दुर्भाग्य यह नहीं है कि एक प्रचंड बहुमत की सरकार के मक्कार मुख्यमंत्री ने 'विश्वास मत' की बात की, बल्कि दुर्भाग्य यह है कि न्यायालय ने यह बात मान ली कि विश्वास मत उसी दिन रखा गया जिस दिन पेशी थी, और यह भी कि उसकी आवश्यकता थी और यह भी कि केजरीवाल को अब एक महीने आगे की तारीख़ दे दी गई।
ये आदमी मध्य प्रदेश चुनाव से अभी तक ED को नचा रहा है, और अब कोर्ट ने राहत दे दी। अब मार्च में आचार संहिता लागू होगी और नया बहाना होगा 'चुनाव प्रचार'। सत्य यह है कि कोर्ट यह नहीं देखेगी कि, उस पर कौन सा आरोप है। बल्कि वो यह देखेगी कि उसे प्रचार करना है। आप सोचिए कि आपको कोर्ट ने जाँच के लिए सहयोग देने को कहा, और आपने कहा कि आपको बच्चे पालने हैं, जॉब पर जाना है। कोर्ट कहे कि आप जा सकते हैं, जब बच्चे पल जाएँ तो आ जाइएगा।
ED वाले सोच रहे होंगे कि उन्होंने कोर्ट जा कर कितनी बड़ी गलती की, इनके वकील कितने निकम्मे होंगे, मैं यह सोच रहा हूँ। इसीलिए, जजों की संपत्ति सार्वजनिक होनी चाहिए, उनके परिजनों की भी संपत्ति सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि आम नागरिक को पता चल सके कि कौन सा निर्णय किस कारण से दिया गया है। *नया दिन, नया फ्रॉड - केजरीवाल*