स्वयं की जन्म कुंडली समझे
🔹ज्योतिष क्या है ? जन्मकुंडली, भाव, ग्रह, गोचर की पूरी जानकारी
मनुष्य स्वयं को मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं। ज्योतिष, पृथ्वी पर होने वाले ग्रहों और घटनाओं के खगोलीय स्थितियों के बीच के संबंधों के अध्ययन को सरल रूप से प्रस्तुत करते हैं। ज्योतिषी मानते हैं कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की स्थिति का उस व्यक्ति के चरित्र पर सीधा असर होता है। ये पद एक व्यक्ति के भाग्य को प्रभावित करने के लिए लगाए जाते है कई ज्योतिषी स्वतंत्र महसूस करते हैं, किसी भी व्यक्ति के जीवन एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।
ज्योतिष का अर्थात् इनसाइट्स ईश यानी डिवाइन। ज्योतिष का अर्थ ही है,दैवीय प्रज्ञा। वह दैवीय स्फूर्त विचार, जो ऊर्जा से भर दे। जो स्पष्टता दे,वह विधा जो मुझे एक ऐसा विचार दे, जो मेरे जीवन को समृद्ध कर दे। जो मुझे यथार्थ का आभास कराए। यह है ज्योतिष।
ज्योतिष" एक ऐसा शब्द है जिससे वर्तमान समय में सभी लोग भली-भाँति परिचित हैं. यह एक ऐसी विद्या है जो अति प्राचीन विद्याओं में से एक मानी गई है. लेकिन प्राचीन समय और आधुनिक समय में इस विद्या के उपयोग में अच्छा खासा अंतर आ चुका है. पहले इसका उपयोग ऋषि-मुनियों अथवा राज ज्योतिषियों द्वारा किया जाता था।
इस विद्या के सही उपयोग से परेशानी व्यक्ति को तिनके का सहारा मिल सकता है. हम ज्योतिष से अपना भाग्य नहीं बदल सकते किंतु विपत्ति का सामना करने का बल अवश्य प्राप्त कर सकते हैं. जब आदमी चारों ओर से परेशानियों से घिर जाता है तब उसे ज्योतिषी की याद आती है. ऐसे व्यक्तियों को परामर्श की आवश्यकता होती है. ऐसे समय में ज्योतिषी का कर्तव्य है कि डराने की बजाय वह उचित मार्गदर्शन करें.
ज्योतिष सवाल प्रस्तुत करने की कला है तभी आप अपने सवालों का जवाब पा सकते हैं। अगर सवाल नहीं है, तो जवाब भी नहीं हैं। अगर सवाल है तो जवाब भी है। ज्योतिष जवाबों का विज्ञान है, जो आपके ग्रह, नक्षत्रों के आधार पर सटीक समाधान करता है। पांच अंग हैं ज्योतिष के। लेकिन मूल रूप से तीन ही हैं- ग्रह, लक्षण और घर।
ज्योतिष पांच कॉन्टेक्स्टस (Contexts) में सोचने का ढंग है। ज्योतिष अपनी इंटेंशन अपनी धारणाओं को करेक्ट करने का विषय है। ज्योतिष में धारणा केतु बताता है। सबसे महत्वपूर्ण प्लेनेट कौन सा है? धारणा कैसी है? अटेंशन वैसी ही होगी तुम्हारी। उसे राहू कहते हैं। जैसी धारणा है तुम्हारा ध्यान वहीं जाएगा। योगी राहू और केतु, इन दो को पकड़ लेता है। फिर वो पूरे चार्ट के साथ खेलता है। यहां से योग रहस्यों की शुरूआत होती है। इसलिए केतु को मिस्टिक प्लेनेट कहा जाता है।
हम, ज्योतिष में आभास करते हैं कि ज्योतिष स्वयं को, दूसरों को और हमारे चारों ओर की दुनिया को समझने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारी दुनिया को परिभाषित करने और समझने के लिए हम कई विभिन्न उपकरणों या भाषाओं का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, हम मानवीय व्यवहार का पता लगाने के लिए मनोवैज्ञानिक उपकरण और शब्दावली का उपयोग कर सकते हैं। इसी तरह, ज्योतिष शास्त्र हमें मानव चरित्र को समझने के लिए समृद्ध उपकरण देता है, और हमें दूसरों के साथ हमारे टिप्पणियों के संचार के लिए एक भाषा प्रदान करता है।
१. जन्म कुंडली का परिचय :
जन्म कुंडली को पढ़ने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जाता है सबसे पहले उन बातो को आपके सामने रखने का प्रयास करें. जन्मकुंडली बच्चे के जन्म के समय विशेष पर आकाश का एक नक्शा है.
