11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी के आक्रमण से पहले, अफगानिस्तान पर शैव राजवंश का शासन था, जिसे काबुल शाही के नाम से जाना जाता था।
अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के पास खैबर पख्तूनख्वा जिले में उजाड़ पड़े ये खंडहर मंदिर काबुल शाहियों के अवशेष हैं,
जब देश धर्म के आधार पर विभाजित हुआ तो सब हिंदुओ ने इस स्थान को छोड़ दिया।
इन शैव मंदिर के खंडहरों को अब स्थानीय लोग 'Kafir Kot' के नाम से जानते हैं। लेकिन काफिर का मतलब क्या है, आश्चर्य की बात यह है कि कोई नहीं जानता।
जहां इतने भव्य मंदिर हो, वहां कितनी संख्या में सनातनी होंगे? किंतु जैसे ही सत्ता किसी गैर सनातनी के हाथ में गई, उन्होंने सबको नष्ट कर दिया
आज भी स्वयं को बचाने के लिए कोई तैयारी नही है