जीवन में यज्ञ और यज्ञ कुंड को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। प्राचीन हिंदू सनातन परंपरा से आधुनिक युग तक यज्ञ मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं।
हिन्दू समाज में अगर घर में कोई भी शुभ कार्य हो उसमें यज्ञ कुंड का होना अनिवार्य है। ऐसे में चाहे सामान्य पूजा पाठ हो, गृह प्रवेश हो या फिर बच्चे का नामकरण संस्कार हो, या शादी-विवाह जैसी महत्वपूर्ण परंपरा ही क्यों ना हो, यज्ञ बेहद महत्वपूर्ण है।
किसी भी साधना को सफल बनाने के लिए यज्ञ का विधान है। यज्ञ विधान को विधि-विधान से संपन्न करने के लिए यज्ञ-कुण्डों का विशेष महत्व होता है। मूल रूप से यज्ञ कुंड आठ प्रकार के होते हैं, जिनका प्रयोग विशेष प्रयोजन हेतु ही किया जाता है. हर यज्ञ, कुण्ड की अपना एक विशेष महत्व होता है और उस यज्ञ कुंड के अनुरूप व्यक्ति को उस यज्ञ का पुण्य फल प्राप्त होता है।
धन, वैभव, शत्रु, संहार, विश्व शांति, आदि की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए अलग-अलग कुण्डों का महत्व जानते हैं
यज्ञ कुंड मुख्यत आठ प्रकार के होते हैं और सभी का प्रयोजन अलग- अलग होता हैं।
1. योनि कुंड: योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु।
2. अर्ध चंद्राकार कुंड: परिवार मे सुख शांति हेतु।
3. त्रिकोण कुंड: शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।
4. वृत्त कुंड: जन कल्याण और देश मे शांति हेतु।
5. सम अष्टास्त्र कुंड: रोग निवारण हेतु।
6. सम षडास्त्र कुंड: शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु।
7. चतुष् कोणास्त्र कुंड: सर्व कार्य की सिद्धि हेतु।
8. पदम कुंड: तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु।
✤ योनि कुण्ड :-
यज्ञ के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला यह कुंड योनि के आकार का होता है. इस कुण्ड कुछ पान के पत्ते के आकार का बनाया जाता है. इस यज्ञ कुंड का एक सिरा अर्द्धचन्द्राकार होता है तथा दूसरा त्रिकोणाकार होता है. इस तरह के कुण्ड का प्रयोग सुन्दर, स्वस्थ, तेजस्वी व वीर पुत्र की प्राप्ति हेतु विशेष रूप से किया जाता है.
✤ अर्द्धचन्द्राकार कुण्ड :-
इस कुण्ड का आकर अर्द्धचन्द्राकार रूप में होता है. इस यज्ञ कुंड का प्रयोग पारिवारिक जीवन से जुड़ी तमाम तरह की समस्याओं के निराकरण के लिए किया जाता है. इस यज्ञ कुंड में हवन करने पर साधक को सुखी जीवन का पुण्यफल प्राप्त होता है.
✤ त्रिकोण कुण्ड :-
इस यज्ञ कुंड का निर्माण त्रिभुज के आकार में किया जाता है. इस यज्ञ कुण्ड का विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय पाने और उन्हें परास्त करने के लिए किया जाता है.
✤ वृत्त कुण्ड :-
वृत्त कुण्ड गोल आकृति लिए हुए होता है। इस कुण्ड का विशेष रूप से जन-कल्याण, देश में सुख-शांति बनाये रखने आदि के लिए किया जाता है. इस प्रकार के यज्ञ कुण्ड का प्रयोग प्राचीन काल में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि किया करते थे।
✤ समअष्टास्त्र कुण्ड :-
इस प्रकार के अष्टाकार कुण्ड का प्रयोग रोगों के निदान की कामना लिए किया जाता है। सुखी, स्वस्थ्य, सुन्दर और निरोगी बने रहने के लिए ही इस यज्ञ कुण्ड में हवन करने का विधान है।
✤ समषडस्त्र कुण्ड :-
यह कुण्ड छः कोण लिए हुए होता है. इस प्रकार के यज्ञ कुण्डों का प्रयोग प्राचीन काल में बहुत अधिक होता था। प्राचीन काल में राजा-महाराजा शत्रुओं में वैमनस्यता का भाव जाग्रत करने के लिए इस प्रकार के यज्ञ कुण्डों का प्रयोग करते थे।
✤ चतुष्कोणास्त्र कुण्ड :-
इस यज्ञ कुण्ड का प्रयोग साधक अपने अपने जीवन में अनुकूलता लाने के लिए विशेष रूप से करता है। इस यज्ञ कुण्ड में यज्ञ करने से व्यक्ति की भौतिक हो अथवा आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति होती है।
✤ अति पदम कुण्ड :-
कमल के फूल के आकार लिए यह यज्ञ कुंड अठारह भागों में विभक्त दिखने के कारण अत्यंत ही सुन्दर दिखाई देता है। इसका प्रयोग तीव्रतम प्रहारों व मारण प्रयोगों से बचने हेतु किया जाता है
✦ हवन कुंड की बनावट :-
हवन कुंड में तीन सीढियाँ होती हैं। जिन्हें “मेखला” कहा जाता हैं।
हवन कुंड की इन सीढियों का रंग अलग – अलग होता हैं।
1. हवन कुंड की सबसे पहली सीधी का रंग सफेद होता हैं।
2. दूसरी सीढि का रंग लाल होता हैं।
3. अंतिम सीढि का रंग काला होता हैं.