जन्म कुंडली में एक समय विशेष पर ग्रहो की स्थिति तथा चाल का पता चलता है. जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है. जन्म कुण्डली अलग अलग स्थानो पर अलग-अलग तरह से बनती है. जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति. भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय तथा पूर्वी भारत में बनी कुंडली भिन्न होती है.
जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है, जो मेष से मीन राशि तक होती हैं. बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है. एक भाव में एक राशि ही आती है. जन्म के समय भचक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आती है.
अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा (एंटी क्लॉक वाइज) में चलती है. माना पहले भाव में मिथुन राशि आती है तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी. अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि आती है!
२. भाव का परिचय :
जन्म कुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हें जानने का प्रयास करें. जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है. कुंडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं. इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है. पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है.
सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं. कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है.
बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है. इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है.
३. ग्रहों की स्थिति :
जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने. ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है. इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है.
पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें. फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है. जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें.
जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें. जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग है.
४. कुंडली का फलकथन :
फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है. कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है. जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी.
तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी. यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
५. दशा का अध्ययन :
अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ नहीं मिलता है. आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है.
जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भाव रखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें.
कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें. महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखे।
६. गो का अध्ययन :
सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें. दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है. कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं.
किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है |
किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है।
७. कैसे बनाएं कुंडली :
कुंडली बनाने का कार्य मुख्य रूप से पंडित या ब्राह्ममण करते हैं किंतु आज इंटरनेट ने अपना विस्तार इस तरह किया है कि ज्योतिष की इस अहम शाखा में भी उसकी पहुंच हो गई है। आज कई वेबसाइट्स और सॉफ़्टवेयर भी कुंडली बनाती हैं। इनमें से कई तो आपको पूर्ण हिन्दी या अंग्रेजी में भी कुंडली उपलब्ध कराते है।
८. सप्तम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होता है
ज्योतिषीय द्रष्टि से जातक की शादी के लिए उसकी कुंडली का सप्तम भाव बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। सप्तम भाव के आदर पर ही विद्धवान ज्योतिषी जातक की शादी ओर पत्नी सुख के बारे में अपनी भविष्यवाणी कहते है। हम देखते है की कभी कभी सुन्दर स्वस्थ्य ओर धनवान होने के बाद भी किसी किसी जातक अथवा जातिका का विवाह नहीं होता है तो इसका कारण उसका सप्तम भाव अथवा सप्तमेश बिगड़ा हुआ है ओर यह भाव बिगड़ा हुवा कैसे है यह हम आगे कुछ ज्योतिषीय जानकारी के माध्यम से पता करेंगे | आगे जों भी कारण लिखा है उनको आप स्वयं देखे पढ़े ओर समझे ओर कुंडली देखकर विचार करेगे तो पाएंगे की ज्योतिषीय जानकारी कितनी स्टिक ओर स्पस्ट है।
• सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को
देख रहा है।
• सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की द्रिष्टि नही है।
• कोई पाप ग्रह सप्तम में बैठा नही है।
• यदि सप्तम भाव में सम राशि है।
• सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है।
• सप्तमेश बली है।
• सप्तम में कोई ग्रह नही है।
किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि सप्तम भाव और सप्तमेश पर नही है।
• दूसरे सातवें बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हैं, और गुरु से द्रिष्ट है।
• सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नही है।
• ९. विवाह नही होगा अगर
• सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
• सप्तमेश छः आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
• सप्तमेश नीच राशि में है।
• सप्तमेश बारहवें भाव में है, और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
• चन्द्र शुक्र साथ हों, उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
• शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
• शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
• शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
* शुक्र, बुध , शनि तीनो ही नीच हों।
• पंचन में चन्द्र हो, सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
• सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो.
