लक्ष्मण जी का उपचार हो जाने के पश्चात, हनुमान जी वैद्य सुषेण को वापस लंका ले जाने लगे। उसी समय किसी ने हनुमान जी से पूछा?
कि तुम्हें इनको घर सहित लाने की क्या आवश्यकता थी? हनुमान जी ने कहा।
घर सहित लाना ही आवश्यक था।
समय का अभाव था।
अधिक वार्तालाप करने का समय नहीं था।
यदि मैं इनके घर जाकर इन्हें जगाता तो शायद आसपास के लोग भी जाग जाते।
सब लोगों को मालूम पड़ जाता। इन्हें लाने में विघ्न पैदा हो सकता था।
और फिर दूसरा कारण यह भी था कि वैद्य जी आने को तैयार होते या ना होते कोई आवश्यक नहीं था।
किसी ने फिर हनुमान जी से कहा? कि,
उन्हें खटिया सहित ले आते।
घर सहित लाने की क्या आवश्यकता थी?
हनुमान जी ने कहा कि घर सहित लाना ही जरूरी था।
यदि खटिया सहित लेकर यहां आता।
तो यहां आकर वैद्य जी यह भी कह सकते थे।
कि यदि विषय उपचार का था, तो मुझे वहीं बताना था ।
दवाइयां तो सब घर में ही रखी रह गई।
इसलिए मैं घर सहित ले आया। ताकि कोई कमी ना रहे।
वैद्य जी के पास कोई बहाना न रहे।
और एक कारण यह भी था कि, वैद्य जी को ऐसा लगा ही नहीं कि मुझे कोई लेकर गया है।
उन्हें लग रहा है सब मेरे घर पर आए हुए हैं।
हनुमान जी बुद्धिमता वरिष्ठं है। हर कार्य को भविष्य को ध्यान में रखते हुए करते हैं।
हनुमान जी प्रश्न कर्ताओं को समझाने लगे ।
और भी कारण है।
क्योंकि यह बात तो रावण को भी मालूम थी कि लक्ष्मण जी मूर्छित हुए हैं ।
और उनका उपचार कराने के लिए वैद्य सुषेण के पास कोई आ भी सकता है।
तो रावण ने अवश्य सुषेण वैद्य के यहां अपने दूत भेजे होंगे।
कि पता करो वह यहीं है या कहीं गया हुआ है।
रावण के दूत वैद्य जी का घर ढूंढते होंगे।
जब उन्हें घर ही नहीं मिलेगा
तो वैद्य का पता समाचार लेकर क्या जाएंगे।
ढूंढते होंगे घर।
और यदि घर सहित नहीं लाता और रावण को मालूम पड़ जाता। कि वैद्य अपने घर में नहीं है।
तो वह इनसे पूछताछ करता ।और हो सकता है लक्ष्मण जी के उपचार करने के अपराध में इन्हें मृत्युदंड देता।
इसलिए इन्हें घर सहित लाना ही उचित था।
हनुमान जी के बुद्धिमानी भरे उत्तर को सुनकर सभी लोग बहुत आनंदित हुए।
हनुमान जी ने सुषेण वैद्य को यथावत लंका में पहुंचा कर आए । लक्ष्मण जी को कुछ समय के लिए विश्राम दिया गया।
उधर जब यह समाचार रावण को मिला की लक्ष्मण जी को जीवन दान मिल चुका है।
तब वह बहुत दुख मनाने लगा। अपना सिर पीटने लगा।
और व्याकुल होकर कुंभकरण के पास आया ।
*व्याकुल कुम्भकरन पहिं आवा।।*
कुंभकरण ने पूछा भाई क्या बात है ?
तुम्हारा मुख सूखा हुआ क्यों है? उदास क्यों हो?
*कुम्भकरन बूझा कहु भाई।*
*काहे तव मुख रहा सुखाई।।*
तब रावण ने सारी व्यथा का वर्णन किया ।
रावण के द्वारा सब समाचार सुनकर कुंभकरण बहुत दुखी हुआ ।
और रावण से कहा अरे मूर्ख तूने यह ठीक नहीं किया।
माता जगदंबा का हरण करके लाया है।
और अब कल्याण चाहता है।
*जगदंबा हरि आनि अब,सठ चाहत कल्याण।।*
है राक्षस राज तूने ठीक नहीं किया है।
*भल न कीन्ह तैं निसिचर नाहा।*
कुंभकरण ने रावण को बहुत समझाया ।
अभी भी समय है अभिमान छोडकर रामजी को भजो उसी में कल्याण है।
*अजहुं तात त्यागि अभिमाना।*
*भजहु राम होइहि कल्याना।।*
रावण ने कुंभकरण की सलाह नहीं मानी ।
तब कुंभकरण ने रावण से कहा। है भाई मुझसे अब आखरी बार मिल लो
अब मैं सारे तापों को हरने वाले रामजी के दर्शन करके अपने नेत्रों को सफल करूंगा।।
*अब भर अंक भेंटु मोहि भाई।*
*लोचन सुफल करौं मैं जाई।।*
कुंभकरण राम जी के स्व रूप का चिंतन करके एक क्षण के लिए मगन हो गया ।
*राम रुप गुन सुमिरत,मगन भयऊ छन एक।।*
रावण को आश्वासन दिया कि ,मैं युद्ध भूमि में जा रहा हूं।
और अकेला ही बिना सैना साथ लिए रणभूमि में आ गया।
*कुम्भकरन दुर्मद रन रंगा।*
*चला दुर्ग तजि सेन न संगा।।*
*इसके आगे अगली पोस्ट में जय श्री राम।।*🙏🙏🙏