वामपंथ @लिबरलों ने हमेशा समस्याओं का मार्केटिंग कर के पावर पाई है । कभी रोज़मर्रा की बातों को अस्तित्व की समस्या बना दिया । बाकी अलिंस्की तो कहते भी हैं कि समस्याएँ ढूंढो और उनको हवा दो।
फिर या तो वे आप को इग्नोर कर के आगे बढ़ते हैं या फिर आप को येन केन प्रकारेण निपटा देना जरूरी समझते हैं ।
असल में वामपंथ एक समस्याजीवी व्यवस्था है जो नयी नयी समस्या ढूँढता है, फिर उनके निर्माता ढूँढता है जिन्हें खलनायक गण शत्रु बनाकर प्रस्तुत किया जाये। नयी नयी इसलिए ढूँढता है क्योंकि पुराने से निपटना तो है ही नहीं, और फिर लोग बोर होने लगेंगे इसलिए नयी समस्या ढूँढी जाती है । पुरानी समस्याओं को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है ताकि कभी भविष्य में उसको दुबारा बेच सके।
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