बहुत से ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि मेहनत और ईमानदारी से काम करने के बावजूद हमारी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है जबकि बेईमान और भष्ट लोग दिन ब दिन धनी होते जा रहे हैं। इससे मन में निराश होता और लोगों ईमानदारी को बोझ समझकर उसी कीचर में उतरने की कोशिश करते हैं जिसमें डूबकर भ्रष्ट लोग धनवान हो रहे हैं। ऐसा करने से हो सकता है कि धन आ जाए लेकिन धर्म का लोप हो जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि धर्म की एक लौ भी संसार को रौशन कर देती है और अधर्म के कई मशाल मिलकर भी एक छोटे से हिस्से का अंधियारा दूर नहीं कर पाते। अगर सभी लोग भ्रष्टाचार में लिप्त होने लगे तो धर्म का पूरी तरह नाश हो जाएगा। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा गया है कि जब-जब धर्म का नाश होता है तब-तब धर्म की स्थापना के लिए मैं अवतार लेता हूं। भगवान का जब अवतार होता है तब महाभारत जैसी घटना होती है। राम रावण युद्ध होता है, जिसमें सैकड़ों करोड़ों लोगों को अपनी जान की अहूति देनी पड़ती है।
धर्म का नाश होने के बाद संसार का भी नाश होने लगता है, इसके बाद धन भी नहीं बचता है। इसलिए जरूरी है कि धर्म की रक्षा करें और ईमानदारी की लौ जलाए रखना जरूरी है। ईमानदारी के रास्ते में शुरू में कष्ट महसूस हो सकता है लेकिन अंत में संतोष रूपी अद्भुत धन मिलता है। इस धन से भले ही भौतिक चीज न खरीद सकें लेकिन इससे संसार की सबसे कीमती चीज यानी ईश्वर की भक्ति अवश्य प्राप्त कर सकते हैं।
ईमानदारी की शक्ति के संदर्भ में एक कथा प्रस्तुत है। एक ब्राह्मण थे, ईमानदारी एवं मेहनत से जो मिल जाए उसी से गुजारा कर लेते थे। इनके गांव में कई लोग थे जो बेईमानी और छल-कपट करके धनवान हो गये थे। ब्राह्मण की पत्नी अक्सर ताना देती थी कि, ईमानदारी का टोकरा लेकर घूमते रहो, कुछ सीखो गांव वालों से कैसे महले- दो महले बनते जा रहे हैं।
ब्राह्मण कहता कोई बात नहीं यह हमारे धर्म का ही प्रभाव है जो उनका धन बढ़ रहा है। एक दिन ब्राह्मणी चिढ़कर बोली तुम्हारे धर्म से तुम्हें लाभ नहीं मिल रहा दूसरे को कैसे लाभ मिल जाएगा। ब्राह्मण ने कहा चलो तुम्हें इसका सबूत दिखा देता हूं। इसके बाद ब्राह्मण ने गांव छोड़ने का मन बना लिया और घर में जो भी चीजें थी उन्हें गठरी में बांधकर यात्रा शुरू कर दी।
जब गांव की सीमा से बाहर निकल आए तो पीछे पलट कर देखा। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से पूछा घर में कुछ रह तो नहीं गया। ब्राह्मणी ने याद किया कि एक सूई रह गयी है। ब्राह्मण घर लौटकर आया और सूई लेकर वापस गांव की सीमा से बाहर निकल आया। इस बार जैसे ही उनसे पलट कर देखा तो पूरा गांव आग में जलता नज़र आया। सभी महले-दोमहले धू-धू करके जलते नज़र आये। ब्राह्मण ने कहा कि हमारे गांव छोड़ने के बाद भी हमारी सुई गांव की की रक्षा कर रही थी। जब हमारे धर्म और ईमानदारी से सूई में इतनी शक्ति आ गयी है तो हमारे गांव में रहने से लोग क्यों न उन्नत होंगे।