क्या आपने कभी अवनीजनश्रय पुलकेशिन के बारे में सुना है?
हमारे इतिहास की किताबों में इस्लामी आक्रमणकारियों की सैन्य श्रेष्ठता का उल्लेख है, लेकिन पुलकेशिराज जैसे हिंदू वीरों की निर्णायक सैन्य विजय का जिक्र नहीं होता, जिन्होंने आठवीं सदी में अरबों को इस तरह पराजित किया कि अगले 300 वर्षों तक वे भारत पर आक्रमण नहीं कर सके।
सिंध पर बिन कासिम के आक्रमण के बाद, राजा दाहिर के पुत्र ने फिर से हिंदू धर्म अपना लिया था। खलीफा अल-हिशाम (724-743) के समय, जुनैद को सिंध वापस जीतने भेजा गया। उसने दाहिर के पोते जयसिंह की हत्या की, सिंध पर पुनः कब्जा किया और भारत के अंदरूनी इलाकों पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा।जुनैद की सेना ने सैंधवों, कच्छेलों, चावोतकों, मौर्यों और गुर्जरों को परास्त किया, लेकिन प्रतिहार राजा नागभट्ट ने उसे ग्वालियर में रोक दिया। नवसारी में जुनैद की सेना का सामना चालुक्य पुलकेशिन के ऐसे भीषण जवाबी हमले से हुआ कि उसे भारत छोड़कर हमेशा के लिए भागना पड़ा।
पुलकेशिन के नवसारी ताम्रपत्र शिलालेख (738 ईस्वी) इस युद्ध की क्रूरता का चित्रण करते हैं, जिसमें ताजिकों (अरबों) को ऐसे मारा गया कि भालों से आंतें बाहर आ गईं और रक्त की नदियाँ बहने लगीं, सिर ऐसे गिर रहे थे जैसे कमल के तने तोड़े जा रहे हों, और बाणों ने घोड़ों के शरीरों को छेद दिया था।पुलकेशिन की जीत इतनी महत्वपूर्ण थी कि चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय ने उन्हें 'दक्षिणापथशार' (दक्षिण का स्तंभ), 'पृथ्वीवल्लभ' (पृथ्वी का प्रिय), 'चालुक्कुलालंकार' (चालुक्यों का आभूषण) तथा 'अनिवर्तकनिवर्तयित्री' (अपराजेय को पराजित करने वाला) जैसे गौरवपूर्ण उपाधियों से सम्मानित किया।
पुलकेशिन ने इस युद्ध में अरबों से वालभी राज्य की भी रक्षा की। वालभी का विश्वप्रसिद्ध बौद्ध विश्वविद्यालय था, साथ ही सैकड़ों जैन और बौद्ध मठ भी थे। हिंदू शैव मैत्रक राजवंश ने सदैव उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की थी।अरब इतिहासकारों ने शर्म के कारण इस हार का उल्लेख नहीं किया। लेकिन, अल-बलाधुरी ने स्पष्ट लिखा है कि, "तमीम (जुनैद के उत्तराधिकारी) के समय में मुस्लिम सेना हिंद की धरती छोड़कर चली गई और फिर लौटकर कभी वापस नहीं आई।"
इस युद्ध के बाद, अरबों को सिंधु नदी के पश्चिमी छोर तक पीछे हटना पड़ा और वहीं अपनी राजधानी बनानी पड़ी। पुलकेशिराज के द्वारा अरबों की इतनी बड़ी हार हुई कि अगले तीन सौ वर्षों तक वे मुल्तान से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर सके।जिस प्रकार यूरोप में चार्ल्स मार्टेल ने पोइटियर्स की लड़ाई जीतकर अरब आक्रमण को रोका था, उसी तरह भारत में अवनीजनश्रय पुलकेशिन ने नवसारी की लड़ाई में जुनैद को पराजित करके देश को अरब आक्रमण से बचाया।
नागभट्ट और पुलकेशिन जैसे नायकों ने भारत को एक महत्वपूर्ण समय पर इस्लामी कब्जे से बचाकर हमारे इतिहास की दिशा बदल दी। यह वो वीर थे जिन्होंने सनातन की रक्षा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे इतिहास की किताबों में हिंदुओं की वीरता और शौर्यपूर्ण विजय का उल्लेख नहीं किया गया। इसके बजाय, हिंदुओं को कमजोर, भ्रमित और निर्णयहीन दिखाने की साजिश की गई।सच्चाई यह है कि हमारे पूर्वजों की सैन्य शक्ति प्रबल थी। पुलकेशिन जैसे वीर योद्धाओं की गाथा हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत होनी चाहिए। ये नायक हमारे गौरवशाली इतिहास के स्वर्णिम प्रतीक हैं।
संदर्भ:
"भारत पर अरब आक्रमण" - आर.सी. मजूमदार
Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol. 4, Pt. 1
"गुजरात के नये राजवंशों का इतिहास" - अमृत पंड्या
"सौराष्ट्र का प्राचीन इतिहास" - डॉ. कृष्णकुमार जे. वीरजी