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🔏 लेखक : पंकज सनातनी
गणेश चतुर्थी एक ऐसा हिन्दू त्योहार है जिसका हिन्दू समाज साल भर इंतजार करते हैं, इसे विनायक चतुर्थी जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह त्योहार भगवान श्री गणेश के जन्म का प्रतीक है, जिन्हें बुद्धि और विवेक का देवता भी माना जाता है। विनायक चतुर्थी पर लोग गणेश जी की पूजा करते हैं और अपने जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन कई लोग बप्पा की मूर्ति घर लाते हैं और उनके आगमन के उपलक्ष्य में उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
हालाँकि विसर्जन एक प्रचलित शब्द है और अधिकांश भारतीय इसका अर्थ जानते हैं, लेकिन जो नहीं जानते उनके लिए, विसर्जन मूलतः देवताओं की मूर्ति, या यहाँ तक कि किसी चित्र को भी, विसर्जित करना और उन्हें विदाई देना है। जब आप किसी त्योहार जैसे 'गणेश चतुर्थी' के दौरान किसी देवता को घर लाते हैं, तो आपको उन्हें भी विदाई कहना होता है, और यह विदाई विसर्जन के माध्यम से कही जाती है। विसर्जन करने का अर्थ है पूजा का चक्र पूरा करना, और देवता को आपके परिवार के साथ रहने के बाद उनके घर वापस भेजना।
> *☞ यह यथार्थ है कि जितने लोग भी गणेश विसर्जन करते हैं उन्हें यह "लेश मात्र" पता ही नहीं होगा कि यह गणेश विसर्जन क्यों किया जाता है और इसका क्या लाभ है…?*
> *☞ हर साल हजारों मूर्तियाँ नदियों और तालाबों में विसर्जित की जाती हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि हर मूर्ति विसर्जन योग्य नहीं होती…?*
हमारे देश में हिन्दुओं की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि देखा-देखी में एक परंपरा चल पड़ती है जिसके पीछे का मर्म कोई नहीं जानता परंतु भयवश वह चलती रहती है।
आज जिस तरह गणेश जी की प्रतिमा के साथ दुर्गति होता है, उसको देखकर अपने "हिन्दू मतावलंबियों" पर बहुत ही अधिक तरस आता है और दुःख भी होता है कि आखिर हिन्दुओं की बुद्धि के विकास का स्तर कितना नीचे गिरता जा रहा है।
शास्त्रों में एकमात्र "गौ के गोबर" से बने हुए गणेश जी की मूर्ति के "विसर्जन" का ही विधान है। गोबर से निर्मित गणेश एकमात्र प्रतीकात्मक है "माता पार्वती" द्वारा अपने शरीर के उबटन से गणेश जी को उत्पन्न करने का।
चूंकि गाय का गोबर हमारे शास्त्रों में पवित्र माना गया है इसलिए गणेश जी का आह्वाहन गोबर की प्रतिमा बनाकर ही किया जाता है। इसीलिए एक शब्द प्रचलन में चल पड़ा… "गोबर गणेश" इसलिए पूजा, यज्ञ, हवन इत्यादि करते समय गोबर के गणेश का ही विधान है। जिसके उपरांत में नदी या पवित्र सरोवर या जलाशय में प्रवाहित करने का विधान बनाया गया है।
🔆 अब समझते हैं कि गणेश जी के विसर्जन का क्या कारण है…?
"भगवान वेदव्यास" ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को "वेदव्यास" जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा। "वेदव्यास" जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया। जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं।
वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत भी की रचना प्रारम्भ की वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे। निरंतर 10 दिन तक लिखने के पश्चात "अनंत चतुर्दशी" के दिन इसका उपसंहार हुआ।
गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्किलन या उनके शरीर की उष्मा को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके उपरांत उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया, जिसे विसर्जन का नाम दिया गया।
"बाल गंगाधर तिलक जी" ने अच्छे उद्देश्य से यह आरंभ करवाया पर उन्हें यह नहीं पता था कि इसका भविष्य बिगड़ जाएगा।
गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है, परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्गति होती है वह असहनीय बन जाती है।
आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बनाकर लोग अपने ऐश्वर्य, पैसे, दिखावे और समाचार पत्र में नाम छापने से बनाते हैं। जिसके जितने बड़े गणेश जी, उसकी उतनी बड़ी ख्याति, उसके पंडाल में उतने ही बड़े लोग और चढ़ावे का तांता। इसके पश्चात यश और नाम समाचार पत्रों में अलग। सबसे अधिक दुःख तब होता है जब "कस्टमर एट्रैक्ट" करने के लिए लोग डीजे पर फिल्मी गाने के तर्ज(समान) पर धार्मिक गाने बजाते हैं।
इसके उपरांत विसर्जन के दिन बड़े ही अभद्र ढंग से प्रतिमा की दुर्गति की जाती है। "वेदव्यास जी का तो एक कारण था विसर्जन" करने का, परंतु हम लोग क्यों करते हैं यह समझ से परे है।
- क्या हम भी "वेदव्यास" जी के "समकक्ष" हो गए…?
- क्या हमने भी "गणेश जी" से कुछ लिखवाया…?
- क्या हम 'गणेश" जी के "अष्टसात्विक" भाव को शांत करने की "शक्ति" रखते हैं…?
