.मूलाधार चक्र (Coccygeal Plexus ) यह गुदा से दो अंगुल ऊपर - है। इसमें ही कुंडलिनी शक्ति का निवास है। साधना के द्वारा कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने पर दिव्य शक्ति एवं अलौकिक प्रतिभा प्राप्त होती है।
२.स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Plexus ) यह मूलाधार चक्र से दो अंगुल - ऊपर पेड़ के समीप है। इस पर ध्यान केन्द्रित करने से संयम और ब्रह्मचर्य की शक्ति बढ़ती है। जिहा पर सरस्वती का निवास होता है।
३.मणिपूर चक्र (Solar Plexus ) इसे नाभिचक्र भी कहते हैं। यह प्राप्त होती है और मन की चंचलता शान्त होती है।
४.अनाहत चक्र (Cardiac Plexus ) इसे हृत् चक्र भी कहते हैं। यह - हृदय के मध्य में हैं। यह जीवात्मा का निवास स्थान माना गया है। इसको हृदय कमल भी कहते हैं। इस पर ध्यान केन्द्रित करने से भक्ति भावना, कवित्व शक्ति और वाक्- सिद्धि जागृत होती है।
५.विशुद्ध चक्र (Carotid Plexus ) यह कंठकूप में है। इस पर ध्यान - केन्द्रित करने से मन शान्त होता है। व्यक्ति महाज्ञानी होता है
६.आज्ञा चक्र (Cerebral Plexus ) यह दोनों ध्रुवों के मध्य में भृकुटी - के अन्दर स्थित है। यह दिव्य दृष्टि का केन्द्र हैं। इसे शिव का तृतीय नेत्र कहते हैं। इस चक्र के खुलने पर अन्य चक्र सरलता से खुल जाते हैं। इस चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है और विविध सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
७.सहस्त्रार चक्र (Cerebellum Plexus ) यह मस्तिष्क में दोनों - कनपटियों से दो-दो इंच अन्दर और कोमल तालु से लगभग दो अंगुल ऊपर है। इसको 'ब्रह्मरन्ध्र' और 'दशम द्वार' भी कहते हैं। यह एक ज्योतिपुंज के रूप में है। सहस्रार चक्र शक्तियों का पुंज है। यहां से सहस्रों शक्ति की धाराएं बहती हैं। यह मस्तिष्क का केन्द्र है। इस पर ध्यान केन्द्रित करने से आत्मिक आनन्द और दिव्य विभूतियां प्राप्त होती लगभग दो अंगुल ऊपर है। इसको 'ब्रह्मरन्ध्र' और 'दशम द्वार' भी कहते हैं। यह एक ज्योतिपुंज के रूप में है। सहस्रार चक्र शक्तियों का पुंज है। यहां से सहस्रों शक्ति की धाराएं बहती हैं। यह मस्तिष्क का केन्द्र है। इस पर ध्यान केन्द्रित करने से आत्मिक आनन्द और दिव्य विभूतियां प्राप्त होती हैं।
८.ललना चक्र यह जिह्वामूल में है। योगशास्त्र में प्रथम सात चक्रों का ही विशेष रूप से वर्णन प्राप्त होता है। ललना चक्र कम प्रसिद्ध है।