सिविल सर्विसेज में आपको सोरेन, मुर्मू, भील, डामोर, थारू, भाभोर हेब्राम मुंडा बोडो उरांव असुर भिलाला थारू बोक्सा पहड़िया पतरी सांसी खरवार कुरुम्बा, बाछड़ा, नट, बेड़िया आदि आदिवासी जातियों के नहीं मिलेंगे ...मिलेंगे तो सिर्फ एक जाति के लोग।
अब आप समझ जाइए कि आरक्षण का मूल उद्देश्य कैसे पूरा होगा ??कैसे सबको समानता का अधिकार मिलेगा??
आप गुजरात के दाहोद गोधरा छोटा उदयपुर वलसाड से होते हुए महाराष्ट्र के सतपुड़ा की पहाड़ियों पर चले जाइए, आप झारखंड के तमाम जिलों में चले जाइए।आज भी तमाम आदिवासी लोग छोटे-छोटे खेतों में मेहनत कर रहे हैं उनके यहां 75 साल से कोई भी व्यक्ति सरकारी नौकरी में क्लर्क तक नहीं बन सका है। कुछ जातियां आज भी निम्न पेशे में लिप्त हैं
आप चले जाइए मंदसौर नीमच आप चले जाइए गुजरात राजस्थान के सीमा पर बसे कुछ गांव में आज भी कुछ जातियों में लड़कियों के पैदा होने पर खुशी मनाई जाती है क्योंकि मां-बाप भाई अपने परिवार की महिलाओं से कुछ ऐसा करवाते हैं जिससे उनका पेट पालन हो सके। ऐसी जातियों को हमें समाज के मुख्य धारा में लाना है उन्हें अधिकारी बनना है।
आरक्षण का मुख्य उद्देश्य है सबको समान अधिकार देना सबको समान मौका देना