कोई कौम कितनी क्रूर और वहसी हो सकती है है आप शायद सोच ही नहीं सकते। Opindia की ये रिपोर्ट आपके दिमाग के बंद पड़े सभी ताले खोल सकती हैं बशर्ते आप इस रिपोर्ट को थोड़ा समय निकालकर पढ़ें। इसे पढ़ने के बाद आप एक मानसिकता की दरिंदगी के बारे मे थोड़ा बहुत समझ पाएंगे साथ ही अपनी मूर्खता पर भी हंसेंगे की ऐसी हैवानी मानसिकता को हम मनुष्य मानते रहे, भाईचारा निभाते रहे इन्हें शांति के मसीहा मानते रहे.।।
डायरेक्ट एक्शन डे के बारे में वैसे तो हमने बहुत कुछ सुना हुआ है, लेकिन जो बात इन 92 वर्ष के बुजुर्ग ने बताई वह सुनकर आप सहन जाएंगे। यह बुजुर्ग डायरेक्ट एक्शन डे के उस आतंक में जिंदा बच गए और इन्होंने वो सारी चीज देखी जिनके बारे में वह बता रहे हैं। ऐसी हैवानियत करने वाली राक्षसी मानसिकता के साथ यदि आज भी हम किसी प्रकार का व्यवहार रखते हैं तो दोषी हम भी हैं।
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भारत के विभाजन के लिए मुस्लिम नेताओं ने 16 अगस्त, 1946 को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का ऐलान किया था, जब मुस्लिम भीड़ ने हिन्दुओं पर जम कर कहर बरपाया। बंगाल में इसका खासा असर देखने को मिला, जहाँ कई इलाकों में दंगे हुए। नोआखली के दंगे उनमें सबसे ज्यादा कुख्यात हैं। वहाँ तो कई महीनों तक दंगा चलता ही रहा था। महात्मा गाँधी को इलाके में कैंप करना पड़ा था। उस दौरान हुए इन्हीं दंगों को लेकर एक वयोवृद्ध व्यक्ति ने अपने अनुभव साझा किए हैं।
पत्रकार अभिजीत मजूमदार ने इसका वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया है। ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ में ज़िंदा बच गए रबीन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी आँखों के सामने मुस्लिम भीड़ की क्रूरता को देखा था। उनकी उम्र 92 साल है। इस हिसाब से उस समय वो युवावस्था में थे और उनकी उम्र 24 साल के आसपास रही होगी। उन्होंने बताया है कि कैसे राजा बाजार के बीफ की दुकानों पर हिन्दू महिलाओं की नग्न लाशें हुक से लटका कर रखी गई थीं।
उन्होंने बताया कि विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ने वाली कई हिन्दू छात्राओं का बलात्कार किया गया, उनकी हत्याएँ हुईं और उनकी लाशों को हॉस्टल की खिड़कियों से लटका दिया गया। रबीन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी आँखों से हिन्दुओं की क्षत-विक्षत लाशें देखी हैं। जमीन पर खून की धार थी, जो उनके पाँव के नीचे से भी बह कर जा रही थी। इनमें से कई महिलाएँ भी थीं, जिनकी लाशों से उनके स्तन गायब थे। उनके प्राइवेट पार्ट्स पर काले रंग के निशान थे।