१०. विवाह में देरी :
• सप्तम में बुध और शुक्र दोनो के होने पर विवाह वादे चलते रहते है, विवाह आधी उम्र में होता है।
• चौथा या लगन भाव मंगल (बाल्यावस्था) से युक्त हो, सप्तम में शनि हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती है।
• सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं।
• चन्द्रमा से सप्तम में गुरु शादी देर से करवाता है, यही बात चन्द्रमा की राशि कर्क से भी माना जाता है।
• सप्तम में त्रिक भाव का स्वामी हो, कोई शुभ ग्रह योगकारक नही हो, तो पुरुष विवाह में देरी होती है।
• सूर्य मंगल बुध लगन या राशिपति को देखता हो, और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो आध्यात्मिकता अधिक होने से विवाह में देरी होती है।
• लगन में सप्तम में और बारहवें भाव में गुरु या शुभ ग्रह योग कारक नही हों, परिवार भाव में चन्द्रमा कमजोर हो तो
विवाह नही होता है, अगर हो भी जावे तो संतान नही होती है।
• महिला की कुन्डली में सप्तमेश या सप्तम शनि से पीडित हो तो विवाह देर से होता है।
राहु की दशा में शादी हो, या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो, तो शादी होकर टूट जाती है, यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है.
१२. परिचय :
कालपुरुष जिसकी कल्पना हम ज्योतिष शास्त्र में करते हैं और जिसके रचियता ब्रह्माजी हैं और जो सम्पूर्ण जातकों का
प्रतिनिधितव भी करते हैं वह असल में किस प्रकार से कार्य करते हैं! यहाँ पर विचारणीय बात ये भी है की जिस लाल किताब का आज इतना प्रचार किया जा रहा है वो भी इसी कालपुरुष लगन से प्रेरित है और उसका महत्व उपचार पर ज्यादा है, इसी प्रकार से अंक विद्या, केपी सिस्टम जो की बहुत ही सटीकता से फॉरकास्टिंग करता है, और न जाने कितने सिस्टम हैं ज्योतिष विद्या में वे सब के सब अपने आप में महत्वपूर्ण माने जाते हैं पर उन सब का आधार यही कालपुरुष कुंडली माना जाता है, इसके बाहर तो ज्योतिष शास्त्र की कल्पना करना भी बेकार है....
