'शरीरं प्रााणिनां लोके यथा पित्तकफानिलैः। व्याप्तमेभिस्त्रिभिर्दोषैस्तथा व्याप्तं त्रिभिर्गुणैः ।।
त्रिभिरेतैर्गुणैर्युक्त लोके कर्म प्रवर्तते ।।
महा. भा. अनु. पर्व. 145 पृ. 5975
*मन्त्र चिकित्सा*
वैदिक काल में यज्ञ, होम आदि का बाहुल्य था। अतः मन्त्रों को बहुत प्रभावी माना जाता था। चिकित्सा के क्षेत्र में मन्त्र तथा औषधियों दोनों का ही प्रयोग प्राचीन काल से आज तक चला आ रहा है। मन्त्रों द्वारा की गयी चिकित्सा के अनेक उदाहरण महाभारत में मिलते हैं जिससे स्पष्ट हो जाता है कि महाभारत काल में मन्त्र चिकित्सा की जाती थी। इस सन्दर्भ में मन्त्र तथा औषधि का प्रयोग करने वाले चिकित्सक का उदाहरण देते हुए संजय द्वारा धृतराष्ट्र के समक्ष कर्ण तथा पाण्डवों और पांचालों के युद्ध का उल्लेख किया गया है।इस सन्दर्भ में आदि पर्व में आदि पर्व में राजा परीक्षित को तक्षक नाग द्वारा डसे जाने की कथा का उल्लेख मिलता है जिसमें राजा परीक्षित द्वारा अपने राज्य में वैद्यों तथा मन्त्र सिद्ध ब्राह्मणों की नियुक्ति किये जाने का उल्लेख किया गया है।इससे प्रतीत होता है कि महाभारत काल में मन्त्र द्वारा चिकित्सा करने वाले व्यक्तियों को राजा द्वारा आश्रय मिलता था तथा यह चिकित्सा अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी जाती थी।
महाभारतकार द्वारा महाभारत में अनेक स्थानों पर मन्त्र चिकित्सा का उल्लेख यह दर्शाता है कि उस काल में वैदिक मन्त्रों द्वारा चिकित्सा करने की प्रथा थी। आज भी भारत में मन्त्रों द्वारा सांप, बिच्छू आदि के डंसने की चिकित्सा की जाती है।
*मणि चिकित्सा*
प्राचीन वैदिक काल से मणि द्वारा चिकित्सा की जा रही है। इस सन्दर्भ में आयुर्वेद में अनेक मणियों का उल्लेख मिलता है। यथा यव मणि, फालमणि, दर्भमणि, औदुम्बर मणि, शङ्खमणि, शतवार मणि आदि। महाभारत में भी मणि द्वारा चिकित्सा किये जाने का उल्लेख मिलता है। इस सन्दर्भ में आश्वमेधिक पर्व में उलूपी द्वारा संजीवनी मणि के प्रयोग से अर्जुन को जीवित करने की कथा का उल्लेख महात्मा वैशम्पायन द्वारा राजा जनमेजय के प्रति किया गया जिससे प्रतीत होता है कि महाभारत काल में मणि चिकित्सा प्रचलित थी। इस समस्त विवरण से स्पष्ट होता है कि महाभारत काल में अष्टांग चिकित्सा त्रिदोष चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा और मणि चिकित्सा का विकास हुआ दशा में थी।
'रक्षां च विदधे तत्र भिषजश्वौषधानि च।
ब्राह्मणान् मन्त्रसिद्धांश्च सर्वतो वैन्ययोजयत्।।
• सं. विज्ञा. पृ. 124
- महा. भा. आदि. पर्व. 42.30 -
* अयं तु मे मणिर्दिव्यः समानीतो विशाम्पते।
मृतान् मृतान् पन्नगेन्द्रान् यो जीवयति नित्यदा।।
चिरसुप्त इवोत्तस्थौ मृष्ढलोहित लोचनः ।।
- महा. भा. आश्व. पर्व. 80.49-52
*महाभारत तथा चिकित्सा के साधन*
महाभारत काल में चिकित्सा विज्ञान अत्यन्त विकसित था। अतः उस काल में चिकित्सा सम्बन्धी अनेक साधन जैसे औषधि, पट्टी. प्रसूतिकागार आदि की समुचित व्यवस्था थी।
