पटाखों का बारूद जलाने से ना ही कार्बन डाईऑक्साइड ना ही कार्बन मोनोऑक्साइड गैस निकलती है।
बल्कि सल्फर डाईऑक्साइड गैस निकलती है,
जो नमी को तेजी से सोख लेती है, यदि ये गैस सीधे फेफडों में चली जाए, तो आपके फेफडों को नमी सोखकर उन्हें अपना कार्य करने से रोक सकती है।
किन्तु इस गैस का परमाण्विक भार कम होने के कारण ये कभी भी आपके फेफडों में नहीं प्रवेश करता, बल्कि बहुत तेजी से ऊपर की तरफ उठ जाता है।
यदि आपको इसका उदाहरण देखना हो तो फर्श पर बैठकर प्याज काटें, बहुत ज्यादा आंसू आएंगे।
पुनः अत्यधिक ऊंचाई पर प्याज को काटें, अपेक्षाकृत आंसू कम आएंगे।
क्यों?
प्याज काटने के दौरान प्याज वातावरण में निहित ऑक्सीजन से क्रिया करके सल्फर डाईऑक्साइड बनाता है, एवं आप सभी के शरीर में केवल आँख ही एक ऐसा भाग है, जो आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त नमी छोड़ता है, और उक्त गैस उस नमी के सम्पर्क में आकर पानी की बूंद (आँसू) का रुओ धारण कर लेती है।
आप इसे प्रायोगिक तौर पर आजमा सकते हैं।
आप में से जो भी लोग दीपावली को देर रात तक जागिये (पूर्व में), आपने कभी ध्यान दिया था कि 11:00 बजे रात के बाद अचानक ओंस क्यों गिरने लगती थी/है?
ये सब सल्फर डाईऑक्साइड का कमाल
शायद जज बेंच के सभी न्यायाधीश आर्ट साईड से होंगे, इसलिये तो किसी रासायनिक विज्ञानी की सलाह लेना भी उचित नहीं समझे।
पटाखों से केवल एक प्रदूषण होता है, "ध्वनिप्रदूषण"......
लेकिन इनसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण तो मस्जिद में लगे लाउडस्पीकर प्रतिदिन कर रहे हैं, रोक लगाने की क्षमता हो तो, उन पर रोक लगायें।
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253