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🔏 लेखक : पंकज सनातनी
परीक्षा में 33% का महत्व बच्चे से लेकर टीचर सभी को मालूम होता है। अगर किसी के 33% अंक आ जाएँ, तो उसे पास मान लिया जाता है। सदियों से हम सुनते आ रहे हैं कि एग्ज़ाम में बस 33% नंबर लाओ और पास हो जाओ। लेकिन क्या आप ने कभी सोचा कि 33% की यह सीमा क्यों तय की गई…? इसका लॉजिक क्या है…?
बहुत कम लोग जानते हैं कि 33% पासिंग मार्क सिर्फ़ एक संयोग नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा इतिहास और तार्किक कारण है। चलिए इसे एक प्रेरणादायक कहानी के रूप में समझते हैं –
*◾ब्रिटिश भारत का समय (1850–1900)*
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली शुरू हुई। उस समय परीक्षाएँ पहली बार लिखित रूप में आयोजित की गईं। अंग्रेज़ी हुकूमत ने सोचा कि अगर पासिंग मार्क बहुत ऊँचा रखा जाएगा तो अधिकांश विद्यार्थी फेल हो जाएंगे और शिक्षा का प्रसार नहीं हो पाएगा। इसलिए न्यूनतम अंक 33% निर्धारित किए गए ताकि विद्यार्थी कम से कम विषय की मूल बातें समझ सकें, अधिक से अधिक लोग आगे पढ़ने के योग्य बन सकें साथ ही शिक्षा का डर कम हो और लोगों में आत्मविश्वास बढ़े।
*◾गणितीय और तार्किक कारण —*
गणित के दृष्टिकोण से 33% का अर्थ है 1/3 (एक तिहाई) अगर कोई छात्र प्रश्न-पत्र का एक तिहाई भी समझकर सही हल कर लेता है, तो वह विषय का बेसिक नॉलेज प्राप्त कर चुका है। बाकी 2/3 हिस्सा यह दर्शाता है कि अभी और सुधार व सीखने की गुंजाइश है।
*यहाँ से एक सीखने का संतुलन (Balance) तय हुआ –*
- 33% → न्यूनतम योग्यता!
- 66% → सुधार की संभावना!
- 100% → पूर्ण ज्ञान!
*◾आध्यात्मिक दृष्टिकोण —*
भारतीय विद्या में भी 'त्रिगुण' (सत्व, रज, तम) का महत्व है, जो तीन हिस्सों का प्रतीक है। अगर विद्यार्थी ने कम से कम एक गुण (1/3) में महारत हांसिल कर ली, तो उसमें आगे बढ़ने की क्षमता है। यह संख्या न्यूनतम जागरूकता और शेष यात्रा के लिए अवसर का प्रतीक बन गई।
वर्ष 1905 में, गुरुकुल महाविद्यालय में वीरेंद्र नाम का छात्र था। वह बार-बार 40% तक ही अंक ला पाता था।
उसने अपने गुरु से पूछा – "गुरुदेव, पासिंग मार्क 33% ही क्यों रखा गया है…? क्या इससे छात्र की असली योग्यता नहीं छिप जाती…?"
गुरु बोले – "नहीं वत्स, यह संख्या हमें सिखाती है कि पूर्णतः तक पहुँचने से पहले पहला कदम उठाना जरूरी है। अगर कोई 33% हांसिल कर लेता है, तो उसने विषय की जड़ पकड़ ली है। यह शुरुआत है, अंत नहीं।"
वीरेंद्र ने इस बात को समझा और मेहनत जारी रखी। अगले वर्ष उसने 85% अंक प्राप्त किए और शिक्षक बना।
उसने कहा – "33% ने मुझे सिखाया कि असफलता का डर छोड़कर पहला कदम बढ़ाना ही असली सफलता है।"
33% पासिंग मार्क इसलिए है ताकि शिक्षा सबके लिए सुलभ रहे। यह न्यूनतम समझ का प्रमाण है, जो आगे सीखने का अवसर देता है। यह इतिहास, गणित और भारतीय आध्यात्मिकता तीनों से जुड़ा संतुलित निर्णय है।
🎯 निष्कर्ष —
यह पासिंग मार्क आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था में बना हुआ है, लेकिन अब तक किसी ने भी इसे बदलने की कोशिश नहीं की।
✍️ साभार
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