औषधि के सन्दर्भ में महाभारत के अनुशासन पर्व में अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है यथा औषधि को ईश्वर रूप माना जाता था। इसी कारण महाभारत में विष्णु सहस्रनामस्तोत्र में विष्णु का एक नाम 'भेषजम्' तथा 'भिषक्' मिलता है।' औषधियों का स्वामी चन्द्रमा कहलाता था क्योंकि चन्द्र किरणों से ही औषधियां पल्लवित तथा पुष्पित होती हैं। ऐसा वर्णन दुर्योधन द्वारा भीष्म को सेनापति के पद पर नियुक्त करते हुए किया गया है। औषधियों के महत्व के सन्दर्भ में वन पर्व में धर्म व्याध द्वारा ऋषि कौशिक के प्रति कथन मिलता है कि शारीरिक कष्ट का निवारण औषध सेवन से ही होता औषधियां नगर के बाहर, पर्वतों आदि स्थानों पर उत्पन्न होती हैं किन्तु विशेष रूप से गृहस्थों द्वारा किये जाने वाले यज्ञ से बने मेघ तथा वर्षा पर यह निर्भर करती है। ऐसा वर्णन प्रवृत्ति-निवृत्ति के सन्दर्भ में स्यूमरश्मि के द्वारा कपिल मुनि के प्रति किया गया है। महर्षि व्यास ने महाभारत में नाना प्रकार की औषधियों का उल्लेख किया है,
यथा-
• त्रिसामासामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक्
महा. भा. अनु. पर्व. 149.75
• रश्मिवतामिवादित्यो वीरुधामिव चन्द्रमाः ।
कुमार इव देवानां वसूनामिव हव्यवाट् ।।
- महा. भा. उद्यो. पर्व. 156.12-13
• प्रज्ञया मानसं दुःखं हन्याच्छारीरमेषिधैः ।
महा. भा. वन पर्व. 216.17
• यास्तु स्युर्बर्हिरोषध्यो बहिरन्यास्तथाद्रिजाः ।
ओषधिभ्यो बहिर्यस्मात् प्राणात् कश्विन्न दृश्यते।।
महा. भा. शान्ति. पर्व. 269.9
1. महाभारत के द्रोण पर्व में 'सञ्जीवन' नामक औषधि का उल्लेख मिलता है।' यह औषधि पुनर्जीवित करने के लिए प्रयोग की जाती है। इस सन्दर्भ में वाल्मीकि रामायण में सञ्जीवनी, विशल्यकरणी, सुवर्णकरणी आदि औषधियों का उल्लेख मिलता है।
2. महाभारत के अनुशासन पर्व में 'वच' नामक औषधी का उल्लेख प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्मसम्बन्धी रहस्य के वर्णन में मिलता है जिसके अनुसार, वच नामक औषधी को धारण करने वाले व्यक्ति पर रोग आक्रमण नहीं करते हैं। 3. महाभारतकार ने 'घी' को सर्वोत्तम औषधि के रूप में व्यक्त किया है। इस सन्दर्भ में भीष्म द्वारा विभिन्न वस्तुओं के दान की महिमा में उल्लेख मिलता है। घी एक ऐसा पदार्थ है जिसमें शैत्य अथवा उष्णता का प्रसरण शीघ्रता से नहीं होता अतः इसी कारण कौरवों के जन्म के समय व्यास ऋषि ने गांधारी को मांसपिण्ड से निकले बीजों को घृत से भरे पात्रों में रखने का निर्देश दिया। क्योंकि घी में तापमान समान बना रहता है जोकि शिशु बीजों के लिए उपयुक्त होता है। इसी प्रकार वाल्मीकि रामायण में सगर पुत्रों को धायों द्वारा घी से भरे घड़ों में संवर्धन तथा पोषण हेतु रखे जाने का उल्लेख मिलता है।
4. महाभारतकार ने 'अन्न' को औषधि के रूप में व्यक्त किया है। अन्न से रोगों का नाश होता है। शरीर के पञ्चतत्त्वों को पोषण मिलता है तथा इसकी कमी से बलवानों के बल भी क्षीण हो जाते हैं। ऐसा उल्लेख भीष्म द्वारा अन्न की महिमा के सन्दर्भ में युधिष्ठिर के प्रति किया गया है।