१३. प्रथम भाव :
उसमें काल पुरुख की मेष राशि यानी एरीज जोडिएक पड़ता है और जिसका के स्वामित्व हम मंगल गृह को मानते हैं, वह मंगल फिर अष्टम भाव का भी स्वामी मन जाता है क्योंकि उसकी दूसरी राशि वृश्चिक वहां पड़ती है और दोनों राशियों का अपना अलग प्रभाव मन जाएगा, तो हम बात कर रहे थे पहले भाव की की वहां मेष राशी जिसका स्वामी मंगल को माना जाता है व रुधिर जिसे हम खून भी कहते है का शरीर में प्रतिनिधितव करता करता है और मंगल को हम उत्साह व उर्जा का कारक भी मानते हैं दुसरे वहां पर सूर्य उच्च का मन जाता है वह भी उर्जा का प्रकार मन जाता है तो दोनों मंगल और सूर्य उर्जा के कारक होने के साथ साथ अग्नि के कारक भी है इसलिए ये जीवन के संचालक गृह प्रथम भाव के कारक बनाये गए जो की पूरण तया तर्कसंगत मन जाएगा, अब मेडिकल साइंस के मुताविक भी इनका यही मतलव निकलता है क्यों को विज्ञान भी यही मानता आया है की ये सारा ब्रह्माण्ड एक उर्जा के आधीन है और प्रमाणित व प्रतक्ष रूप से सूर्य तो इसका प्रमाण है ही, अब विचारनिए बात यह है की जीवन जीने के लिए वो भी सही जीवन जीने के लिए हमें इस उर्जा का सही समन्वय करना पड़ता है नहीं तो हम कहीं न कहीं पिछड़ना शुरू हो जाते हैं सो हमें उर्जा का नेगेटिव या पॉजिटिव प्रयोग करना आना चाहिए, अपनी अपनी पर्सनल होरोस्कोप में देखने पर इन दोनों उर्जा युक्त ग्रहों का किस प्रकार से बैठे हैं, किन किन नक्षत्रों में, उप नक्षत्रों में और आगे उप उप नक्षत्रों में, नव्मंषा कुंडली में, षोडस वर्गों में, अष्टक वर्गों में, पराशर शास्त्र अनुसार की प्लेनेट और न जाने और कितनी विधियों अनुसार देखने के वाद ही ये पता चलता है के वे गृह कितने बलवान हैं, मात्र एक आधी विधि अपूरण मानी जाती गयी है, और विचारनिए बात ये भी है के आज के वक्त में इस पवित्र शास्त्र का मज़ाक बना कर रख दिया गया है मात्र सिर्फ भौतिकता के चलते ऐसा हो रहा है, क्यों के हर आदमी दो चार किताबें पढ़ कर अपने आप को ज्ञानी मानने लगता है और आज जब सब कुछ कोमर्शिअल यानी व्यावसायिक सोच सब पर हावी हो चुकी है तो हर चीज की सैंक्टिटी यानी पवित्रता ख़तम हो रही है, जब स्वार्थ हावी हो जाए तो अक्ल पर पर्दा पड़ना शुरू हो जाता है, तो हम यहाँ देखते हैं के इन दोनों ऊर्जायों का हम कैसे सही इस्तेमाल करते हैं और जैसे के अगर कहीं न कहीं कोई ग्रहों में कमी पूर्व जनित कर्मो के कारण आ गयी हो तो हम उसमे काफी हद तक सुधार भी ला सकते हैं, हालांकि वह सुधार अपनी अपनी बिल्पावेर यानि इच्छा शक्ति, करम और प्रभु पर पूरण भरोसा इसी के चलते पूरण हो पाती
१४. कुटुम्भ व धन भाव :
बात करते हैं दुसरे भाव की यानि कुटुम्भ व धन भाव की तो वहां का स्वामित्व शुक्र व् चन्द्र को दिया है और कारक गुरु को माना गया है, एशिया क्यों इसलिए की शुक्र भौतिक गृह है और भौतिक सुखों को प्राप्त करने के लिए धन की ज़रुरत पड़ती ही है , विचारनिए बात यहाँ ये भी है के गुरु को दुसरे, पांचवे, नवं और एकादस का कारक भी माना गया है क्यों की सब असली निधियों का स्वामी गुरु ही होता है जो के किसी के साथ कभी पक्षपात नहीं करता और अगर ये ही अधिकार दुसरे गृह को दिया गया होता तो व ज़रूरी पक्षपात करता, तो यही वृहस्पति का बढ़प्पन माना जाता है जो की किसी के साथ कभी अन्याय नहीं करते हैं और सबको सद्बुधि देने वाले गृह माने जाते हैं! हम यह भी देखते हैं के दूसरा भाव मारकेश का भी मन जाता है वजह चाहे जो भी रही हो मसलन के अष्टम जो के आयु का भाव माना गया है उससे अष्टम यानी तृत भाव से दवाक्ष भाव यानी दूसरा भाव इसलिए इसे मारकेश माना जाएगा परन्तु दर्शन के रूप में देखें तो यही पता चलता है के शुक्र और चन्द्र के रूप में जो हम भौतिकता जब वृहस्पति रुपी प्यूरिटी को हम एक्सक्लूड यानि बाहर करना शुरू करते हैं तो वह मारक का काम करना शुरू कर देती है, जैसा के मैंने बोला के हम यहाँ इसको लॉजिकल एंगल से देखें तो यही निष्कर्ष निकलता है के बिना मतलब का, बिना मेहनत और गलत तरीकों से कमाया भौतिक सुख आखिरकार हमारे लिए मारकेश का ही काम करेगा.
