भारत में अनगिनत स्थानों का नाम विदेशी कट्टरपंथी आक्रांताओं द्वारा बदला गया था। अनेकों मंदिरों सहित कई जगहों के तो स्वरूप भी बदले गए। कभी सोचा है कि आखिर क्या जरूरत थी जगह के नाम और स्वरूप बदलने की? असम में अब ऐसी हो एक जगह का नाम ठीक किया गया...और ऐतिहासिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास बताया गया...
जगह के नाम और उनके स्वरूप आक्रांताओं ने सिर्फ इसलिए बदला ताकि जो उसकी ऐतिहासिक मान्यता है जो उसके पीछे का इतिहास है वह नष्ट हो जाए और यह आक्रांता अपने अनुसार उसका इतिहास लिख सके तथा आने वाली पीढ़ियां इस गलत इतिहास को पढ़ती हुई मानसिक गुलाम बनी रहे। ये सब हुआ केवल इस्लामीकरण के लिए। अब जरूरी है कि दृश्य जेहादियों और अंग्रेजों की सभी निशानियों को नष्ट कर हमारे सही इतिहास को पुनर्जीवित किया जाय....और ये काम केवल भाजपा शासित राज्यों में ही संभव है
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य के करीमगंज जिले का नाम बदलने का एलान किया है। यह जिला अब श्रीभूमि नाम से जाना जाएगा। यह फैसला मंगलवार (19 नवंबर 2024) को हुई कैबिनेट की मीटिंग में लिया गया। CM हिमंत बिस्वा सरमा ने इस निर्णय की वजह सच्चे ऐतिहासिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने का अपना संकल्प बताया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगलवार को असम राज्य की कैबिनेट मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में प्रदेश के करीमगंज जिले का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा गया। नए नाम के तौर पर श्रीभूमि सुझाया गया। श्रीभूमि का मतलब हुआ माँ लक्ष्मी की भूमि।
करीमगंज जिला जिसका अब नाम श्रीभूमि कर दिया गया है, वो बांग्लादेश के बॉर्डर पर है। यहाँ बांग्ला बोलने वालों की आबादी सबसे ज्यादा है। अंग्रेजों के समय यह सिलहट जिले का हिस्सा हुआ करता था। बँटवारे के बाद सिलहट का कुछ हिस्सा पाकिस्तान (अब का बांग्लादेश) में चला गया, कुछ भारत की ओर रहा। यही हिस्सा अब श्रीभूमि जिले के नाम से जाना जाएगा।
असम कैबिनेट ने सर्वसम्मति से इस बदलाव पर अपनी मुहर लगा दी। बैठक के बाद CM सरमा ने मीडिया से अपने इस निर्णय को साझा किया। उन्होंने कहा कि वो उन तमाम स्थानों ने नाम बदलेंगे, जिसका कहीं कोई ऐतिहासिक उल्लेख न हो।
असम सरकार ने कुछ समय पहले ही कालापहाड़ नाम भी बदला था। इस बदलाव के बारे में उन्होंने कहा था कि कालापहाड़ शब्द असमिया या बंगाली भाषाकोष में नहीं आता। इसी तरह उन्होंने करीमगंज को भी भाषाकोष से बाहर बताया। इसी आधार पर पूर्व में भी हुए बदलाव का जिक्र करते हुए हिमंत बिस्व सरमा ने बारपेटा के भासोनी चौक का उदहारण दिया। मुख्यमंत्री के अनुसार श्रीभूमि शब्द बंगाली और असमिया दोनों शब्दकोशों में मिलता है।
करीमगंज का नाम श्रीभूमि करने के पीछे CM सरमा ने साल 1919 में रवींद्र नाथ टैगोर की सिलहट यात्रा का जिक्र किया। इसी यात्रा के दौरान उन्होंने सिलहट के इस क्षेत्र को ‘सुंदरी श्रीभूमि’ कह कर सम्बोधित किया था। बँटवारे के बड़ा सिलहट पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का हिस्सा हो गया है। बकौल हिमंत बिस्व सरमा करीमगंज का नाम श्रीभूमि रखना ही इस स्थान को उसके ऐतिहासिक मूल्यों से जोड़ेगा।