देखिये चारो युगों में सात्त्विक-राजसिक-तामसिक इन तीनो गुणों की स्थिति कुछ इस प्रकार रहती है:
सत्य युग मे 75% सात्त्विक गुण और 25% राजसिक गुण विद्यमान है तथा इस युग मे तप का प्राबल्य है,तभी तो नन्हे से बालक ध्रुव जैसे तपोनिष्ठ महात्मा का जन्म सत्य युग मे हुआ करता है। त्रेता युग मे 65% सात्त्विक गुण, 30% राजसिक गुण और 5% तामसिक गुण विद्यमान है तथा इस युग मे यज्ञ का प्राबल्य है तभी तो राजा हरिश्चन्द्र जैसे महान यज्ञकर्ता का जन्म त्रेता युग मे हुआ करता है।
द्वापर युग मे 10% सात्त्विक गुण, 50% राजसिक गुण और 40% तामसिक गुण विद्यमान है तथा इस युग मे दान का प्राबल्य है, तभी तो वसुश्रेण कर्ण जैसे दानवीर का जन्म द्वापर युग मे हुआ करता है।
कलियुग मे 0 सात्विक गुण, 10 राजसिक गुण और 90% तामसिक गुण विद्यमान है,तथा इस युग मे अधर्म-तमस का प्राबल्य है। तभी तो कलियुग में पॉर्न फ़िल्म अभिनेत्रीयाँ/अर्धनग्न गायक-गायिकाएँ/निर्लज्ज मॉडल धन तथा मान सम्मान से परिपूर्ण होते है, जगत भर में प्रसिद्ध होते है फिर असंख्य अबोध बच्चे-बच्चियों के अनजाने में ही रोल मॉडल बन जाते है।
तभी तो कलियुग में गांजा-चरस-कोकेन-मदिरा का सेवन करने वाले नट-नटी (अभिनेता-अभिनेत्री) इतने लोकप्रिय हो जाते है रातोंरात की करोड़ो लोगो के लिए ये भगवान से बढ़कर और धर्म से ऊपर हो जाते है।
तभी तो कलियुग में असंख्य निरपराध जीवों की हत्या करने वाले अनेक दरिंदे "डॉन" नामक उपाधि पाते है और बेतहाशा धन-संपदा, ऐश-अय्याशी, पॉवर-खौफ़ प्राप्त करके निरंतर प्रगति करते ही जाते है। तभी तो कलियुग में धर्म का उपहास करने वाले घनघोर नास्तिकों को बुद्धिजीवी-मनीषियों वाला सम्मान प्राप्त होता है और वे अपने कुतर्कों द्वारा करोड़ो लोगो को धर्म के मार्ग से सदा के लिए विमुख कर पाते है। तभी तो कलियुग में समस्त भ्रष्ट आचरण करने में अव्वल व्यक्ति समाज का नेता बनता है फिर सफलता-शक्ति के सिंहासन की सरपट सीढियाँ चढ़ते हुए निरंकुश राज्य करता है।
क्योकि कलि का युगधर्म है तमस का प्रचार-अंधकार का आधिपत्य! तो कलियुग तो कहता है की "आओ मेरे साथ आओ! इस अंधकार को जितना बढ़ाओगे उतना ही मैं तुम्हे बढ़ा दूंगा इस धरती पर! धन-सम्मान-शक्ति-सामर्थ्य सब कुछ तुम्हे दे दूंगा अगर अंधकार बढ़ता रहे!"जो भी व्यक्ति कामवासना-अधर्म-हिंसा बढ़ाने में कलियुग की सहायता कर रहा है, उसे कलियुग आकाशीय सफलता दे दे रहा है।
जो भी व्यक्ति कपट-बेईमानी-झूठ का व्यापार विस्तार कर रहा है, उसे कलियुग का फ्री हैंड प्राप्त है और वो सफल हो रहा है।
लेकिन ध्यान रहे ये सफलता, ये सुख ये वैभव क्षणिक है, नश्वर है इसके परे जो व्यक्ति धर्म कार्य में रत होता है उसे अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है, दुनिया की नजरों में अनेकों दुख दर्द झेलने पड़ते हैं, लेकिन मानसिक सुख और शांति की बात करें तो धर्म मार्गी व्यक्ति उस शांति को पा जाता है जो बड़े बड़े धनी , अत्यंत समर्थ्यवान भी कभी नहीं पा सकते
इसलिए कलयुग से बचो और अपने शास्त्रों के सहारे ईश्वर की प्राप्ति के लिए यत्न करो, निस्वार्थ कर्म करो और परमसुख की प्राप्ति करो जिसके सामने सारी श्रृष्टि का सुख भी कुछ नहीं।
हरे कृष्ण
राधे राधे