प्रयागराज में स्थित हंस तीर्थ क्षेत्र वर्तमान में अतिक्रमण, प्रशासनिक लापरवाही और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। इस लेख में इन मुद्दों को विस्तार से समझाया गया है।
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योगी सत्यनारायण सिंह (सत्यम) कौन है?
योगी सत्यम, क्रिया योग अनुसंधान केंद्र के संचालक हैं। हाल ही में उनके खिलाफ उनके आश्रम की एक महिला ने यौन शोषण का गंभीर आरोप लगाया है। इसके साथ ही, उन पर हंस तीर्थ क्षेत्र पर अवैध अतिक्रमण करने, धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करने और श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन से रोकने के आरोप भी लगे हैं।
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भू-माफिया का कब्जा कब से शुरू हुआ?
हंस तीर्थ क्षेत्र पर अवैध कब्जा करने की प्रक्रिया कई वर्षों से चल रही है। यह मुद्दा 2012 से कोर्ट में लंबित है, जिसमें PIL संख्या 37324/2012 दायर की गई थी। आरोप है कि प्रशासनिक मिलीभगत और प्रभाव का उपयोग करके इस क्षेत्र में अवैध गतिविधियां चलाई जा रही हैं।
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हंस तीर्थ क्या है?
भगवान हंस, भगवान विष्णु के 24 प्रमुख अवतारों में से एक हैं, जिनका उद्देश्य भक्तों को सद्बुद्धि प्रदान करना था।
हंस तीर्थ क्षेत्र, निम्बार्क संप्रदाय के संस्थापक भगवान हंस की जन्मस्थली है, जो वर्तमान में अराजक तत्वों के कब्जे में है। इस क्षेत्र में हंस मंदिर, संध्या वट, हंस कूप, और तीर्थराज प्रयाग के नौवें माधव श्री संकटहर माधव जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल शामिल हैं।
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प्रतिवाद क्या कर रहा है?
1. कोर्ट का आदेश:
2012 में कोर्ट ने आदेश दिया था (आदेश संख्या 1110/2012) कि श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन से नहीं रोका जाएगा।
2. प्रशासन की भूमिका:
प्रशासन पर इस क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करने और संरक्षित रखने की जिम्मेदारी थी। लेकिन SDM फूलपुर की लापरवाही के कारण 10 अक्टूबर 2024 को श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन करने का अधिकार नहीं मिल सका।
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प्रतिवाद का नेतृत्व कौन कर रहा है?
तीर्थराज प्रयाग के साधु-संत इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने संकल्प लिया है कि वे हंस तीर्थ को अतिक्रमण मुक्त कराएंगे और इसे पुनः धार्मिक महत्ता प्रदान करेंगे।
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प्रोटेस्ट कितना कारगर रहा?
अब तक विरोध प्रदर्शन प्रशासन पर दबाव बनाने में सफल रहा है। हालांकि, 2024 की घटनाएं दर्शाती हैं कि पूरी सफलता अभी हासिल नहीं हुई है। साधु-संतों ने बाहर से पूजा कर यह संदेश दिया कि वे अपनी आस्था और अधिकार के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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भविष्य की योजना:
1. हंस तीर्थ क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करना।
2. हंस मंदिर और हंस कूप का जीर्णोद्धार।
3. संध्या वट के नीचे संकटहर माधव को पुनः स्थापित करना।
4. त्रिवेणी संगम से हंस तीर्थ क्षेत्र तक एक धार्मिक कॉरिडोर का निर्माण।
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निष्कर्ष:
हंस तीर्थ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। इसे संरक्षित करना केवल प्रशासन का ही नहीं, बल्कि प्रत्येक श्रद्धालु का कर्तव्य है। साधु-संतों के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन को अधिक जनसमर्थन की आवश्यकता है, ताकि यह पवित्र स्थल अपनी खोई हुई गरिमा प्राप्त कर सके।