जय श्री राम।।
श्री राम जी लक्ष्मण जी को अपनी गोद में लेकर विलाप कर रहे हैं ।
कहते हैं लक्ष्मण ।
तुम हमेशा मेरे पीछे पीछे चलते आए हो ।
आज मेरे से आगे क्यों चलना चाहते हो। ?
मैं अयोध्या लौट कर माता सुमित्रा को क्या उत्तर दूंगा।
सब लोग कहेंगे, कि राम ने पत्नी के लिए अपने भाई को गंवा दिया।
नहीं लक्ष्मण तुम ऐसा नहीं कर सकते हो।
यदि तुम चले गए तो मैं भी तुम्हारे साथ चल दूंगा।
बंदर भालू तो सब गुफा कंदराओं में चले जाएंगे।
श्री जानकी जी मेरे विरह में देह का त्याग कर देंगी।
किंतु मुझे चिंता इस विभीषण की हो रही है।
मैंने इसे लंकापति बनाया है। इसका
किया है। बेचारा यह कहां जाएगा ?
मुझे इसकी चिंता है ।
रामजी को इस तरह विलाप करते हुए देखकर हनुमान जी बहुत भावुक हो गए।और कहने लगे।
प्रभु मैं आपको हर स्थिति में देख सकता हूं ।
किंतु इस स्थिति में मैं आपको नहीं देख सकता हूं।
आप केवल मुझे आज्ञा दीजिए। मैं जानता हूं चंद्रमा में अमृत है। आपकी आज्ञा हो तो मैं चंद्रमा से अमृत निचोड़कर ला सकता हूं। मैं यह भी जानता हूं कि अमृत का घड़ा पाताल में है।
मैं अभी पाताल फोड़कर वह अमृत कलश ला सकता हूं ।
और मैं जानता हूं मौत इस मृत्युलोक में है।
आपकी आज्ञा हो तो मैं इस मौत को ही मार सकता हूं।
ताकि सब के मरने का झंझट ही खत्म हो जाएगा ।
हनुमान जी की बातें सुनकर तीनो लोक कांप गये।
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में वर्णन भी किया है।
तीनों लोक हांक ते कांपे।
क्योंकि यहां वर्णन भी तीनों लोकों का है।
अमृत चन्द्रमा हैं। मृत्यु भूतल पर है। और अमृतकलश पाताल में है।
गोस्वामी जी ने यह प्रशगं कवितावली रामायण से लिया है।
श्री तुलसीदास जी महाराज ने हनुमान चालीसा की यह पंक्ति इसी प्रसंग से ली है।
जब श्री राम जी ने हनुमान जी को इस तरह क्रोध में देखा तो प्रभु श्री राम जी डर गए।
उन्हें लगा कि हनुमान जी यह क्या कर रहे हैं।
मैं तो यहां नरलीला कर रहा हूं ।किंतु हनुमान जी ऐसा ना हो कुछ उल्टा पुल्टा कर दे ।
कहीं प्रकृति के नियमों में कोई परिवर्तन न कर दे।
इन्हें कोई समझाओ।
राम जी ने जामवंत जी की और देखा।
भाव यही था मानो जामवंत जी रोको इन्हें ।
जामवंत जी ने हनुमानजी से कहा हनुमान।
, ऐसा कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
लंका में सुषेण नाम का एक वैद रहता है।
तुम अतिशीघ्र जा कर उसे ले आओ ।
विभीषण जी वैद्य सुषेण के घर का पता बताते हैं।
हनुमान जी तुरंत छलांग लगाकर लंका में प्रवेश करते हैं ।
वहां देखते हैं राक्षसों का पहरा है। हनुमान जी अपना सूक्ष्म रूप बनाते हैं।
हनुमानजी की यह विशेषता है। कि बड़े-बड़े काम करते हैं।
किंतु बिल्कुल छोटा रूप बनाकर करते हैं।
हनुमान जी का चरित्र बड़ा प्रेरणादायक है ।
मानो उनका संकेत यह है कि काम बड़ा करो किन्तु छोटे बनकर करो।
हमारे भीतर दोष यह है कि हम काम करते हैं छोटा ।
और प्रयास करते हैं बड़ा बनने का ।
हनुमान जी सुषेण वैद्य को उसके घर सहित उठाकर ले आते हैं।
*धरि लघु रुप गयउ हनुमंता।*
*आनेउ भवन समेत तुरंता।।*
वह विनय प्रार्थना करता रहा । मुझे कहां ले जा रहे हो ?
क्यों ले जा रहे हो? हनुमान जी ने उसकी एक न सुनी।
और रामादल में सुषेण वैद्य को ले आए।
राम जी के द्वारा वैद्य सुषेण को अपने कर्तव्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ होने का उपदेश दिया गया।
तब जाकर वेद सुषेण ने लक्ष्मण जी का उपचार करने का मन बनाया।
और कहा कि उत्तर में द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी बूटी है ।
जो वीर सूर्योदय से पहले यदि संजीवनी बूटी ले आएगा।
तो लक्ष्मण जी के प्राण बच सकते हैं। अन्यथा नहीं।
यह सुनकर राम जी को बड़ी चिंता हुई।
क्योंकि लंका से द्रोणागिरी पर्वत की दूरी बहुत अधिक है।
रामजी को चिंतित देखकर हनुमान जी ने कहा प्रभु चिंता मत कीजिए।
मैं जाऊंगा। और सूर्योदय से पहले संजीवनी बूटी लेकर मैं आऊंगा। हनुमान जी की बातें सुनकर राम जी के मन में आशा की किरण दिखाई दी।
और हनुमान जी ने तुरंत रामजी से आज्ञा लेकर द्रोणागिरी पर्वत के लिए उड़ान भरी।
*रामचरन सरसिज उर राखी।*
*चला प्रभंजनसुत बल भाषी।।*
*इसके आगे का प्रशंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*🙏🙏