आखिर वो कौन मां बाप हैं जो MP जैसे राज्य में अपने बच्चों को मदरसों में पढ़ाते हैं ? आखिर स्कूलों को छोड़ मदरसों में क्यों पढ़ाते हैं हिंदू अपने बच्चों को? क्या कारण है? NCPCR ने सवाल उठाए लेकिन कांग्रेस को इससे कोई ऐतराज नहीं। आखिर मदरसों में जहां मजहबी तालीम दी जाती है वहां हिंदू बच्चे क्या पढ़ते होंगे? क्या ये सीधे सीधे शिक्षा के नाम पर धर्मांतरण नही? आखिर हिंदू समाज सेकुलर बनने के चक्कर में किस हद तक मूर्खता करेगा?
मध्य प्रदेश के मदरसों में 9417 हिंदू बच्चे पढ़ रहे हैं जिन्हें उर्दू के साथ इस्लाम की तालीम दी जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन मदरसों को प्रदेश सरकार आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रही है। मदरसों में न सुरक्षा के इंतजाम हैं न ही एनसीईआरटी की शिक्षा व्यवस्था ही लागू है। यह पर्दाफाश राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने किया है।
NCPCR ने प्रदेश सरकार से हिंदू बच्चों को तत्काल मदरसों से बाहर निकालकर स्कूलों में प्रवेश दिलाने की मांग करते हुए कहा कि हम पहले भी मदरसों का सर्वे और मैपिंग कराने की मांग कर चुके हैं। इसमें यह भी देखा जाना चाहिए कि मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षक निर्धारित शैक्षिक योग्यता पूरी करते हैं या नहीं।
कानूनगो ने शुक्रवार को प्रदेश में बाल संरक्षण की स्थिति जानने के लिए 12 विभागों के साथ समीक्षा बैठक भी की। इस दौरान वक्फ बोर्ड ने जानकारी दी कि प्रदेश में चार यतीम खाने संचालित हैं, लेकिन यह किशोर न्याय अधिनियम के तहत शासन में पंजीकृत नहीं हैं। ऐसे सभी मुद्दों को लेकर आयोग ने 18 जून को मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को रिपोर्ट के साथ तलब किया है।
आयोग ने प्रदेश के डिंडौरी व दमोह में सरकारी मदद से चल रहे मिशनरी आश्रमों और एनजीओ की जानकारी भी मांगी है। मध्य प्रदेश में ऐसे 56 आश्रम व 30 स्कूल संचालित हैं। कानूनगो ने बताया कि मध्य प्रदेश में लगभग एक हजार बच्चे एचआईवी पीड़ित हैं। पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत 2221 मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन प्रदेश में ऐसे मामले अधिक हैं। इनकी हम जांच करेंगे। आयोग ने पुलिस मुख्यालय से ऐसे बच्चों का डेटा और दर्ज प्रकरणों की जानकारी मांगी है।