आखिरकार यह राम काज कर कौन रहा है !! कभी 'एकांत' में
बैठकर "सोचा" है आप लोगों ने !?
आप लोगों को क्या लगता है कि 'हनुमान चालीसा' में भगवान तुलसीदास जी ने, यूंही नहीं लिख था कि 'विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर'. इस 'चोपाई" में कहा गया है कि हनुमान जी, हमेशा प्रभु श्रीराम जी के कार्य को करने के लिए आतुर रहते है. क्योंकि प्रभु श्रीराम जी की सेवा करना ही हनुमान जी का "परम धर्म" है..
तुलसीदास जी ने इस चोपाई में "महावीर हनुमानजी" के साथ-साथ राम काज किए हुए 'उन सभी' वानर सेना, नल-नील जी, जामवंत जी, सुग्रीव जी, विभीषण जी, जटायु जी, माता शबरी जी, केवट राज जी अंगद जी, निषादराज जी और "10 लाख" वानर सेना को भी सांकेतिक रूप में जोड़ा है....!! इस कथा की विषयवस्तु यह है कि, अब जो श्रीराम मंदिर बनाने के लिए "दिनरात" एक करके राम काज कर रहे हैं, वे सभी कौन हैं !? यह "भाग्य" हम और आप को क्यूं नहीं मिला !? प्रभु श्री राम जी के, वह "दस लाख वानर सेना" और उनके सभी 'साथी' कहां गए !? श्रीराम मंदिर की निर्माण में, छोटी से छोटी काम से लेकर 'बड़ी से बड़ी' राम काज कर रहे वे सभी कौन हैं ? यह सौभाग्य हम और आपको क्यूं नहीं मिला !?
श्रीराम मंदिर के लिए, पिछले 500 सालों से आजतक अपना प्राण न्यौछावर करने वाले, वे सभी लोग कौन थे !? एकान्त में "बैठकर" इस पर यदि आप अपनी "सोच" को जितनी "गहराई" तक लेते जाएंगे तो आप लोगों की हैरानी की सीमा नहीं रहेगी. बहुत सारे लोगों के पास 'करोड़ों' की संपत्ति है, लेकिन वे चाहते हुए भी 'अपना एक भी पैसा' राम काज के लिए दे नहीं पाए हैं !? मैं येसे बहुत सारे 'लोगों' से मिला हूं जो ये कहते हुए पाए गए हैं कि, हमारे पास इतनी धन-संपत्ति होते हुए भी, हम एक रूपए भी राम काज में 'योगदान' नहीं दे पाए हैं. लेकिन येसे कई सारे 'भिक्षुक' हैं जो भिक्षा में मीलों पैसे को राम काज के लिए योगदान दिया है... मेरे प्रभु को समझ पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है........!!
🙏 जय सियाराम 🙏