"गोबर गणेश मात्र अंगुष्ठ" के बराबर बनाया जाता है और होना भी चाहिए, इससे बड़ी प्रतिमा या अन्य पदार्थ से बनी प्रतिमा के विसर्जन का शास्त्रों में निषेध है। एक बात और "गणेश जी का विसर्जन बिल्कुल शास्त्रीय नहीं है।" यह मात्र अपने स्वांत सुखाय के लिए बिना इसके पीछे का मर्म, अर्थ और अभिप्राय समझे लोगों ने बना दिया।
एकमात्र हवन, यज्ञ, अग्निहोत्र के समय बनने वाले गोबर गणेश का ही विसर्जन शास्त्रीय विधान के अंतर्गत आता है।
प्लास्टर ऑफ पेरिस से बने, चॉकलेट से बने, केमिकल पेंट से बने गणेश प्रतिमा का विसर्जन एकमात्र अपने भविष्य और उन्नति के विसर्जन का मार्ग है।
इससे केवल प्रकृति के वातावरण, जलाशय, जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र, भूमि, हवा, मृदा इत्यादि को हानि पहुँचता है। इस गणेश विसर्जन से किसी को एक अंश भी लाभ नहीं होने वाला। हाँ "बाजारीकरण" को अवश्य लाभ मिलता है परंतु इससे आत्मिक उन्नति कभी नहीं मिलेगी।
इसीलिए गणेश विसर्जन को रोकना ही एकमात्र शास्त्र अनुरूप है।
माना कि आप अज्ञानतावश डर रहे हैं कि इतनी प्रख्यात परंपरा हम कैसे तोड़ दें तो विसर्जन करिये। किन्तु गोबर के गणेश या मिट्टी के गणेश को बनाकर विसर्जन करिए और उनकी प्रतिमा "०१ अंगुष्ठ" से बड़ी न हो।
🔆 मेरा काम था बताना —
गणेश जी को कभी भी विदा नहीं करना चाहिए क्योंकि विघ्न हरता ही यदि विदा हो गए तो आपके विघ्न कौन हरेगा। क्या हमने कभी सोचा है गणेश प्रतिमा का "विसर्जन" क्यों…?
अधिकतर लोग एक दूसरे की देखा-देखी गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं, और ०३ या ०५ या ०७ या ११ दिन की पूजा के उपरांत उनका विसर्जन भी करते हैं।
आप सभी से निवेदन है कि आप गणपति जी की स्थापना करें पर विसर्जन नही "विसर्जन केवल महाराष्ट्र" में ही होता हैं क्योंकि गणपति जी वहाँ एक अतिथि बनकर गये थे, वहाँ लाल बाग के राजा "कार्तिकेय" ने अपने भाई गणेश जी को अपने यहाँ बुलाया और कुछ दिन वहाँ रहने का आग्रह किया था। जितने दिन गणेश जी वहां रहे उतने दिन "माता लक्ष्मी और उनकी पत्नी रिद्धि व सिद्धि" वहीं रहीं। इनके रहने से लाल बाग "धन धान्य" से परिपूर्ण हो गया, तो कार्तिकेय जी ने उतने दिन का गणेश जी को लालबाग का राजा मानकर सम्मान दिया, तत्पश्चात यही पूजन "गणपति उत्सव" के रूप में मनाया जाने लगा।
अब रही बात देश की अन्य स्थानों की तो गणेश जी "हमारे घर के स्वामी" हैं और घर के स्वामी को कभी विदा नहीं करते। वहीं यदि हम गणपति जी का विसर्जन करते हैं तो उनके साथ 'लक्ष्मी जी व रिद्धि सिद्धि" भी चली जायेगी तो जीवन में बचा ही क्या।
हम बड़े चाह से कहते हैं "गणपति बाप्पा मोरया अगले वर्ष तू शीघ्र आना" इसका अर्थ हमने एक वर्ष के लिए गणेश जी लक्ष्मी जी आदि को "बलपूर्वक" पानी में बहा दिया, तो आप स्वंय सोचे कि आप किस प्रकार से नवरात्रि पूजा करेंगे, किस प्रकार दीपावली पूजन करेंगे और क्या किसी भी शुभ कार्य को करने का अधिकार रखते हैं जब आप ने उन्हें एक वर्ष के लिए भेज दिया।
🔆 इसलिए गणेश जी की स्थापना करें पर विसर्जन कभी न करें —
विनम्र निवेदन, श्री गणेश चतुर्थी पर गणपति जी की पारंपरिक मूर्ति खरीदें। जिसमें गणेश जी के मूल स्वरुप की प्रतिकृति हो, ऋद्धि-सिद्धि विद्यमान हो।
बाहुबली गणेश, सेल्फी लेते हुए स्कूटर चलाते हुए ऑटो चलाते हुए बॉडी बिल्डर बाहुबली सिक्स पैक या अन्य किसी प्रकार के अभद्र स्वरुप में गणेश जी को बिठाने का कोई औचित्य नहीं है।
सनातन धर्म की हँसी उड़ाई जा रही है, अपने धर्म का खिल्ली न उड़ायें। सभी से निवेदन है समझदारी का परिचय देवें और वास्तविक गणेश जी की प्रतिमा का स्थापना करें।
मंत्र : _एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात॥_
सभी इसको अध्ययन और मनन करें, तत्पश्चात स्वयं विचार करें। अंत में बस इतना ही कहूँगा कि आज भारत में अनगिनत कुरीतियां फैली हुई हैं पहले हिन्दू समाज उन्हें दूर करें व शास्त्रों के विधानों का पालन करना सीखे और तत्पश्चात ही स्वयं को हिन्दू राष्ट्र निर्माण के लायक बनाएं। क्योंकि हिन्दू समाज ने आज हर धार्मिक चीजों को मनोरंजन का अड्डा बना चुका है। अतः समय रहते अपने में सुधार करें अन्यथा पुन्न कमाने के चक्कर में नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी।
✍️ साभार
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