🚩महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) अवतरण दिवस पर कोटि कोटि नमन, वंदन🙏
🤺सिर‘ कटने के बाद भी लड़ता रहा था राजस्थान के इस वीर का ‘धड़‘, बड़े-बड़े दुश्मनों को चटाई थी धूल
🚩मेवाड़ योद्धाओं की भूमि है, यहाँ कई शूरवीरों ने जन्म लिया और अपने कर्तव्य का प्रवाह किया । उन्ही उत्कृष्ट मणियों में से एक थे राणा सांगा । पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह । वैसे तो मेवाड़ के हर राणा की तरह इनका पूरा जीवन भी युद्ध के इर्द-गिर्द ही बीता लेकिन इनकी कहानी थोड़ी अलग है । एक हाथ , एक आँख, और एक पैर के पूर्णतः क्षतिग्रस्त होने के बावजूद इन्होंने ज़िन्दगी से हार नही मानी और कई युद्ध लड़े ।
🚩ज़रा सोचिए कैसा दृश्य रहा होगा जब वो शूरवीर अपने शरीर मे 80 घाव होने के बावजूद, एक आँख, एक हाथ और एक पैर पूर्णतः क्षतिग्रस्त होने के बावजूद जब वो लड़ने जाता था। कोई योद्धा, कोई दुश्मन इन्हें मार न सका पर जब कुछ अपने ही विश्वासघात करे तो कोई क्या कर सकता है ।
🚩उदयपुर में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। राणा सान्गा का पुरा नाम महाराणा सग्रामसिन्ग था। राणा सान्गा ने मेवाड मे १५०९ से १५२७तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान प्रदेश के रेगिस्थान मे स्थित है।राणा सान्गा सिसोदिआ(सुर्यवन्शी राजपुत) राजवन्शी थे। राणा सान्गा ने विदेशी आक्रमणकारियो के विरुध सभी राज्पुतो को एकजुट किया। राणा सान्गा सही मायनो मे एक बहादुर योद्धा व शासक थे,और जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिध्द हुये।
🚩राणा रायमल के बाद सन १५०९ राणा सान्गा मेवाड केउत्तरधिकारी बने। इन्होने दिल्ली, गुजरात,व मालवा मुगल बादशाहो के आक्रमणो से अपने राज्य कि बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तीशाली हिन्दू राजा थे। इनके शासनकाल मे मेवाड अपनी समृद्धि कि सर्वोच्च ऊचाई पर था। इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे। इनके शासनकाल मे मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की रक्षा तथा उन्नति की।
🚩राणा सांगा अदम्य साहसी थे। एक भुजा, एक आंख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना धेर्य और पराक्रम नहीं खोया।
🚩एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युद्ध जरूर हारे, लेकिन उन्होंने अपने शौर्य से दूसरों को प्रेरित किया। इनके शासनकाल में मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊंचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह सांगा ने अपने राज्य की रक्षा तथा उन्नति की। सांगा ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। वे मांडलगढ़ क्षेत्र में मुगल सेना पर तलवार से गरजे थे। कहते हैं कि युद्ध में महाराणा का सिर माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) की धरती पर गिरा, लेकिन घुड़सवार धड़ लड़ता हुआ चावण्डिया तालाब के पास वीरगति को प्राप्त हुआ।
अस्सी घाव लगे थे तन पे ।
फिर भी व्यथा नहीं थी मन में ।।
🚩राणा साँगा की प्रसिद्धि और बयाना जैसी बाहरी मुग़ल छावनियों पर उसकी प्रारम्भिक सफलताओं से बाबर के सिपाहियों का मनोबल गिर गया। उनमें फिर से साहस भरने के लिए बाबर ने राणा साँगा के ख़िलाफ़ 'जिहाद' का नारा दिया। लड़ाई से पहले की शाम उसने अपने आप को सच्चा मुस्लिम सिद्ध करने के लिए शराब के घड़े उलट दिए और सुराहियाँ फोड़ दी। उसने अपने राज्य में शराब की ख़रीद-फ़रोख़्त पर रोक लगा दी और मुसलमानों पर से सीमा कर हटा दिया। बाबर ने बहुत ध्यान से रणस्थली का चुनाव किया और वह आगरा से चालीस किलोमीटर दूर खानवा नामक स्थान पर पहुँच गया। पानीपत की तरह ही उसने बाहरी पंक्ति में गाड़ियाँ लगवा कर और उसके साथ खाई खोद कर दुहरी सुरक्षा की पद्धति अपनाई। इन तीन पहियों वाली गाड़ियों की पंक्ति में बीच-बीच में बन्दूक़चियों के आगे बढ़ने और गोलियाँ चलाने के लिए स्थान छोड़ दिया गया।
🤺'खानवा की लड़ाई' (1527) में ज़बर्दस्त संघर्ष हुआ। बाबर के अनुसार साँगा की सेना में 200,000 से भी अधिक सैनिक थे। इनमें 10,000 अफ़ग़ान घुड़सवार और इतनी संख्या में हसन ख़ान मेवाती के सिपाही थे। यह संख्या भी, और स्थानों की भाँति बढ़ा-बढ़ा कर कही गई हो सकती है, लेकिन बाबर की सेना निःसन्देह छोटी थी। साँगा ने बाबर की दाहिनी सेना पर ज़बर्दस्त आक्रमण किया और उसे लगभग भेद दिया। लेकिन बाबर के तोपख़ाने ने काफ़ी सैनिक मार गिराये और साँगा को खदेड़ दिया गया। इसी अवसर पर बाबर ने केन्द्र-स्थित सैनिकों से, जो गाड़ियों के पीछे छिपे हुए थे, आक्रमण करने के लिए कहा। ज़जीरों से गाड़ियों से बंधे तोपख़ाने को भी आगे बढ़ाया गया।
1. महाराणा सांगा हाथी पर युद्ध लड़ रहे थे, कि तभी एक सख्त तीर महाराणा के चेहरे पर लगा, जिससे वे बेहोश हो गए हलवद के झाला अज्जा महाराणा के छत्र-चंवर वगैरह धारण कर हाथी पर बैठकर युद्ध लड़ने लगे झाला अज्जा के भाई सज्जा व कुछ और सर्दार महाराणा सांगा को युद्धभूमि से दूर ले गए
2. इस लड़ाई में मेवाड़ की तरफ से मेदिनीराय जीवित रहा
3. युद्ध के बाद बाबर ने हिन्दुओं के कटे हुए सिरों की एक मीनार बनवाई
4. बाबर को खानवा के युद्ध में जीतने की कोई आस नहीं थी | तुजुक-ए-बाबरी में बाबर लिखता है "मैं इस्लाम के लिए इस लड़ाई के जंगल में आवारा हुआ और मैंने अपना शहीद होना ठान लिया था, लेकिन खुदा का शुक्र है कि गाज़ी बनकर जीता रहा"
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