टोयोटा, फोर्ड, बोइंग, वालमार्ट जैसी कम्पनियों ने खुद को DEI पॉलिसी से बाहर करना शुरू कर दिया है। डाइवर्सिटी, इक्वेलिटी, इंक्लूसिविटी के नाम पर अमरीका में हर साल 8 बिलियन डॉलर इन कम्पनियों से लिया जाता है। फिर ये DEI वाले इस पैसे से LGBTQ सरीखे अजेंडे चलाते हैं।
खुद इन कम्पनियों में इनके सेमिनार आयोजित होते हैं। कर्मचारियों को इन सेमिनार को अटेंड कराया जाता है। फिर उन्हें कहा जाता है कि इसका सपोर्ट करो। कई "पढ़े लिखे" तो चंगुल में भी फंस जाते हैं। इसके लिए साथ मे रेसिज्म, ह्यूमन राइट्स, स्लेवरी जैसी बातें भी इन सेमिनारों में चलती हैं।
बेसिकली प्लान ये होता है कि किस तरह एक शोषक वर्ग दिखाया जाए और एक अत्याचारी वर्ग।
तरह तरह के फर्जी इतिहास के पन्नो से लेकर फर्जी डॉक्यूमेंट्री, वीडियो दिखा लोगों के अंदर गिल्ट डाला जाता है। खासकर महिला के अंदर क्योंकि वो आसान शिकार होती है। फिर जब महिला शिकार हो जाती है तो वो मर्द भी शिकार हो जाता है जो महिला का दुमछल्ला अर्थात Simp होता है। इस तरह 75% को ये टारगेट कर अपनी तरफ ले लेते हैं।
बचे 25% मर्दों(कुछ समझदार महिलाएं भी) को कह दिया जाता है कि ये वही ओप्रेसर हैं जिनके पूर्वज या जिनकी जैसी सोच ने कमजोरों पर अत्याचार किया है।
इसी वजह से आप देखेंगे कि एकाएक इनकी बाढ़ आ रही है अमरीका में और हर साल इन जैसों का प्रतिशत बढ़ जाता है और आजकल तो ट्रम्प के जीतने के बाद ये लोग पागलों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।
और ये बात सिर्फ अमरीकियों तक सीमित नही है क्योंकि इसमें हिन्दू भी शिकार होता है।
जो हिन्दू अमरीका में काम कर रहे हैं वहां यदि उनमे कोई ब्राह्मण या संवर्ण है तो उसे भी अत्याचारी की लिस्ट में डाल दिया जाता है कि तूने हजारों साल से कथित दलितों, शूद्रों पर अत्याचार किया है। तूने उन्हें न तब पढ़ने दिया और न आज पढ़ने दे रहा है। तू उन्हें आज भी मन्दिर में घुसने नही देता। तुम हिन्दू उन्हें अपने से दूर रखते हो।
इस तरह वहां गिने चुने ब्राह्मण और संवर्णो को दुश्मन बना दिया जाता है।
और ये सिर्फ किसी दलित हिन्दू अमरीकी कर्मचारी द्वारा नही किया जाता बल्कि सभी ऐसो के द्वारा किया जाता है जो इनके अजेंडे के शिकार हुए हैं, फिर वो किसी भी देश, नस्ल या मजहब के हों।
और ये जो आप "फक ब्राह्मण पेट्रियार्की" "डिस्मेंटल ग्लोबल हिंदुत्व" जैसी बातें सुनते हो ये भी इसी का नतीजा है। आखिर 8 बिलियन डॉलर हर साल खर्च हो रहे।
और इन कम्पनियों से पैसा लेकर सिर्फ अपने कर्मचारियों भर का ब्रेनवाश नही होता बल्कि ये पैसा अकेडमिया तक जाता है। हावर्ड जैसे संस्थानों तक मे खर्च होता है। इस DEI के लिए अलग डिपार्टमेंट बने होते हैं जो कॉलेजों में सेमिनार कराते हैं। ऐसे ही स्कूलों में भी।
फिर किताबे भी छपती हैं जहां बताया जाता है कि तुम दलित और अफ्रीकी ब्लैक एक जैसे हो। सबको जंजीरों से बांध गुलामी कराई गई है इसलिए तुम अपने को ब्लैक दलित कहा करो।
यहां तक कि ब्लैक बुद्धा भी बना दिया गया है और किताबें छप चुकी हैं क्योंकि इन्हें पता है कि अंबेडकर-बाबा साहब करने वाले खुद को बौद्ध बताते हैं।
फिर यही सब कचरा भारत मे आता है। भारत की कम्पनियों, अकेडमिया, मीडिया में आता है। ऐसी पुस्तकें आती हैं और अंदर खाने बंटती हैं। कह दिया जाता है कि देखो अमरीका में रिसर्च हुई है इसपर और अमरीका का कहा तो ब्रह्म सत्य सॉरी बुद्ध सत्य है।
