।। जीवो ब्रह्मव नापरः ।।
वास्तव मेंजीवात्मा परमात्मा मे कोई अन्तर नहीं है। (BG VERSE 5 CHAPTER 7)
ऋषियों द्वारा बताई गई विभिन्न साधना विधियों को जीवन में अपना कर जीव ब्रह्म एक स्थिति का आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। ब्रह्म विद्या का ठीक ठीक प्रयोग करके आज भी प्रत्येक व्यक्ति थोड़े से प्रयत्न द्वारा परलोक और दिव्य आत्माओं के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
मन की शक्ति अनन्त है। मन की एकाग्रता से छोटी बड़ी अनन्त शक्तियां प्राप्त की जा सकती हैं। मन की शान्त स्थिति मान बिन्दु स्तर भिन्न-भिन्न है और मन की एकाग्रता की स्थिति विशेषों में अलग-अलग प्रकार के चमत्कार उत्पन्न होते हैं।
अहं ब्रह्मस्मि ….
महा वाक्यों का निरन्तर विचार करते हुए, संयम सहित निष्ठारूढ़ हो साधक तत्वज्ञान स्वरूप उस पर ब्रह्म परा सत्ता में प्रवेश कर तदाकार तद्रूप होने में सन्देह नहीं रहता।
।। ब्रह्य वेद ब्रह्मैव भवति ।।
यह उपदेश उपनिषदों मे जीव मात्र के लिये परम अभयोदय कारक अमूल्य निधि है। वास्तव में इस प्रकार के निरन्तर चिन्तन से जीव का ब्रह्म से प्रतिपादन सम्भव हो जाता है।
विधि
साधक के सोने का कमरा बिल्कुल अलग होना चाहिये। साधक का बिस्तर, पहनने के वस्त्र भी बिल्कुल साफ सुथरे होने चाहिए।
चारपाई की अपेक्षा शयन के लिए तख्त अच्छा रहेगा। सोने से पहले 15 मिनट का ॐ का जाप तथा हृदय में सूर्य जैसे प्रकाश के साथ करें, और उस ध्यान में अपने आप को पूर्ण एकाग्र करने का प्रयत्न करें। इसके पश्चात् शान्त होकर लेट जाइए। विचार करिये, आप के स्थूल शरीर से निकल कर सूक्ष्म शरीर बाहर आ गया है, साधक को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि उसका सूक्ष्म शरीर बहुत शक्तिशाली है, वह बिना किसी रोक टोक के कहीं भी और कितनी भी दूर आ जा सकता साथ ही यह भी जान लेना होगा कि आप अपनी सूक्ष्म स्थिति में स्थूल तथा सूक्ष्म जगत को अच्छी प्रकार देख सकते हैं।
जब आपकी कल्पना के साथ सोने के अनन्तर आपका सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से बाहर आ जावे तो आपको पहले किसी पूर्व परिचित स्थान पर पहुँचने का संकल्प करना चाहिये। नित्य ऐसा विचार करते हुए शयन करना चाहिये।
आप देखेगें कि कुछ दिन के अनन्तर ही प्रातः सोकर उठने के बाद आपको यह ज्ञान रहेगा कि रात्रि को आप स्वप्न स्थिति में कहाँ-कहाँ गये थे। इसके बाद आप अपने किसी मित्र के यहां पहुँचने का विचार करते हुए शयन करें, कुछ ही समय में आप देखेंगे कि आप उस मित्र के यहां पहुंच गये थे। फिर दिन में अपने उस मित्र से वार्तालाप करके रात्रि मे उसके घघर मे देखी वस्तुओं के बारे में मालूम करें तो आपको विश्वास हो जायेगा कि मित्र के घर में स्वप्न स्थिति में जो और जैसी वस्तु जहां रखी हुई तथा जिस रंग की देखी है वह सब मित्र के बताने पर सत्य सिद्ध हुई।
इसी प्रकार नित्य विभिन्न स्थानों पर सूक्ष्म शरीर के द्वारा आना-जाना आरम्भ कर दीजिए। फिर यह अभ्यास दृढ़ हो जाने पर जिनके यहां पहुंचे उन्हें कुछ कहने अथवा जगाने का प्रयत्न करें। कुछ समय के अनन्तर आप में यह शक्ति भी जाग्रत हो जायेगी। इसी प्रकार आप संकल्प करें कि अब मुझे परलोक के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करना है, मैं अपने बाबा, दादा, मित्र आदि पूर्व परिचित आत्माओं से अवश्य मिलूंगा। आज उनसे अवश्य वार्तालाप स्वप्न स्थिति में होगा। इस अभ्यास को अच्छी प्रकार परिपक्व स्थिति में पहुंचा ले तो आगे का मार्ग खुल जाते है
इसके बाद अन्य विभिन्न आत्माओं से धीरे-धीरे सम्पर्क करें और उनके सतसंग का लाभ उठाएं। विभिन्न आत्माओं के सम्पर्क से नई जानकारी प्राप्त होगी।
इसके उपरान्त विभिन्न लोकों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प करें। बड़ी-बड़ी उच्च आत्माओं, ऋषि, मुनियों, सन्तों से सम्पर्क बनाने के लिए आपको परम सात्विक जीवन बनाने का प्रयत्न करना होगा। सरल साधक स्वभाव रखें, भोजन भी शुद्ध पवित्र करें। यदि आपका जीवन साधनामय हो तो आपको इस मार्ग के अग्रसर होने में सरलता होगी। ध्यान,योग, ब्रह्मचर्य,उच्च कोटि आचरण,दया, उच्च विचार एवं जाप मनुष्य से योगी बना देता है.