प्रगाढ़ श्रद्धा की जड़ें ऐतिहासिक यात्रा में विद्यमान हैं
क्या कोई कल्पना कर सकता था कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की इस घोषणा को कि उत्तर प्रदेश सरकार की व्यूह-रचना को भेदकर कोई परिंदा भी अयोध्या में प्रवेश नहीं कर पाएगा', इसको चुनौती देने के लिए तत्समय पचहत्तर हजार से अधिक युवा, वृद्ध व महिलाएँ अयोध्या में चमत्कारिक रूप से प्रकट हो जाएँगे, और उत्तर प्रदेश सरकार की बंदूकों के सामने साहसपूर्वक अपनी छातियाँ खोल देंगे।
इस चमत्कारी घटना के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए 30 अक्टूबर, 1990 के प्रात:काल के अखबारों पर दृष्टिपात करना उचित रहेगा, जिनमें प्रत्येक संवाददाता ने लिखा था कि 'अयोध्या में सन्नाटा छाया हुआ है। किसी कारसेवक के वहाँ दर्शन नहीं हो रहे हैं।' परन्तु दोपहर तक सारा दृश्य व नक्शा ही बदल गया..।
अब बड़ा प्रश्न उठता है कि इस बलिदानी उन्माद के पीछे प्रेरणा क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर वे लोग नहीं खोज सकते जो भारतीय इतिहास का आरम्भ बिंदु 15 अगस्त,1947 या सन् 1757 के प्लासी युद्ध या सन् 1526 में मुगल साम्राज्य अथवा सन् 1192 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना में देखते हैं।
ये लोग यह भूल जाते हैं कि भारतीय लोगों की प्रगाढ़ श्रद्धा की जड़ें इससे बहुत पूर्व की, एक लम्बी ऐतिहासिक यात्रा में विद्यमान हैं। 'राम' इस ऐतिहासिक यात्रा के प्रतीक पुरुष हैं। इस ऐतिहासिक यात्रा का चरित्र साम्प्रदायिक (मजहबी) कत्तई नहीं है।
इस यात्रा की प्रेरणा साम्प्रदायिक (मजहबी) एकरूपता में नहीं, बल्कि उपासना-स्वातंत्र्य एवं साम्प्रदायिक (मजहबी) वैविध्य में रही है। विविधता में एकता ही इसकी मूल निष्ठा रही है।
हम इस एतिहासिक यात्रा से अभी भी पूरे तन-प्राण से जुड़े हैं, और 'विविधता में एकता के बीज-दर्शन' पर सहज आस्था रखने वाले विशाल समाज को ही आज 'हिन्दू' नाम से पहचाना जाता है।