इसी वजह से तो अडानी पर अमरीका ने कुछ भौंका तो वो भी सच होता है क्योंकि अमरीका झूठ थोड़े कहता है और उन्हें ये गुलामी वाली मानसिकता अच्छे से पता है।
इसी तरह फिर यहां LGBTQ प्रोमोट होता है। ये Gaanu(जिसे ये Pride कहते हैं) मार्च ऐसे ही नही निकलते दिमाग से पैदलों के जो कह रहे कि ये नल्ले हमास के साथ हैं बिना ये जाने की हमास वाले इनके साथ क्या करते हैं। क्योंकि यही घुट्टी इनको भी पिलाई जाती है कि तुम कमजोर हो, औरों जैसे नही हो, इसलिए तुम पर अत्याचारी वर्ग हमला करता है और इसी तरह का अत्याचारी वर्ग ही मासूम हमास पर दुनिया मे अत्याचार कर रहा।
और ये तो आप जानते हो कि इन से बढ़िया विक्टिम कार्ड खेलना किसी को नही आता तो बन जाते हैं ये लोग शिकार होते है हमास के और जताने लगते हैं हमदर्दी इनपर।
और इसी वजह से अमरीका से लेकर भारत या दुनिया भर के कॉलेज कैम्पसों में इन के समर्थन में नारे लगते हैं, LGBTQ के समर्थन में लगते हैं, शोषक बनाम अत्याचारी के नाम पर अलग अलग देश में उनके दलित बनाम उनके ब्राह्मण के नाम पर, Smash Bर@hmin या फक Juice(यहूद) या फक white क्$चन या जो भी अन्य हो, सब चलता रहता है।
तो इतना सब बताने का अर्थ है कि इसका पैसा इन बड़ी कम्पनियों से ही लिया जाता है। न देने पर इनके प्रोडक्ट्स के बायकॉट की धमकी दी जाती है। यहां तक कि इन्हें ये धमकी मिलती है कि अपने विज्ञापनों में भी हमारे अजेंडे प्रमोट करो जिस वजह से टाटा की जैगुआर आजकल LGBTQ प्रमोट कर रही है या भारत मे भी स्टारबस(जिसमें 50% टाटा मालिक है) का विज्ञापन आप कुछ समय पहले देख चुके हो।
हालांकि इसे एक बहाना भी समझ लो कि इन्हें बायकॉट की धमकी मिलती है क्योंकि असल मे ये सब अदृश्य राज्य से जुड़े हैं तो ये ऐसे बहाने लेकर खुद ही अरबो डॉलर खर्च करते हैं अपने एजेंडों के लिए।
भारत मे भी तो महिंद्रा, टाटा, विप्रो, इंफोसिस जैसे Wire, print आदि को पैसा दे ही रहे हैं।
लेकिन अब जब से ट्रम्प आया है तो वो लोग खुलकर Woke वायरस के खिलाफ चुनाव लड़े हैं और कहा है कि इसे हम खत्म करेंगे, तो ये कम्पनियां अपने आप ही कहने लगी हैं कि हम अबसे DEI को पैसा देना बंद कर देंगे।
जाहिर है जब पैसा बन्द होगा तो फिर इस DEI वायरस की फंडिंग रुकेगी तो इसके अजेंडे में भी ब्रेक लगेगा।
ना सिर्फ अमरीका में बल्कि दुनिया भर में भी जहां ये उन अरबो डॉलर का हिस्सा भेजते हैं।
हो सकता है कि भारत की नई मुस्लिम लीग को भी भेजा हो क्योंकि जाति जाति तो नयी मुस्लिम लीग करती ही है, साथ ही 2024 के मेनिफेस्टो में इन्होंने कहा था कि हमारी सरकार बनेगी तो हम LGBTQ को भारत मे लीगल कर देंगे अर्थात SC ST की तरह एक कानून आ जाता कि इनका अपमान करने पर जेल होगी। साथ ही इन्हें वो सब मान्यता मिल जाति जो एक पुरुष-महिला जोड़े को मिलती है। साथ ही फिल्मों से लेकर अन्य माध्यमो से इनके प्रचार शुरू हो जाते। कॉलेज से लेकर नन्हे बच्चों के स्कूलों में ऐसे सिलेबस आ जाते। यहां तक कि हर चौराहे पर आप इनका आतंक देखते और केस लगने के डर से आप कुछ कह भी न पाते।(हालांकि अभी भी कहाँ कुछ कहते हो)
और याद दिला दूं कि हावर्ड रिटर्न चंद्रचूड़ उर्फ चंदा मामा यही अपने CJI रहते लीगल करवाना चाहता था भारत मे जिसे केंद्र सरकार ने होने नही दिया और केंद्र के दबाव में फिर फैसला अल्पमत में आया उस बेंच से।
Ashish Sanwal
ReplyDeleteAssalamualaikum
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