नाथूराम गोडसे महान नहीं थे ..
🙏वो एक मामूली व्यक्ति थे। उनके पास महान बनने का ऑप्शन नहीं था। उनपर महान बनने की सनक भी सवार नहीं थी ...
👉नाथूराम गोडसे जी में अगर कोई सनक थी तो राष्ट्रवाद की सनक थी। पागलों की तरह पाकिस्तान से आए एक-एक शरणार्थीयों के लिए दो रोटी और कम्बल जुटाते फिरते थे। और गाँव-गाँव घूम-घूम कर छुआछूत मिटाने का, अछूतों-दलितों के साथ बैठ कर खाने का, दलित वंचित लोगों को खिलाने का आयोजन किया करते थे ...
👉नाथूराम गोडसे बड़े आदमी नहीं थे .. उन्होंने कभी बड़े-बड़े सत्य के प्रयोग नहीं किए। वे ब्रह्मचारी थे, क्योंकि उनके पागलपन में परिवार के लिए स्थान नहीं था। ( और ऐसा इसलिए नहीं कि, उन्हें ब्रह्मचर्य की आध्यात्मिक शक्ति पर बड़ी-बड़ी बातें कहनी थी, न उन्हें अपने ब्रह्मचर्य प्रयोग करने के लिए पंद्रह-सोलह साल की लड़कियों के साथ नंगे सोने का ऑप्शन नहीं था। ) "वे अविवाहित थे क्योंकि ऐसे कड़के सनकी को बेटी कौन देता ..?? और खिलाते क्या ..??
👉नाथूराम महान नहीं थे .. कोर्ट में मजिस्ट्रेट उनके लिए खड़ा नहीं होता था, महारानियाँ उनसे मिलने का समय भी नहीं निकालती थीं, जिनसे अधनंगे मिलकर वो अपनी महानता सिद्ध कर सकें।
👉उन्हें कोई बिरला उन्हें ब्लैंक-चेक नहीं देता था ... घर के बर्तन और अपनी भाभी के गहने बेच कर अखबार चलाया करते थे .. और अखबार में देश के विभाजन का, हिन्दुओं की दुर्दशा का दर्द लिखा करते थे ... तब फेसबुक नहीं था उनके पास, जिसमें अपने आइवॉरी-टॉवर में बैठ कर स्टैटस अपडेट करते ... या, ट्विटर पर ट्रेंड करते ...
🤷🏻♂️गाँधी महान थे ..
👉गाँधी के लिए अपनी महानता ही सबसे बड़ा ऑब्शेसन था। दुनिया में अपनी महानता सिद्ध करना उनका सबसे बड़ा मिशन था ...
🔥देश विभाजन से लाखों हिंदुओं की बलि चढाकर, हजारों माताएं बहन और बेटीयों के बलात्कार के बदले उन्होंने मानवता को नई राह दिखाई थी .. इसमें राष्ट्रहित और हिंदु मानवहित जैसी छोटी-छोटी बातें उन्हें परेशान नहीं करती थीं। पंद्रह-बीस लाख हिन्दुओं की जान उनके आड़े नहीं आ सकती थी।
गाँधी की महानता ग्लोबल है ... गाँधी की मूर्तियाँ न्यूयॉर्क, लंदन, सिडनी में लगें .. जिन लोगों ने गाँधी को हमारे मत्थे मढ़ा है, हम उन्हें ही वह गाँधी लौटा दें ... हम मामूली लोग गाँधी की महानता की लक्जरी एफॉर्ड नहीं कर सकते।
🙏हमारी श्रद्धा का पात्र तो यह मामूली सा नाथूराम गोडसे ही है ..
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