🔺Lord Macaulay who “ruined” the system of गुरुकुल in bharat
क्यूँ सबको एक ही शिक्षा देना चाहते थे अंग्रेज़ी राज्य वाले ?
क्या भारत में पुनर्जीवित होना चाहिए गुरुकुल
लॉर्ड मैकाले (Lord Macaulay) ने 10 जून, 1834 को गवर्नर जनरल की काउंसिल के कानूनी सदस्य के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया था।
मैकाले ने माना कि, संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी अधिक उपयोगी और व्यवहारिक है।
गुरुकुल में निर्माण के सर्वतोमुखी विकास करने का सर्वज्ञान था , ऋषि-महर्षियों द्वारा प्रस्थापित पुरूषों की 72 कलाओं और महिलाओं की 64 कलाओं पर आधारित प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी 'ज्ञानी', 'गुणीयल', 'सक्षम', 'बुद्धिमान्' और 'चरित्र्यवान्' बनता हैं।
अंग्रेजों ने 150 वर्षों से भी कम समय में गलत इतिहास और भ्रामक शिक्षा द्वारा हिन्दुओं की भव्यता, धर्म, संस्कृति, चरित्र और गौरव का खंडन कर, अंग्रेजी संस्कृति के आराधक वर्ग को तैयार कर लिया। यह अल्पसंख्यावाला वर्ग 60 करोड़ जैसी विराट बहुसंख्यक प्रजा के सिर पर विदेशी संस्कृति, आचार-विचार, रहन-सहन, रुचि-अरुचि, विचारशैली और अर्थ-व्यवस्था थोप देने के लिए रात-दिन प्रयत्नशील रहा।
🔺अंग्रेज इतिहासकार का प्रमाण
अंग्रेज इतिहासकार लडर्लान 'भारत का इतिहास' नामक अपनी पुस्तक में जिक्र करता है कि – 'जिस गाँव में पुराना संगठन (पंचायतें) टिका हुआ है वहाँ प्रत्येक बालक लेखन, पठन और गणित कार्य अच्छी तरह जानता है
उनका 'One World' यानी 'एक ही विश्व' (गोरों का राज्य) और और 'One Religion' अर्थात् 'एक ही धर्म' (ईसाई धर्म) का स्वप्न पूरा हो पाए।
Report of Select Committee on the Affairs of the East India Co. Published in 1832)
इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि अंगेजों ने भारत पर अपना प्रभुत्व जमाने से पूर्व की हमारी शिक्षा व्यवस्था की पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी।
डॉ एण्डबेल नामक एक प्रसिद्ध अंग्रेज शिक्षाशास्त्री ने भारत की शिक्षा व्यवस्था का अभ्यास कर इंग्लैण्ड में उस पद्धति का अमल किया था। उसके अच्छे परिणाम देखकर ईस्ट इण्डिया कंपनी के नियामकों ने 3 जून 1814 के रोज बंगाल के गर्वनर जनरल को एक पत्र लिखा कि 'शिक्षा की जिस पद्धति का प्रयोग भारत के आचार्यों द्वारा पूर्व से जारी है, उसी पद्धति के आधार पर हमारी शालाओं में भी शिक्षा दी जानी चाहिए, क्योंकि उससे शिक्षा-पद्धति अति सरल और सुगम हो पाती हैं।
भारत की सुव्यवस्थित प्रख्यात विद्यापीठों और गावों कि शिक्षा संस्थाओं को देखते ही देखते खात्मा कर दिया गया।
भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गए?
1858 में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकाले ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने वहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा अधिकारी था Thomas Munro दोनों ने अलग-अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आस-पास की बात है। Litnar जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा था कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है, और उस समय जब भारत 60/78 में इतनी साक्षरता थी और मैकॉले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी 'देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था' को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह 'अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था' लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे और मैकॉले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा हैं 'जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।' इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता, जो समाज की तरफ से होती थी, वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम-घूम कर खत्म कर दिया, उनमें आग लगा दी, उसमें पढाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला।
1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 17 लाख 50 हजार,अर्थात् हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में 'Higher Learning Institute' हुआ करते थे, और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलकर चलाते थे, न कि राजा, महाराजा। इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। किन्तु सारे गुरुकुलों को खत्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेन्ट स्कूल खोला गया, उस समय इसे 'फ्री स्कूल' कहा जाता था। इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी, बम्बई यूनिवर्सिटी, मद्रास यूनिवर्सिटि बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के जमाने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में है। मैंकॉले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी, बहुत मशहूर चिट्ठी है वो। उसमें वो लिखता है कि, 'इन कॉन्वेट स्कूलों में ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे किंतु दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में, अपनी संस्कृति के बारे में, अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नही मालूम होंगे। जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी.