आखिर ऐसा क्या कारण है, की हजारो मंदिरो की रक्षा एवं जीर्णोद्धार के बाद भी राजा मानसिंह भारतीयों के आदर्श नही है .......
इस बात पर सभी इतिहासकार एकमत है, की राजा मानसिंह के कार्यकाल में समय भारत मे काशी, मथुरा, अयोध्या, बिहार समेत बंगाल तक अनेको हिन्दू मंदिरो का उद्धार हुआ । राजा मानसिंह का काल हिन्दू मंदिरो के उद्धार का स्वर्णयुग माना जाता है।।
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उसके बाद भी भारत की अधिकतर जनता राजा मानसिंह को घृणा की दृष्टि से ही देखती है ।देखिए, कितनी रोचक बात है न् ... एक व्यक्ति जो हजारो लाखो मंदिरो का उद्धारक है , लेकिन भारतीय जनता का प्रिय नही है ।।
भारत की जनता राजा मानसिंह से घृणा क्यो करती है, इस बात को कड़ी जोड़ते हुए समझना होगा ।।
1192 ईस्वी का समय था, जब मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया ।। 1194 ईस्वी तक मुहम्मद गौरी की सेना कुतुबुद्दीन के नेतृत्व में काशी तक पहुंच गई, पूरे काशी को उजाड़ दिया ।। 1199 ईस्वी तक तो बख्तियार खिलजी बिहार के नालंदा तक पहुंच गया ।।1200 ईस्वी तक अफगानों ने भारत मे पूरी तरह पकड़ बना ली ।। यह अफगान शासक तुर्की के खलीफा को अपना सर्वोच्च शासक मानते थे ।। भारत मे समय के साथ अफगान सरदारों में भी फुट पड़ी, और प्रत्येक सरदार ने अपनी अलग अलग सल्तनत बना ली ।।[2]
अफगानों तुर्को की जो नई सल्तनतें बनी थी, वैसे तो यह अनगिनत थी, लेकिन जो प्रमुख शक्तिशाली सल्तनत जो थी, जैसे पश्चिम में गुजरात सल्तनत, उत्तर में मालवा सल्तनत, दिल्ली सल्तनत, पूर्व में बंगाल सल्तनत, दक्षिण में बहमनी सल्तनत ।। और यह सभी सल्तनतें अपने आप मे सुपरपावर थी ।।
गुजरात सल्तनत के पठानों ने 1472 ईस्वी में ही गुजरात का प्रमुख तीर्थ द्वारिकाधीश मंदिर मस्जिद में बदल डाला था । इसी गुजरात सल्तनत के बहादुरशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया, जिसमे रानी कर्णावतीजी को जौहर करना पड़ा ।।
बंगाल सल्तनत तो गुजरात सल्तनत से भी कई 100 गुणा ताकतवर थी ।। 200 आधुनिक तोपे उसके पास थी ।। 2 लाख से ऊपर सैनिक थे ।। यह बंगाल सल्तनत आज के जौनपुर से शुरू होती थी, ओर बिहार, झारखंड बंगाल आदि राज्यो से होते हुए वर्मा तक जाकर इसकी सीमाएं खत्म होती थी ।। इसी बंगाल सल्तनत ने उड़ीसा के मंदिरो तक पर हमला किया था, जिसमे कोर्णाक सूर्य मंदिर तो तोड़ ही डाला, जगन्नाथपुरी मंदिर पर आक्रमण किया गया, लेकिन हिन्दुओ ने यह मंदिर बचा लिया ।। इसी सल्तनत के दम पर शेरशाह राजस्थान तक मे अपना झंडा गाड़ गया ।।
भारत के बीचों बीच दिल्ली में लोदी सल्तनत ।। लोदी भी पठान ।। बहमनियों से तो हिन्दुओ को पेशवाओ के काल तक पड़ना पड़ा, पेशवाओ के काल तक क्यो ?? आजतक हमे बहमनियों से संघर्ष करना ही पड़ रहा है ।। दक्षिण का टीपू सुल्तान तक तुर्की खलीफा की आज्ञा लेकर तख्त पर बैठता था ।।
पूरा भारत पठानों के चंगुल में था ।। इसी समय अकबर की एंट्री हो गयी । आमेर राजपरिवार ने मौका लपका, और अकबर से ही एक के बाद एक अफगान सल्तनतों का नाश करवाया ।।
सबसे पहले मालवा सल्तनत पर धावा बोला, और अफगान मियां बाजबहादुर खान को मारा ।। उसके बाद मालवा में धर्मपरिवर्तन का नंगा नाच एकदम बन्द हो गया । कम से कम अगले 50-100 वर्ष ।।
अकबर की सेना की सहायता से ही श्रीमानसिंह ने गुजरात सल्तनत पर धावा बोला ।। गुजरात सल्तनत तबाह हो गया, एक और इस्लामी सल्तनत का सफाया ।। इसी समय अकबर की सेना की मदद से ही राजा मानसिंह ने बंगाल सल्तनत का सफाया कर दिया ।।
