कॉफ़ी-शॉप शहर के रेस्टोरेंटस की तरह ही थी , पर वहाँ उसे लोगों का व्यवहार कुछ अजीब लगा .
एक आदमी शॉप में आया और उसने दो कॉफ़ी के पैसे देते हुए कहा , “ दो कप कॉफ़ी , एक मेरे लिए और एक उस दीवार पर। ”
व्यक्ति दीवार की तरफ देखने लगा लेकिन उसे वहाँ कोई नज़र नहीं आया , पर फिर भी उस आदमी को कॉफ़ी देने के बाद वेटर दीवार के पास गया और उस पर कागज़ का एक टुकड़ा चिपका दिया , जिसपर “एक कप कॉफ़ी ” लिखा था .
व्यक्ति समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है . उसने सोचा कि कुछ देर और बैठता हूँ , और समझने की कोशिश करता हूँ .
थोड़ी देर बाद एक गरीब मजदूर वहाँ आया , उसके कपड़े फटे -पुराने थे पर फिर भी वह पुरे आत्म -विश्वास के साथ शॉप में घुसा और आराम से एक कुर्सी पर बैठ गया .
व्यक्ति सोच रहा था कि एक मजदूर के लिए कॉफ़ी पर इतने पैसे बर्वाद करना कोई समझदारी नहीं है …तभी वेटर मजदूर के पास आर्डर लेने पंहुचा .
“ सर , आपका आर्डर प्लीज !”, वेटर बोला .
“ दीवार से एक कप कॉफ़ी .” , मजदूर ने जवाब दिया .
वेटर ने मजदूर से बिना पैसे लिए एक कप कॉफ़ी दी और दीवार पर लगी ढेर सारे कागज के टुकड़ों में से “एक कप कॉफ़ी ” लिखा एक टुकड़ा निकाल कर डस्टबिन में फेंक दिया .
व्यक्ति को अब सारी बात समझ आ गयी थी . कसबे के लोगों का ज़रूरतमंदों के प्रति यह रवैया देखकर वह भाव-विभोर हो गया … उसे लगा , सचमुच लोगों ने मदद का कितना अच्छा तरीका निकाला है जहां एक गरीब मजदूर भी बिना अपना आत्मसम्मान कम किये एक अच्छी सी कॉफ़ी -शॉप में खाने -पीने का आनंद ले सकता है .
अब वह कसबे की खुशहाली का कारण जान चुका था और इन्ही विचारों के साथ वापस अपने शहर लौट गया.