भारतीय नव-वर्ष का प्रथम दिन चैत्र शुक्ल १ प्रतिपदा
(विक्रम सम्वत् - २०८२)
जब अंग्रेज ईसाई इस देश में प्रवेश किए , तो उन्होंने देखा कि भारत एक महान संस्कृति का उत्तराधिकारी है एवं एक गौरवशाली अतीत का स्वामी है। यदि इसे अपने इतिहास का बोध और अपनी वास्तविक महानता का ज्ञान हो गया , तो इस पर राज करना बहुत ही कठिन हो जाएगा । इसलिए धूर्त अंग्रेजों ने भारत के मर्म पर प्रहार करने का सुनियोजित षड्यंत्र रचा। इस दूरभिसंधि के अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा भारत पर अनेक प्रकार के वैचारिक आक्रमण किए गए। उनमें से एक था - भारत की प्राचीनतम कालगणना को हटाकर अंग्रेजी कालगणना (ईस्वी सन) को लागू करना।
श्री रामचरितमानस और विक्रम संवत्
भारत में मुगलों , अंग्रेजों आदि के आगमन के पहले से ही भारत का हिंदू समाज सामाजिक , धार्मिक और मांगलिक कार्यों के शुभ अवसर पर संवत् और तिथि का प्रयोग करता था और आज भी कर रहा है।
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस की रचना का प्रारंभ संवत् १६३१ से करते हैं। ( उस समय ईस्वी सन भारत में लागू ही नहीं हुआ था। इसका कारण यह था कि उस समय तक भारत में अंग्रेज प्रवेश नहीं किए थे।)
इसे वे रामचरितमानस में स्पष्ट रूप से लिखते भी हैं -
संबत सोरह सै इकतीसा।
करउं कथा हरि पद धरि सीसा।।
श्री हरि के चरणों पर सिर रखकर विक्रम संवत् १६३१ में इस कथा का प्रारंभ करता हूं।
विक्रम संवत् १६३१(1631) को ईस्वी सन में बदलने के लिए संवत् में से ५७(57) वर्ष घटाना पड़ता है , तब वह ईस्वी सन में बदल जाता है। अर्थात् संवत् १६३१ = १६३१ - ५७ = १५७४ (1574) ईस्वी सन्।
इसका अर्थ यह हुआ कि ईस्वी सन प्रारंभ होने के 57 वर्ष पूर्व से विक्रम संवत् भारत में चल रहा था।
ईसाइयों ने संपूर्ण कालखंड को दो भागों में विभाजित किया है। पहला - BC (बी०सी०) , ईसा के जन्म के पहले का कालखंड तथा दूसरा - AD (ए०डी०) ईसा के जन्म के बाद का कालखंड। ईसाइयों का इतिहास ईसा मसीह के जन्म से ही शुरू होता है।
जब हम यह कहते हैं कि आज 28 मार्च 2025 है , तो इसका अर्थ यह हुआ कि ईसा मसीह के जन्म का 2025 वां वर्ष चल रहा है। लेकिन हमारा विक्रम संवत् तो ईसा मसीह के जन्म के 57 वर्ष पूर्व ही प्रारंभ हो चुका था। एक दिन के बाद आनेवाले ३०मार्च को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर विक्रम संवत् २०८२ (2082) हो जाएगा।
आप सभी को यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत की संविधान सभा ने जब भारत संविधान को बनाया था , तो उसकी उद्देश्यिका (Preamble) में यह लिखा था - आज तारीख 26 नवंबर 1949 (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
इसमें स्पष्ट रूप से विक्रम संवत का उल्लेख किया गया है। इसे षड्यंत्रपूर्वक सुनियोजित ढंग से भारतीय संविधान की उद्देश्यिका से उसी प्रकार हटा दिया गया , जिस प्रकार भारतीय संविधान की मूल प्रति में दिए गए भगवान श्री राम , भगवान श्री कृष्ण आदि के चित्रों को भी हटा दिया गया था। केवल अंग्रेजी तारीख 26 नवंबर 1949 को ही रहने दिया गया। यह कार्य कांग्रेस की सरकार द्वारा किया गया था। आज की नई पीढ़ी इस तथ्य को जानती ही नहीं है।
बाद में कैलेंडर रिपोर्ट कमेटी का निर्माण किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक डॉक्टर मेघनाथ साहा ने की थी। रिपोर्ट में अंग्रेजी वर्ष " सन् " को स्वीकार नहीं किया गया। संवत् को स्वीकार किया गया। वर्ष का प्रारंभ जनवरी से नहीं वरन् चैत्र महीने से स्वीकार किया गया। यहां यह बताना अति आवश्यक है कि यह कैलेंडर सभी भारतीयों - हिंदू , मुस्लिम , ईसाई , पारसी , यहूदी सभी के लिए है , जो वर्तमान में भी लागू है।
अंग्रेजियत का दुष्परिणाम यहां भी देखने को मिला। संवत् के रूप में विक्रम संवत् को न अपना कर शक संवत् को अपनाया गया , जो अंग्रेजी वर्ष से 78 वर्ष पीछे चलता है। यही मानसिक गुलामी है। अभी शक संवत् 2024 -78= 1946 है , जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को 1947 शक संवत् हो जाएगा। शक संवत् को स्वीकार करने से अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष की श्रेष्ठता साबित होती है , जबकि विक्रम संवत् को स्वीकार करने से विक्रम संवत् की अंग्रेजी वर्ष से श्रेष्ठता सिद्ध होती है।
प्रशासक समिति की ओर से आपको चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर शुभ नव-वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं।