देश के दुश्मन रोज़ तुमको युद्ध के लिए ललकारते हैं और तुम रोज़ इस युद्ध से बचने का कोई रास्ता ढूँढ लेते हो... लेकिन क्या तुम इस युद्ध से बच सकते हो ? पत्थरबाज़ बिरादरी तुम्हारा कॉलर खींचकर तुमसे लड़ना चाहती है... अगर तुम नहीं लड़ोगे तो तुम्हारे बच्चों को लड़ना होगा... अगर तुम्हारे बच्चे नहीं लड़ेंगे... तो उनके बच्चों को लड़ना होगा... और अगर दूसरी... तीसरी पीढ़ी भी नहीं लड़ेगी तो भी आज नहीं तो कल... नहीं तो परसों तो देश के दुश्मनों से ये जंग लड़नी ही होगी क्योंकि तुम जंग से कुछ दिन बच सकते हो लेकिन जंग से भाग नहीं सकते हो...
तुम जंग नहीं चाहते लेकिन कोई तुम पर जंग लाद देगा तो तुम्हें लड़ना तो पड़ेगा ही... तो फिर अपने मन और मस्तिष्क को देश के दुश्मनों से युद्ध के लिए तैयार करो - पत्थर का कोई क़सूर नहीं होता है... क़सूर उन हाथों का होता है.. जो पत्थर फेंकते हैं तो ईंट और पत्थरों के मकानों पर गुस्सा मत उतारो... वो हाथ तोड़ दो जो पत्थरों को उठाते हैं । ताकी फिर वो हाथ दोबारा पत्थर उठाने के योग्य ही नहीं रह जायें ।
- जैसे बिच्छू का बच्चा बिच्छू होता है.. साँप का बच्चा साँप होता है... वैसे ही सुअर का बच्चा सुअर ही होता है.. मानवता का संदेश देने का सतयुग तो कबका बीत चुका है । आज के समय के हिसाब से सोचो... दंडित करो... सिर्फ उन्हें ही नहीं जिन्होंने पत्थर उठाए... उन्हें भी जिन्होंने पत्थर उठाने वाले हाथों को ताकत दी है.. और उन्हें भी जो पत्थर फेंकने वाले हाथों से उत्पादित हुए हैं ।
फ़ैक्ट्री में बना हुए सामान के जब एक पीस में डिफेक्ट हो तो तुम बाक़ी को ठीक कैसे मान लेते हो ? कल्पना में मत जिओ.. प्रैक्टिकल हो जाओ... ज़मीन हक़ीक़त को समझो । - पानीपत की दूसरी जंग में जब हेमू की हार हुई तब दिल्ली में हेमू के गोत्र के लाखों लोगों की क्रूरता से नृशंस हत्या कर दी गई थी ।
जबकि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था । शत्रुओं में भय होना चाहिये.. मार्ग कोई भी हो । इस घटना से शिक्षा लो । भीषण दंड देना सीखो। अपनी उदारता का कोष देश के दुश्मनों पर लुटाना बंद कर दो । - देश की लीडरशिप में अब योद्धाओं वाला रक्त होना चाहिए... कूटनीति... लाग लपेट... और टेबल टॉक जैसी बातें करना बंद करो...
जो मृत्यु को जन्नत का दरवाज़ा मानते हैं उन आतंकवादियों/जेहादियों को जन्नत के दरवाज़े तक छोड़कर आना तुम्हारा फर्ज है.. अपने कर्तव्य को समझो ।
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