जय श्री राम।।
कागभुशुण्डि जी कहते हैं ।
है पक्षीराज गरुड़ जी,
भगवान के उदर में भटकते हुए मानो मुझे एक सो कल्प बीत गए।
मैं बड़ा परेशान हो गया।
मुझे व्याकुल देखकर कृपालु श्री रघुवीर जी हंस दिए।
और उनके हंसते ही मैं उनके मुख से बाहर आ गया ।
बाहर आने पर श्री राम जी फिर से मेरे साथ वही लड़कपन करने लगे ।
मैंने भगवान के पेट में उनकी प्रभुता देखी थी ।
भगवान मुझसे पूंछने लगे।
कागभुशुण्डि क्या समझे हो?।
मैंने कहा प्रभु अब मैं कुछ बता नहीं सकता कि क्या समझा हूं।
भगवान ने कहा हां अब तुम पूरी तरह समझ गए हो।
संत कहते हैं।
जब कोई भगवान की महिमा का वर्णन नहीं कर पाए, ।
केवल उसे अनुभव में ले आये तभी मानना चाहिए कि परमात्मा को जान गए हैं।
कागभुशुण्डि जी कहते हैं ।
हे गरुड़ जी व्याकुल होकर मैंने भगवान से प्रार्थना की।
प्रभु रक्षा कीजिये,।
रक्षा कीजिये ।
ऐसा कहकर में जमीन पर गिर पड़ा।
भगवान ने मुझे प्रेम विहल स्थिति में देखा।
तो अपनी माया के प्रभाव को रोक लिया ।
मेरे सिर पर हाथ रख दिए ।
मेरे सारे दुख दूर हो गए।
भगवान की भक्त वत्सलता देखकर मेरे हृदय में बहुत प्रेम उत्पन्न हुआ ।
मेरे नेत्रों से जल बहने लगा ।
मैंने हाथ जोड़कर भगवान से बहुत विनती की ।
भगवान मुझ पर प्रशन्न हुए ।और कहा ।
कागभुशुण्डि जी वर मांग लो। ज्ञान विवेक वैराग्य जितने भी गुण है ।
जो मुनियों को भी दुर्लभ है। आज में तुझे वह सब दूंगा।
मांग लो।
भगवान के वचनों को सुनकर, मैं बहुत प्रेम में भर गया।
मन में अनुमान करने लगा ।
कि भगवान ने सब सुखों को देने की बात कही ।
यह तो सत्य है।
पर अपनी भक्ति देने की बात नहीं कही है ।
और भक्ति के बिना सब गुण ऐसे ही हैं ।
जैसे कि बिना नमक के भोजन। ऐसा विचार करके मैंने भगवान से कहा ।
है शरणागतों के हितकारी ।
दया करके मुझे अपनी भक्ति दीजिए ।
भगवान ने कहा तुम स्वभाव से बुद्धिमान हो।
भला ऐसा वरदान क्यों नहीं मांगते ।
तुमने आज सब सुखों की खान भक्ति मांग ली है ।
संसार में तुम्हारे सामान बड़भागी कोई नहीं है।
योगी मुनी जप तप से अग्नि में अपना शरीर जलाते हैं ।
करोड़ों यत्न करते हैं ।
फिर भी भक्ति को नहीं पाते हैं। वही भक्ती आज तुमने मांगी है। तुम्हारे चतुरता देखकर मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं।
मेरी कृपा से तुम्हारे अंदर यह सब गुण बसेंगे।
ज्ञान भक्ति वैराग्य योग मेरी लीला के जितने भी विभाग हैं ,वह सब तुम जान जाओगे। तुम्हें इनकी साधना करने में कोई कष्ट नहीं होगा।
तुम मुझे प्रिय हो।
बस मन वचन और कर्म से मेरे में अटल प्रेम करना ।
वैसे तो यह सारा संसार मेरी माया से उत्पन्न हुआ है ।
इसमें अनेक प्रकार के तरह तरह के जीव है ।
सभी मुझे प्रिय हैं ।
किंतु मनुष्य मुझको सबसे अधिक अच्छे लगते हैं ।
मनुष्यों में भी वेदों का अध्ययन करने वाले ब्राह्मण मुझे प्रिय है। ज्ञानी विज्ञानियों से भी प्रिय
मुझे अपना दास है
जो मेरे पर आश्रित है।
कोई दूसरी आसा जिसे न हो वह मुझे सबसे प्रिय है।
जिस तरह एक पिता के बहुत से पुत्र हैं ।सबके अलग-अलग गुण स्वभाव है।
कोई पंडित है, कोई तपस्वी है, कोई ज्ञानी है, कोई धनी है, कोई व्यापारी ,है -कोई शूरवीर है। किंतु पिता तो धर्म परायन होता है ।
पिता का प्रेम सभी पर होता है। परंतु इनमें भी यदि कोई मन वचन कर्म से पिता का भक्त होता है।
दूसरा धर्म नहीं जानता हो।
केवल अपने पिता पर ही आश्रित रहता है।
वह पिता ऐसे पुत्र को अपने प्राणों के समान प्रिय होता है। चाहे वह अज्ञानी हो।
इसी तरह तुम मुझे प्रिय हो।
कागभुशुण्डि जी कहते हैं ।
है पक्षीराज गरुड़ जी।
जब से भगवान ने मुझे अपनाया तब से मुझे फिर कभी माया नहीं व्यापी ।
भगवान की माया ने मुझे किस तरह नचाया था।
वह सारी कथा मैंने आपको सुना दी है।
अब अंतिम बात मैं तुमसे कहता हूं ।
कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं हो सकता।
और भगवान की भक्ति के बिना कभी सुख नहीं मिल सकता। जय श्री राम।।
आदरणीय राम कथा प्रेमी भाइयों बहनों अक्षय तृतीया से लेकर आज तक मैंने राम कथा के ८१भाग लिखकर भेजें है।ईशवर की कृपा रही तो २०२४में पुनः मैं रामकथा भाग १से भाग२००तक और विस्तृत रूप में रामकथा प्रशंग भेजने का प्रयास करुंगा,
तब तक के लिए आप सभी को जय श्री राम।।
प्रशासक समिति सेवक🙏🙏🚩