क्या आप जानते है कि, हमारे देश में तेजी से शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है। शिक्षा की गुणवत्ता सुधार हेतु कार्यरत अधिकारी एवं विभाग गहरी नींद में मस्त है। समाज में जिस तरह तेजी से शिक्षा के व्यवसायीकरण हो रहा है उससे कई गंभीर नुकसान हो रहा है जो समाज और विद्यार्थियों दोनों को प्रभावित करते हैं। आइए कुछ मुख्य बिंदुओं पर नजर डालते हैं…
1. शिक्षा का महंगा होना:
शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, लेकिन जब इसे व्यवसाय बना दिया जाता है, तो यह केवल अमीर वर्ग के लिए सुलभ हो जाती है। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग अच्छी शिक्षा से वंचित रह सकते हैं।
2. गुणवत्ता पर असर:
कई बार निजी संस्थान सिर्फ लाभ कमाने के लिए शिक्षा देते हैं, जिससे शिक्षण की गुणवत्ता गिर सकती है। शिक्षक चयन और पाठ्यक्रम पर ध्यान देने के बजाय संस्थान मुनाफे पर केंद्रित हो जाते हैं।
3. मूल्यों का ह्रास:
व्यवसायीकरण के कारण शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान और चरित्र निर्माण से हटकर केवल डिग्री और नौकरी पाना बन जाता है। इससे नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी की
भावना कम हो सकती है।
4. योग्यता के बजाय पैसे का बोलबाला:
महंगी फीस और डोनेशन सिस्टम के कारण कई बार योग्य लेकिन गरीब विद्यार्थी पीछे रह जाते हैं, जबकि आर्थिक रूप से सक्षम लोग आसानी से दाखिला पा लेते हैं।
5. प्रतिस्पर्धा और तनाव:
निजी संस्थान अपने ब्रांड और रैंकिंग बढ़ाने के लिए विद्यार्थियों पर अधिक दबाव डालते हैं, जिससे मानसिक तनाव और प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है।
6. शिक्षा का बाजारीकरण:
शिक्षा को एक "प्रोडक्ट" बना दिया जाता है, जहां डिग्रियों को बेचा जाता है और विज्ञापनों के जरिए छात्रों को लुभाया जाता है, बजाय इसके कि असली ज्ञान और सीखने पर ध्यान दिया जाए।
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