१४. तीसरा और आगे छठा भाव :
तीसरा और आगे छठा भाव दोनों का स्वामी और कारक बुध व मंगल को माना जाएगा, यहाँ पर बुध भाई बहनों का और छठे भाव में बंधू बांधवों का जो भाई-बहनों के रूप में हमारे सामने आते हैं का कारक बन जाता है। दूसरा है मंगल तो इन दोनों ग्रहों की इसलिए स्वामित्व मिला के बुध रुपी लचकता व जुबान से और पराक्रम से ही हम बंधुयों के साथ इंटरैक्ट करते हैं, बुध यानी जुबान का उचित प्रयोग ही हमें सबका मित्र या शत्रु बनाता है और सही व पॉजिटिव मंगल रुपी साहस और पराक्रम हमें विजयी बनाता है ! इस के साथ हम इनके दुसरे भाव यानि छठे भाव को भी देखें के जो की शत्रुता व रोग और ऋण का स्वामी होता है उस संधर्भ में हम देखते हैं के दोनों ग्रहों का सही तालमेल हमें विजेता बनाता है, शत्रु का यहाँ लॉजिकल मतलव जीवन रुपी संघर्ष से है तो यहाँ हम देखते हैं के कैसे वही दोनों गृह उन चीजों का सही रूप में निपटारा करते नज़र आते हैं, और कैसे दो धारी तलवार की तरह बन जाते है।
१५. चतुर्थ भाव
चतुर्थ भाव की बात करें तो यह भाव सुख का मन जाता है और इस भाव का स्वामी चन्द्र और कारक वृहस्पति को माना जाता है, ये दोनों गृह जब आपस में मिलते हैं तो कुंडली में एक प्रकार का गजकेसरी योग बना देते हैं, यानी गज का यहाँ मतलब हाथी से है तो केसरी शेर को कहते हैं जब दोनों ताक़तवर मिल जाएँ तो क्या कहना, ठीक इसी प्रकार से इन दोनों ग्रहों की कल्पना की गयी और उन्हें सुख स्थान का स्वामी बनाया गया, वैसे भी हम देखें तो सिर्फ वृहस्पति ही ऐसा गृह नज़र आता है जो सौर मंडल में सबसे बड़ा और ज्ञान का दाता माना गया है अगर और किसी गृह को ये अधिकार दे दिया होता जैसे शुक्राचार्य को तो जो के सिर्फ वाहरी भौतिक सुखों का कारक है तो क्या होता! चतुर्थ स्थान माँ का भी माना गया है और ज्योतिष में चन्द्र को माँ का कारक माना जाता है, माँ के आँचल में ही संतान को सुख मिलता है।
१६. पंचम भाव
पंचम भाव का स्वामी सूर्य और कारक वही गुरु को बनाया गया क्यों की सूर्य रुपी प्रकाश द्वारा ही हम पंचम रुपी विद्या ग्रहण करते हैं और इसके संतान कारक होने का कारण भी यही है के संतान ही अपने माता पिता का नाम रोशन करती है, इसी पंचम से हर व्यक्ति की मानसिकता भी देखी जाती है तो उन कारकों की पोजीशन के अनुसार ही हम कोई निर्णय ले सकते हैं।
१७. सातवाँ भाव
सातवाँ भाव पति या पत्नी और काम का माना जाता है और इसका स्वामी फिर शुक्र बन जाता है, शुक्र जिसे हम इस दुनिया में भौतिक सुखों का कारक मानते हैं वही नर यानी मंगल यानि रुधिर और मादा यानी शुक्र यानी वरीय रूप से श्रृष्टि का कारण बनता है वैसे भी लॉजिक एंगल से देखें तो शरीर में इन दोनों तत्वों का होना ही जीवन का कारण बनता है! अब यही सप्तम भाव फिर मारक बन जाता है क्यों की जब हम भौतिकता की अधिकता या कह सकते हैं के भौतिक सुख को प्राप्त करने के एवज में मारकता सहन करनी ही पड़ती है।
