क्या आप जानते हैं कूटनीति काम कब करती है?
तब जब उसके पीछे 'शक्ति' हो।
कृष्ण की कूटनीति इसलिए सफल थी क्योंकि सबको पता था कि कूटनीति विफल भी हुई तो अंत में उनकी उंगली पर जो गोल-गोल घूमेगा, उसके कारण अपनी आँखों को ही अपनी गर्दन से निकलता खून का फुहारा देखना पड़ेगा।
जब तक अंतिम विकल्प के रूप में सर्वनियंत्रण का बल आपके पास नहीं तो कूटनीति में सिर्फ विश्वासघात मिलते हैं।
दुर्योधन ने कृष्ण के साथ क्या किया था और क्या कर सकता था अगर उनके पास शक्ति न होती।
कौटिल्य की कूटनीति के पीछे जब तक सत्ता नहीं थी उन्हें चोटी से खींचकर दरवाजों से बाहर फेंक दिया गया और जब कूटनीति के पीछे चन्द्रगुप्त की शक्ति जुड़ गई, सेल्यूकस को पैरों में झुका दिया।
भेड़िया आपके सामने हाथ जोड़ेगा तो आप उसकी विनम्रता से प्रभावित नहीं होते बल्कि उसकी विनम्रता के पीछे झाँक रही हिंसक संभावना से डरते हैं।
इधर भेड़ जब हाथ जोड़ती है तब भी लोग उसकी विनम्रता नहीं देखते बल्कि उसकी ऊन और माँस की संभावना पर विचार करते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने राफेल को लेकर जो रहस्य बना रखा है और पाकिस्तान की जो दुर्गति बनाई है उससे संसार के सारे भेड़िये बौखला गये हैं कि कल तक की भेड़ आज 'भेड़िया' बनकर हमारे बगल में बैठने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि भारत अचानक से अकेला पड़ गया है।
वास्तविकता यही है कि हम शक्तिशाली तो हुये हैं पर निर्णायक शक्ति अभी दूर है।
अभी हमारे दाँत पैन नहीं हुये,
अभी हमारे नाखून नुकीले नहीं हुये हैं,
अभी हम भीतरी नासूर से मुक्त नहीं हुये हैं,
और जब तक हमारी अर्थव्यवस्था नियंत्रित व समन्वित नहीं हो जाती, जब तक हमारी सेनाएं पूरी तरह आत्मनिर्भर व शक्तिशाली नहीं हो जातीं,और जब तक भारत की इस्लामिक समस्या को मिटा नहीं दिया जाता, तब तक भारत चाहे जितना कूटनीति- कूटनीति खेल ले, उसकी कूटनीति भेड़ की मिमियाहट रहेगी, भेड़िये की गुर्राहट नहीं।
इसलिए मोदी जी की अब तक की विदेश यात्राओं से अर्जित सम्मान व सम्भावनाओं पर पानी फिर गया है। इनसे कोई लाभ विशेष नहीं हुआ, यहां तक कि नेपाल और बांग्लादेश भी आँखें दिखा रहे हैं।
अब तो प्लीज पहले भेड़ से भेड़िया बनो और फिर आपकी गुर्राहट भी सबसे बड़ी कूटनीति होगी।।
जय जय श्री सीताराम!!