(श्री राम मंदिर के ताला खुलने से लेकर श्री रामशिला के शिलान्यास तक।)
वर्तमान समय में संपूर्ण देश रामभक्तिरूपी सागर में डूबा हुआ है। इसका कारण यह है कि 495 वर्षों के पश्चात् अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्म-स्थल पर ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का भव्य एवं विशाल मंदिर का निर्माण हो रहा है। कुछ लोगों को लगता है कि यह मंदिर सरकार बना रही है , तो कुछ लोग समझते हैं कि केवल सर्वोच्च न्यायालय के कारण ही मंदिर बन रहा है और तो कुछ लोग मंदिर के पुनर्निर्माण का श्रेय आरएसएस - बीजेपी - विश्व हिंदू परिषद को दे रहे हैं।
वास्तविकता जानने के लिए हमें श्री राम जन्मभूमि आंदोलन को जानना पड़ेगा।
तो आइए ! श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के संक्षिप्त इतिहास को जानने का प्रयास करते हैं।
1983 में मुजफ्फरनगर , उत्तर प्रदेश में हुए हिंदू सम्मेलन में दो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री गुलजारी लाल नंदा तथा उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री श्री दाऊ दयाल खन्ना ने केंद्र सरकार से कहा कि वह संसद में कानून बनाकर श्री राम जन्मभूमि , श्री कृष्ण जन्म भूमि तथा काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदुओं को सौंप दे , जिससे देश में स्थायी सद्भाव स्थापित हो सके। पर केंद्र सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
हम सभी जानते हैं कि कांग्रेस सरकार की हिन्दू विरोधी एवं मुस्लिम तुष्टिकरण नीति के कारण प्रभु श्री राम जन्मभूमि मंदिर पर ताला लगा था। जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने के लिए 7 - 8 अप्रैल 1984 को विश्व हिंदू परिषद द्वारा विज्ञान भवन , नई दिल्ली में प्रथम धर्म संसद आयोजित किया गया , जिसमें जन जागरण यात्रा करने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
विश्व हिंदू परिषद ने अक्टूबर 1984 में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक " श्री राम - जानकी रथ यात्रा " शुरू की। लेकिन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं।
अक्टूबर 1985 में रथ यात्राएं पुनः प्रारंभ हुईं। इन रथ यात्राओं से हिंदू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह जगा कि फैजाबाद के जिला दण्डाधिकारी ने 1 फरवरी 1986 को श्री राम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री वीर बहादुर सिंह थे और प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी थे।
ताला खुलने के बाद जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी शिव रामाचार्य की अध्यक्षता में श्री राम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ।
1 फरवरी 1989 को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद ने धर्म संसद का आयोजन किया। इसमें पूज्य देवराहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर , हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
जुलाई 1989 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री देवकीनंदन अग्रवाल ने न्यायालय से संपूर्ण परिसर को श्री रामलला की संपत्ति घोषित करने को कहा। न्यायालय ने सब वाद लखनऊ की पूर्ण पीठ को सौंप दिए।
(1959 में निर्मोही अखाड़े ने राम मंदिर के स्वामित्व हेतु वाद दायर किया था। इसके दो वर्षों के पश्चात् 1961 में केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने स्वामित्व हेतु वाद दायर किया था। यहां इस बात को ध्यान में रखना आवश्यक है कि 1949 से लेकर 1960 तक इस मुस्लिम संस्था ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी।)
18 अगस्त 1989 को स्वामी शांतानंद जी शंकराचार्य , माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी , माननीय अशोक सिंघल जी , श्री भानु प्रताप शुक्ला सहित कई रामभक्तों द्वारा बद्रीनाथधाम से शिला-पूजन का श्री गणेश किया गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद की प्रमुख भूमिका के कारण यह अभियान जन-आंदोलन बन गया। सितंबर 1989 में भारत के 2 लाख 75 हजार गांवों एवं नगरों के मंदिरों में श्री रामशिला पूजन संपन्न हुआ। लगभग छः करोड लोगों ने इसमें भागीदारी की। 1989 के अंत तक सभी रामशिलाएं अयोध्या पहुंच गईं। विदेशस्थ हिंदुओं ने भी शिलाएं भेजीं।
प्रबल जन-दबाव के चलते केंद्र और राज्य सरकार को झुकना पड़ा और 9 नवंबर 1989 को प्रमुख संतों की उपस्थिति में शिलान्यास हुआ। पहली शिला बिहार से आए वंचित समाज के रामभक्त श्री कामेश्वर चौपाल ने रखीं ,जो इस समय राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य हैं। इस प्रकार मंदिर आंदोलन समरसता की गंगोत्री बन गई । शिलान्यास के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री नारायण तिवारी और देश के प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी थे। (क्रमशः)
सभी राम भक्तों को नमन एवं वंदन।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।