१८. अष्टम भाव
अष्टम भाव जिसे आयु और कष्टों का भाव माना जाता है उसका स्वामी फिर वही मंगल और कारक शनि बन जाता है तो अगर मंगल उर्जा के रूप में हमें जीवन देता है तो वही उर्जा दिए और वाती की तरह जब धीमी पड़नी शुरू हो जाती है तो जीवन ख़तम हो जाता है, जैसे जितना तेल हम दीपक में डालेंगे उतनी ही देर तक वह जलता रहेगा और उसके बाद उसे बुझना ही पड़ेगा इसी प्रक्कर से अष्टम भाव कार्य करता है।
१९. नवम भाव
नवम भाव के बारे में चर्चा करेंगे के यह भाव धरम का और भाग्य का माना जाता है और इसका स्वामी और कारक सिर्फ एक की गृह बनता है वो है देव गुरु वृहस्पति जो के समस्त सुखों का कारक है और हमें यही सन्देश देता है के हमें मानवता का धर्म अपनाते हुए ही करमरत रहना चाहिए क्यों की चाहे इस संसार में आदमी ने कितने धरम बनाये हैं वो अपनी व्यक्तिगत सोच और परम्परा के अनुसार बनाये जाते हैं पर कल्पुरुख लग्न के रूप में ईश्वर ने सिर्फ एक ही धरम बनाया जो की सिर्फ मानवता ही है वैसे भी धरम का मतलब होता है धारण करना यानी आप किसी विचार को धारण करते हैं और उसके बनाये नियम में चलते हैं ये सब कुछ तभी बनाये गए क्यों की यह संसार विविद्ध संस्कृतियों के मेल जोल से बनता है और हम एक दुसरे का आदर करते हुए सबसे कुछ न कुछ सीखते रहते हैं पर इस चीज़ को न भूलते हुए के इश्वर को सिर्फ और सिर्फ मानवता का ही धरम अच्छा लगता है तभी जब काल्पुरुख कुंडली की ब्रह्मा ने कल्पना की होगी तो शुक्र रुपी भौतिकता का ख्याल ना आते हुए आध्यात्मिक देव गुरु वृहस्पति को ही इस पदवी का हक़दार बनाया गया क्यों की तमाम धरम ग्रंथों व गीता का भी अंत का सन्देश सिर्फ मोक्ष को ही माना गया जिसका सन्देश योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था और इस पर निरर्थक वादविवाद से कोई फायदा नहीं क्यों की मोक्ष का कांसेप्ट बहुत गहरा है, जो हर किसी के बस की बात नहीं।
10. दशम भाव - दसवें भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक भी शनि ही है। कुंडली का दशम भाव व्यक्ति के करियर और व्यवसाय से जुड़ा होता है।
11. एकादश भाव - ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है और कारक गुरु है। एकादश भाव जातक को आय और लाभ को दर्शाते हैं।
12. द्वादश भाव - बारहवें भाव का स्वामी गुरु होता है और कारक राहु है। कुंडली में बारहवां भाव व्यय और हानि का भाव हैं!