स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना गया है.‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना. इसका मतलब स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’।
कल्याण या मंगल. इसी प्रकार स्वास्तिक का अर्थ होता है - कल्याण या मंगल करने वाला. स्वास्तिक एक विशेष तरह की आकृति है, जिसे किसी भी कार्य को करने से पहले बनाया जाता है. माना जाता है कि यह चारों दिशाओं से शुभ और मंगल चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।
स्वास्तिक को कार्य की शुरुआत और मंगल कार्य में रखते हैं , अतः यह भगवान् गणेश का रूप भी माना जाता है. माना जाता है कि इसका प्रयोग करने से व्यक्ति को सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं जिस किसी पूजा उपासना में स्वास्तिक का प्रयोग नहीं किया जाता, वह पूजा लम्बे समय तक अपना प्रभाव नहीं रख पाती है।
स्वास्तिक की चार रेखाओं की चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) और गणेश से तुलना की गई है. स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।
लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्तर को जल्दी प्रभावित करता है. यह रंग शक्ति का प्रतीक माना जाता है. सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से मंगल ग्रह का रंग भी लाल है. यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है. यही वजह है कि स्वास्तिक बनाते समय सिर्फ लाल रंग का ही उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
- यदि आपने स्वास्तिक सही तरीके से बनाया हुआ है तो उसमें से ढेर सारी सकारात्मक उर्जा निकलती है.
- यह उर्जा वस्तु या व्यक्ति की रक्षा,सुरक्षा करने में मददगार होती है
- स्वास्तिक की उर्जा का अगर घर,अस्पताल या दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाय तो व्यक्ति रोगमुक्त और चिंता मुक्त रह सकता है.
- गलत तरीके से प्रयोग किया गया स्वास्तिक भयंकर समस्याएं भी पैदा कर सकता है।
भज मन 🙏
ओ३म् शान्तिश् शान्तिश् शान्तिः