ऐसा माना जाता हैं कि हवन कुंड की इन तीनों सीढियों में तीन देवता निवास करते हैं।
1. हवन कुंड की पहली सीढि में विष्णु भगवान का वास होता हैं।
2. दूसरी सीढि में ब्रह्मा जी का वास होता हैं।
3. तीसरी तथा अंतिम सीढि में शिवजी का वास होता हैं।
✦ आहुति के अनुसार हवन कुंड :-
1. अगर अगर आपको हवन में 50 या 100 आहुति देनी हैं तो कनिष्ठा उंगली से कोहनी (1 फुट से 3 इंच )तक के माप का हवन कुंड तैयार करें।
2. यदि आपको 1000 आहुति का हवन करना हैं तो इसके लिए एक हाथ लम्बा (1 फुट 6 इंच ) हवन कुंड तैयार करें
3. एक लक्ष आहुति का हवन करने के लिए चार हाथ (6 फुट) का हवनकुंड बनाएं।
4. दस लक्ष आहुति के लिए छ: हाथ लम्बा (9 फुट) हवन कुंड तैयार करें।
5. कोटि आहुति का हवन करने के लिए 8 हाथ का (12 फुट) या 16 हाथ का हवन कुंड तैयार करें।
7. यदि आप हवन कुंड बनवाने में असमर्थ हैं तो आप सामान्य हवन करने के लिए चार अंगुल ऊँचा, एक अंगुल ऊँचा, या एक हाथ लम्बा – चौड़ा स्थण्डिल पीली मिटटी या रेती का प्रयोग कर बनवा सकते हैं।
8. इसके अलावा आप हवन कुंड को बनाने के लिए बाजार में मिलने वाले ताम्बे के या पीतल के बने बनाए हवन कुंड का भी प्रयोग कर सकते हैं।
जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं?
कितने लोग और किस प्रकार के लोग की आप सहायता ले सकते हैं? कितना हवन किया जाना हैं?
हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं?
क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े?
किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं?
किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं?
किस प्रकार की हवन सामग्री का उपयोग करना हैं?
दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं?
कुछ और आवश्यक सावधानी?
✦ हवन में कितनी आहुतियां दी जाए?
शास्त्रीय नियम तो दसवें हिस्सा का हैं। इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे 1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 = 125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति। (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100 गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 सेकंड लगे तब कुल 12,500 * 15 = 187500 सेकंड मतलब 3125 मिनट मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं?
हवन में क्या अन्य व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका उतर हैं हाँ। पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहन हो तो अति उत्तम हैं। जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं।
क्या कोई और उपाय नही हैं? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन किया जा सकता हैं। मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे। यह एक साधक के लिए संभव हैं।
हवन भी यदि संभव ना हो तो? साधक किराए के मकान में या फ्लैट में रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही है तब साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता है संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ। इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं। पर इस केस में शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे।
✦ स्रुक स्रुव क्या है?
ये आहुति डालने के काम मे आते हैं। स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए। इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए। ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं।
✦ हवन किस चीज का किया जाना चाहिये?
▪️ शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का।
▪️ पुष्टि क्रम में बेलपत्र चमेली के पुष्प घी।
▪️ स्त्री प्राप्ति के लिए कमल से।
▪️ दरिद्रता दूर करने के लिये दही और घी का।
▪️ आकर्षण कार्यों में पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से।
▪️ वशीकरण में चमेली के फूल से।
▪️ उच्चाटन मे कपास के बीज से।
▪️मारण कार्य में धतूरे के बीज से हवन किया जाना चाहिए।
✦ हवन में 7 दिशा क्या होना चाहिए ?
▪️ साधरण रूप से जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम में बैठे और उनका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिये। यह भी विशद व्याख्या चाहता है। यदि षट्कर्म किये जा रहे हो तो
▪️ शांति और पुष्टि कर्म में पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे।
▪️ आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण में हो।
▪️ विद्वेषण मे नैऋत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण में रहे।
▪️ उच्चाटन मे अग्नि कोण में मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे।
▪️ मारण कार्यों में दक्षिण दिशा में मुंह और दक्षिण दिशा में हवन कुंड हो।
✦ किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए?
▪️ शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या तांबे का हवन कुंड होना चाहिए।
▪️ अभिचार कार्यों में लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
▪️ उच्चाटन में मिटटी का हवन कुंड।
▪️ मोहन् कार्यों में पीतल का हवन कुंड।
▪️ तांबे के हवन कुंड में प्रत्येक कार्य में उपयोग किया जा सकता है।
✦ किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए?
▪️ शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये।
▪️ पुर्णाहुति मे शतमंगल नाम की।
▪️ पुष्टि कार्योंमे बलद नाम की अग्नि का।
▪️ अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का।
▪️ वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये।
✦ हवन में कुछ ध्यान योग बातें :-
▪️ नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें।
▪️ यदि शमशान में हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर में न लाये।
▪️ दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखें।
▪️ दीपक में या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें।
▪️ घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग में और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए।
▪️ शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें।
▪️ यज्ञ कुंड के ईशान कोण में कलश की स्थापना करें।
▪️ कलश के चारों ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें।
▪️ हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए।