बचपन में जब मैं रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिक देखती थी, तो युद्ध के दृश्य मेरे मन को रोमांच से भर देते थे। रंग-बिरंगे तीर, एक-दूसरे से टकराते हुए… रथों का टूटना, धनुषों का कटना, और पृष्ठभूमि में गूंजती दिव्य चौपाइयाँ – वो सब किसी जादू से कम नहीं लगता था।
तब सोचा करती थी – क्या ये सब केवल कल्पना है? अलंकार मात्र?
पर आज… जब मैंने D4 एयर डिफेंस सिस्टम और ऑपरेशन सिंदूर में ‘तीर से तीर’ यानी मिसाइल से मिसाइल को टकराकर हवा में ही खत्म होते देखा — मेरी आंखें भर आईं… क्योंकि मेरे धर्मग्रंथ अब कल्पना नहीं, साक्षात् सत्य लगने लगे।
आज जब मैं भारत के रक्षा कवच को देखती हूँ, तो मुझे सिंहिका की याद आती है — रामायण की वो राक्षसी जो आकाश मार्ग से जाने वाले प्राणियों की छाया पकड़ती थी। क्या ये समुद्र के नीचे रावण द्वारा स्थापित एयर डिफेंस सिस्टम नहीं था?
और लक्ष्मण रेखा? क्या वह अदृश्य लेज़र बीम प्रोटेक्शन जैसा नहीं था? जो दिखाई नहीं देता था, लेकिन कोई पार करता तो जलकर भस्म हो जाता!
महाभारत में संजय द्वारा धृतराष्ट्र को युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाना — क्या वो किसी आधुनिक लाइव ब्रॉडकास्ट या सैटेलाइट फीड से कम था?
सच कहूं, आश्चर्य इस बात पर नहीं होता कि वो सब तकनीकें थीं...
आश्चर्य इस बात पर होता है कि जब पश्चिम के लोग गुफाओं में रहते थे, तब मेरे पूर्वज मिसाइल डिफेंस सिस्टम और एयर वॉर टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर रहे थे।
अब तो गर्व होता है — हर चौपाई, हर श्लोक, हर रेखा पर।
मेरे धर्मग्रंथ केवल आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी हैं।
और मेरे पूर्वज — केवल ऋषि नहीं, ब्रह्मज्ञानी वैज्ञानिक भी थे।
गर्व है मुझे — अपने सनातन धर्म पर, अपनी संस्कृति पर, और उन ग्रंथों पर जिन्हें आज की वैज्ञानिक आँखें भी झुककर नमन करती हैं।
🚩 जय श्रीराम।
जय सनातन।
जय महाकाल। 🚩