मतलब, करोड़ों रुपए की बोरियाँ घर से मिलीं और उन्हें केवल ‘त्यागपत्र’ दे कर, पेंशन का लाभ लेते हुए जीवन बिता देना है। किसी भी अन्य राष्ट्र में इन पर आपराधिक मुकदमा आरंभ कर, जेल में डाला जाता, एवम् इनके द्वारा दिए गए हर निर्णय की दोबारा जाँच होती कि इसने पैसे ले कर तो ‘न्याय’ नहीं किया?
पर ये भारत है, जहाँ सौ-पचास करोड़ घर में मिल भी जाएँ तो आपको चिंता नहीं करनी है, ब्रदर जजेज आपको उचित मार्ग बता देंगे। इस न्याय व्यवस्था से क्या जनता को न्याय मिल सकता है??