श्रीमानसिंह को जैसे जैसे लगा की भारत भीतर से मजबूत हो रहा है, तो उन्होंने भारत से बाहर निकलकर आक्रमण करने की योजना भी बनाई ।। अफगानिस्तान गए ।। जिस तरह आज कश्मीर मुद्दे पर सारे इस्लामी देश एक है, उस समय राजा मानसिंह के अफगानिस्तान पहुंचने पर भी इस्लामी शक्तियां एक हो गयी ।। उस समय तुरान नाम का एक देश हुआ करता था ।। आज के हिसाब से तुलना करें , तो तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान , तुर्कमेनिस्तान , ईरान, इराक यह देश मिलकर तुरान कहलाते थे ।। तुर्की भी इस गठबंधन का सदश्य था ।।
अकबर का खुद का भाई अकबर के खिलाफ हो गया ।। इन सभी ने मिलकर राजा मानसिंह पर से घोर युद्ध किया । लेकिन सभी पराजित हुए ।। ईरान, अफगानिस्तान, इराक, तुरान , तुर्की इन सबको राजा मानसिंह ने अकेले पराजित किया, उसी विजय का प्रमाण आमेर का पचरंगा ध्वज है ।।
एकमात्र राजा मानसिंह का कार्यकाल ही ऐसा रहा, जब भारतीयों ने तुर्को को टैक्स नही दिया । प्रत्येक मुस्लिम शासक तुर्को को टैक्स देता था, अकबर ने तुर्को को कभी टैक्स तो क्या, भाव तक नही दिया ।। जिस इस्लामी तंत्र को पिछले 800 वर्षों की मेहनत से भारत मे स्थापित किया था, राजा मानसिंह ने उसे अकबर की मूर्खता की सहायता से, कुछ ही वर्षो में ध्वस्त कर दिया ।।
राजा मानसिंह जी के बाद मराठों का उदय हो गया ।। इधर मुगल सत्ता में तुर्की घुसपैठ हो गई । भारत समर्थित दारा शिकोह के स्थान पर तुर्की समर्थित औरंगजेब बैठ गया । औरंगजेब के पतन के बाद पेशवाओ का उदय हुआ । फिर अंग्रेज आएं ।। और उसके बाद आया लोकतंत्र ....
इस लोकतंत्र में भारत के पहले शिक्षामंत्री बने मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ।। यह भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे ।।
भारत का पहला शिक्षामंत्री अफगानिस्तान के उलेमाओं के खानदान से ताल्लुक रखता था ।इस्लाम मे उलेमा होता है, यह बहुत उच्च श्रेणी का ओहदा है । कुरान शरीफ और हदीस की रोशनी में उलेमा लोग मुसलमानो को गाइड करते है । और इनकी शिक्षा का स्थान होता है , मदरसा ।।
जैसा कि हम बता चुके है , भारत का पहला शिक्षा अबुल कलाम आजाद मंत्री उलेमाओं के खानदान से ही था ।। भारत के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम आजाद इस्लाम को इतनी बारीकी से जानते थे, की तजर्मन ए कुरान , और अल-हलाल जैसी पुस्तकें भी लिखी । अलहलाल नाम की इनकी एक पत्रिका भी आती थी ।।
मौलाना अब्दुल कलाम के पिता थे मोहम्मद खैरुद्दीन ....उनके परिवार ने भारतीय स्वतंत्रता के पहले आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का चले गए।वहाँ पर मोहम्मद खॅरूद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई। मोहम्मद खैरूद्दीन 1890 में भारत लौट गए। यहां उन्हें कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली।
इस प्रकार एक कट्टर मुसलमान जो पहला शिक्षा मंत्री बना, जिसे अपना इतिहास ज्ञात था की राजा मानसिंह के कारण उसकी पठान कौम पूरे साम्राज्य का नाश हुआ है, तो भला वह फिर श्रीमानसिंह के नाम को गुमनामी में क्यो न् पहुंचाता ?
स्वयं ही विचार करने वाली बात है ...
राजा मानसिंह एक ऐसे व्यक्तित्व है ..... जिनका पश्चिम के द्वारिकाधीश मंदिर से लेकर, पूर्व में जगन्नाथपुरी मंदिर की रक्षा एवं जीर्णोद्धार में योगदान है ।। जिन्होंने मथुरा, काशी, गया, हरिद्वार जैसे तीर्थो का पुनरुद्धार किया ।। भला उसकी आलोचना में इतने साहित्य क्यो रच दिए गए ??
कारण सिर्फ एक ही था।।
विदेशी कभी नही चाहते थे, की हिन्दू अपनी कूटनीति और बलनीति के प्राप्त हुई विजय का इतिहास पढ़े । वह केवल हमे हमारी हार पढ़वाकर , हमारा मनोबल तोड़कर, हमे गुलाम बनाकर हमपर अत्याचार ही करना चाहते है ।। यही कारण है की वामपंथी और अरबी शिक्षा पद्धति ने कभी भारत के सच्चे सपूतों का इतिहास सामने नही आने दिया ।