5. महाभारत के वन पर्व में युधिष्ठिर द्वारा सूर्य की उपासना के प्रसङ्ग में सूर्य की किरणों को रोगनाशक औषधि के रूप में व्यक्त किया गया है।
6. महाभारत के सभा पर्व में दर्द निवारक तथा मूर्च्छानाशक औषधि का उल्लेख जरासंध तथा भीम के युद्ध के प्रसङ्ग में मिलता है।
7. महाभारतकार ने मूर्च्छा के सन्दर्भ जल को औषधि के रूप में व्यक्त किया है। इस सन्दर्भ में आदि पर्व में राजा संवरण की मूर्च्छा की चिकित्सा हेतु शीतल तथा सुगन्ध युक्त जल के छिड़काव का उल्लेख मिलता है।
8. महाभारतकार ने विषनाशक औषधि के सन्दर्भ में स्थावर विष को जङ्गम विष से नष्ट किये जाने का उल्लेख किया है। इस सन्दर्भ में भीम द्वारा ग्रहण किये गये विषयुक्त भोजन को नागों के विष से दूर किये जाने का उल्लेख आदि पर्व में मिलता है
9. महाभारत के कर्ण पर्व में औषधियों से युक्त रसायन का उल्लेख दुर्योधन द्वारा तारकाक्ष के पुत्र हरि के वर प्राप्त करने के वृतान्त में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मदेव के वरदान रूप मिली बावड़ी में विशेष औषधि के घोल में स्नान करते ही शस्त्राघात से मरे हुए दैत्य और भी प्रबल होकर जीवित हो जाते थे।
इसी प्रकार विशेष रसायन के घोल में स्नान करके महर्षि च्यवन ने पुनर्योवन प्राप्त किया था।
इस समस्त विवरण से प्रतीत होता है कि महाभारतकाल में नाना प्रकार की औषधियों का प्रयोग चिकित्सा हेतु किया जाता है
10. अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य माने गये हैं। महाभारत के शान्ति पर्व में भीष्म पितामह द्वारा दक्ष यज्ञ के सन्दर्भ में अश्विनी कुमारों की चर्चा की गयी है।इसी पर्व में नारद मुनि द्वारा अश्विनी कुमारों के लिए नासत्य और 'दस्र' नाम का प्रयोग किया गया है।
11. महाभारत के अनुशासन पर्व में शिव सहस्रनाम स्तोत्र में एक नाम धन्वंतरि आता है। इससे पता चलता है कि धन्वंतरि सबसे पुराने चिकित्सक थे।
12. महाभारत के आदि पर्व में प्राचीन वैद्य आत्रेय पुनर्वसु के पिता महर्षि अत्रि तथा कश्यप के पिता महर्षि मरीचि को भाई के रूप में वर्णन किया गया है।
13. महाभारत के आदि पर्व में विष वैद्य अर्थात् अङ्गद तंत्र के ज्ञाता के रूप में महर्षि कश्यप का उल्लेख मिलता है। ऐसा वर्णन तक्षक द्वारा राजा परीक्षित को डंसे जाने के सन्दर्भ में किया गया है।
इस समस्त विवरण से प्रतीत होता है कि महाभारत कालीन चिकित्सक परम्परा वैदिक कालीन चिकित्सक परम्परा का अनुसरण करती है
तथा देवा महात्मानो वसवश्वामि तौजसः ।
तथैव च महात्मानवश्विनौ भिषजां वरौ ।।
महा. भा. शान्ति पर्व. 283.8
* नासत्यं चैव दखं च भिषजौ पश्य पृष्ठतः।
वही. 339.53
• धन्वन्तरिधूमकेतुः स्कन्दो वैश्रवणस्तथा ।
- महा. भा. अनु. पर्व. 17.104
'ब्राह्मणो मानसाः पुत्रा विदिताः षण्महर्षयः । मरीचिरव्यङ्गिरसी पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः ।।
महा. भा. आदि पर्व 65.10
अहं स तक्षको ब्रह्मस्तं धक्ष्यामि महीपतिम् ।
करिष्यामिति में बुद्धिर्विद्या बल समन्विताः ।।
- वही. 42. 40-41