नालंदा विश्वविद्यालय जलाये जाने की घटना का वर्णन सिराज ने अपने द्वारा लिखी पुस्तक तबकाते -नासरी मे किया है ..जो सन् 1260 मे पूरी हुई ! इसमें 1260 तक का सल्तनत का इतिहास है इसी किताब में बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के जलाये जाने की घटना का भी वर्णन है।
लेकिन भारत में कुछ ऐसे इतिहासकार पैदा हो गये ..जो मिन्हाजी सिराज की ताबकाते नासिरी को नहीं मानते ! क्यु नहीं मानते ??
इसके पीछे तर्क देते हैं कि....
ये किताब नालंदा विश्वविद्यालय जलाये जाने के 40 साल बाद लिखी गयी !
सिराज ने ..जिसके बताने के आधार पर लिखा था वो स्वयं खिलजी के साथ उस अभियान में गये थे !
तो ये तर्क दिया जाता हैं कि .. सिराज ने घटना को स्वयं नहीं देखा था...दो लोगों के बताने पर लिखा था !
अब वो पैदाईसी इतिहासकार... नालंदा के बारे में लिखी गयी उस तिब्बती किंवदंती वाली किताब को प्रमाण मानते हैं.. जो नालंदा के जलाये जाने की घटना के लगभग 500 साल बाद लिखी गयी !
जिसमें ये लिखा है कि.. दो लोगों ने तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त किया और फिर उस तात्रिक सिद्धि से नालंदा पर आग की बर्षा करा कर उसे जलाने लगे ..लेकिन कुछ पवित्र पुस्तको से पानी की वर्षा भी होने लगी ..जिससे कुछ पुस्तकें बच गयी !!
इन ऐजेंडेबाज लोगो को...नालंदा पर आक्रमण के 500 वर्ष बाद की कहानी मे बतायी गयी...तांत्रिक सिद्धि ..उससे होने वाली अग्नि वर्षा..फिर पुस्तको से पानी की वर्षा ...ऐथेंटिक लगता हैं... लेकिन घटना के 40 वर्ष बाद ..उन व्यक्तियो के हवाले से , जो नालंदा पर आक्रमण के अभियान में साथ थे..लिखा गया तथ्यात्मक बात एथेंटिक नहीं लगती !
शिक्षा की दुनिया में ऐसे हरामखोरी का उदाहरण शायद ही दूसरा कही मिलता हो ? इन हरामखोरो का उद्देश्य कभी तथ्यात्मक जानकारी देना नहीं होता है...बल्कि एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना होता हैं.. जो ब्राह्मणवाद ,मनुवाद आदि के विरोध के नाम पर किसी का भी पिछवाड़ा ..थाम कर चलने को तैयार हो जाये !