विचार कीजिए कि एक ऐसी मानसिकता जिसे 1 वर्ष की हिंदू बच्ची के भी काफिर नजर आती है और उस 1 वर्षीय काफिर को ये हब्शी दरिंदे अपना शिकार बना लेते हैं। क्या ऐसी घटिया मानसिकता से भाईचारा निभान संभव है? क्या ऐसी मानसिकता से भाईचारा निभाने वाले खुद दरिंदे या दरिंदों के पोषक नहीं..?
ये सब सच्चाई समझकर भी यदि हम सतर्क नहीं होते , अपने बच्चों को सतर्क नहीं करते और इन जेहादी दरिंदो को पोषित करते हैं तो दोषी ये नहीं अपितु हम खुद है, हम खुद अपने बच्चों के अपराधी हैं, उनके भविष्य के , उनके जीवन के विनाशक है....