देश में अनेकों जगहों पर भयानक डेमोग्राफिक बदलाव सामने आ चुके हैं और अनेकों जगहों पर डेमोग्राफिक चेंज का एजेंडा पूरी तेजी से आगे बढ़ रहा है। अनेकों लोकेशन तो ऐसे हो चुके हैं जहां विशेष समुदाय के वोट ही नेता चुनते हैं। इन सारी बातों को समझते हुए भारत के उपराष्ट्रपति जी ने चिंता व्यक्ति की और ऐसी बातें कही जो सबको समझनी चाहिए।
उपराष्ट्रपति जी ने कहा "कहा कि देश के कुछ इलाकों में जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ है और अब राजनीतिक किला बन गए हैं। उन्होंने कहा कि इन जगहों पर चुनाव और लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है, क्योंकि वहाँ परिणाम पहले से तय हैं।" उपराष्ट्रपति जी ने बदलती डेमोग्राफी के परिणामों की तरफ भी ध्यानाकर्षित करने का प्रयास किया और दोनों संस्कृतियों का मुख्य अंतर भी समझाया।
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में हो रहे डेमोग्राफिक बदलावों को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने मंगलवार (15 अक्टूबर 2024) को कहा कि देश के कुछ इलाकों में जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ है और अब राजनीतिक किला बन गए हैं। उन्होंने कहा कि इन जगहों पर चुनाव और लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है, क्योंकि वहाँ परिणाम पहले से तय हैं।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन दुनिया में एक चुनौती बन रहा है। उन्होंने कहा कि देश के कुछ क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन बहुत अधिक हुआ है। उन्होंने कहा, ऐसे क्षेत्रों में चुनाव का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। कौन चुनेगा यह तो तय बात हो गई है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे क्षेत्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है और एक इस खतरे को देशवासियों को महसूस करना चाहिए। धनखड़ ने कहा, “हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के प्रति ऋणी हैं। यह सभ्यता जिसमें 5000 साल का लोकाचार है, इसका सार है, इसकी महानता है, इसकी आध्यात्मिकता है, इसकी धार्मिकता है, उसे हमारी आँखों के सामने नष्ट नहीं होने दिया जा सकता।”
धनखड़ ने हिंदू बहुलता को लेकर कहा, “हम बहुसंख्यक के रूप में सभी को गले लगाने वाले, सहिष्णु और एक सुखदायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं।” डेमोग्राफी बदलाव के बाद मुस्लिमों की बढ़ती की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “दूसरी तरह का बहुसंख्यक अपने कामकाज में क्रूर, निर्दयी और लापरवाह है, जो दूसरे पक्ष के सभी मूल्यों को रौंदने में विश्वास करता है। यह चिंताजनक है।”
उन्होंने आगे कहा, “हम सभी को जुनून के साथ, एक मिशनरी मोड में काम करना होगा। हमें एक संगठित समाज का निर्माण करना होगा, जो आवश्यक शर्तों पर सोचता हो। जो जाति, पंथ, रंग, संस्कृति, विश्वास और खान-पान के आधार पर गुटों से विभाजित न हो। हमारी साझा संस्कृति पर कुठाराघात हो रहा है। उसको हमारी कमजोरी बताने का प्रयास हो रहा है।”
उपराष्ट्रपति ने कहा, “उसके तहत देश को ध्वंस करने की योजना बनी हुई है। ऐसी ताकतों पर वैचारिक और मानसिक प्रतिघात होना चाहिए। हमें संकीर्ण विभाजनों को पीछे छोड़ना होगा। राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वाले नागरिक को विविधता अपनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। वह अपनी आस्था की परवाह किए बिना इस देश के गौरवशाली अतीत का जश्न मनाता है, क्योंकि वह हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत है।”
आने वाले खतरे को लेकर आगाह करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आगे कहा, “भारत की सभ्यतागत प्रकृति को विभाजनकारी खतरों से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। स्थिर और समृद्ध राष्ट्र सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक एकता को संरक्षित किया जाना चाहिए।”
धनखड़ ने कहा, “जैविक, प्राकृतिक, जनसांख्यिकीय परिवर्तन कभी भी परेशान करने वाला नहीं होता है। लेकिन, किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय परिवर्तन भयावह दृश्य प्रस्तुत करता है। यदि इससे व्यवस्थित तरीके से नहीं निपटा गया तो यह अस्तित्व के लिए चुनौती बन जाएगा। दुनिया में ऐसा पहले भी हो चुका है।”
उन्होंने जनसांख्यिकीय बदलाव के परिणाम परमाणु बम से भी कम गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण कई देशों ने अपनी पहचान खो दी है। भारत के लोगों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ राजनेताओं को अख़बार की हेडलाइन के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग करने या कुछ छोटे-मोटे पक्षपातपूर्ण हितों की पूर्ति करने में कोई परेशानी नहीं होती।
बता दें कि डेमोग्राफी बदलाव भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। देश भर के शहरों और इलाकों में इस तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं, जिसके कारण कई इलाकों में तो हिंदुओं को पलायन करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा है। झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश के कई इलाके इससे गंभीर रूप से पीड़ित हैं। इसके परिणाम भी अब दिखने लगे हैं।