जब तुम पृथ्वीराज चौहान को पढ़ रहे थे तब तुमने ये ही सोचा होगा की यदि तुम उस समय होते तो पृथ्वीराज चौहान का ही साथ देते, न की जयचंद या गोरी का।तुमने यह भी अवश्य सोचा होगा की तुम महाराणा प्रताप के साथ घास की रोटी खा लेते पर उन्हें कभी भी अकेला नहीं छोड़ देते।तुमने यह भी सोचा होगा की तुम अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया के जैसे भागते नहीं बल्कि महारानी लक्ष्मी बाई की ओर से लड़ते और पूरे तन मन धन से लड़ते।
यदि तुम्हारे मन में ऐसी भावना कभी भी आई हो तो आज मोदी के रूप में इतिहास ने तुम्हें वह अवसर दे दिया है।देखो, यह अवसर हाँथ से निकलने ना देना।ऐसा अवसर कदाचित आने वाली पीढ़ी को जब मिले तब तक बहुत देर हो जाय...और हाँ, इस पोस्ट को अपनी वॉल पर डालकर, सभी राष्ट्रभक्तों को भी जगाएं।

