रावण की सभा में अंगद जी अपनी पूंछ का आसान बनाकर सबसे ऊंचे स्थान पर बैठ गए । और रावण से कहा।
है दशग्रीव मेरे पिता और तुम में मित्रता थी । इसलिए तुम्हारे भले के लिए मैं यहां रामजी का संदेश लेकर आया हूं।
मम जनकहि तोहि रही मिताई।
तव हित कारन आयऊं भाई।।
तुम्हारा उत्तम कुल है। पुलस्ति ऋृषि के तुम पौत्र हो। तुमने शिवजी और ब्रह्मा जी की बहुत पूजा की है ।उनसे वरदान भी पाया है।
उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती।
सिव बिरचिं पूजेहु बहु भांति।।
सब राजाओं को तुमने जीत लिया है। घमंड में आकर तुमने जगत जननी मां सीता जी को हर लाए हो ।
नृप अभिमान मोहबस किंबा।
हरि आनिहु सीता जगदम्बा।।
अब तुम्हारे हित के लिए मैं कुछ सलाह देता हूं उसे मान लो ।
दांतों में तिनका दबावो,।गले में कुल्हाडी डालो, कुटुंबियों और अपनी स्त्रियों को साथ में लेकर आदरपूर्वक जानकी जी को आगे करके सब भय छोड़कर राम जी की शरण में चले जाओ ।
दसन गहहु तृन कंठ कुठारी।
परिजन सहित संग निज नारी।।
सादर जनकसुता करि आगे।
एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें।।
और उनसे जाकर कहना । है शरणागतों के पालन करने वाले, मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए।
प्रनतपाल रघुवंसमनि,
त्राहि त्राहि अब मोहि।।
भगवान तुम्हें निर्भय कर देंगे।
किसी ने अंगद जी से कहा। कि रावण तो वैसे ही राम जी के पास जाना नहीं चाह रहा था ।फिर तुमने इतनी सारी शर्तें क्यों लगा दी? शर्तें सुनकर तो जाता होगा तो भी नहीं जायेगा।
अंगद जी ने कहा। मैं यही तो चाहता हूं कि यह न जाए।
मैं जानता हूं कि रावण नहीं जाएगा।
यह शर्तें मैंने इसलिए लगा दी कि कहीं ऐसा ना हो कि यह दुष्ट राम जी की शरण में चला जाए। मै नहीं चाहता कि ऐसा पापी दुष्ट राक्षस जीवित रहे। इसे तो मर जाना ही चाहिए । इसलिए मैंने यह शर्तें लगा दी ।ताकि यह राम जी के पास प्राणों की भीख मांगने नहीं जाए।
अब रावण ने अंगद जी से संवाद प्रारंभ किया ।
अरे बंदर तू मुंह सभांल कर बात कर।
रे कपिपोत बोलु संभारी।।
अपना और अपने बाप का नाम तो बता।?
कहु निज नाम जनक कर भाई।।
मेरी तो किसी बंदर से मित्रता नहीं थी। मैं विश्व विजयी रावण किसी बंदर से क्यों मित्रता करुंगा? तुम किस बाली की बात कर रहे हो? । मैं तो किसी बाली नाम के बन्दर को जानता भी नहीं हूं।
अंगद जी ने कहा,।
अंगद नाम बालि कर बेटा।
तासों कबहुं भई ही भेटा।।
मैं बालि का बेटा अंगद हूं। जिस बाली की कांख में तुम छै महीने दबे रहे थे । भूल गए? याद करो?
अंगद जी की बातें सुनकर
सारे सभासद रावण की और देखने लगे। रावण को लगा यह तो मेरा अपमान हो रहा है ।
तब रावन ने बात बनाते हुए ठहाके लगाते हुए असहज बात को सहज करते हुए कहा।
हां हां याद आया। बाली नाम का एक बंदर था।
रहा बालि बानर मैं जाना।।
रावण जानता था कि यह बाली का बेटा अंगद है । जानबूझकर अपने सभासदों के सामने रावण गोलमोल बातें कर रहा था। सारी पोल खुलने के बाद रावण ने स्वीकार कर लिया। और हंसते हुए इतनी बड़ी बात को सहज रुप में लेते हुए बोला ।
मानो मित्रता में हंसी मजाक में कांख में रख लेना, सिर पर बैठा लेना ,यह सब तो होता ही रहता है। बालि ने कांख में रख भी लिया तो कौनसी बड़ी बात है। रावण का आशय था की मित्रता में तो सब कुछ संभव है। इस तरह वह अपने सभासदों को समझाना चाह रहा था।
रावण सहज होकर बोला। बाली मेरा मित्र था। बहुत दिन हो गए मैं उनसे मिला नहीं हूं । जबकि रावण सब जानता है कि बाली को रामजी ने मार दिया है। फिर भी अनजान बनते हुए पूंछने लगा।रावण का अनुमान था। कि जब मैं इससे पूछूंगा कि अब बाली के क्या हाल हैं। तो यह उत्तर देगा कि बाली तो अब इस दुनिया में नहीं है। मर गया है। तब मैं पूछूंगा।
कैसे मर गया ?।क्या बीमारी हो गई थी।? किस कारण से मर गया।
तब यह कहेगा की राम जी ने उसे मार दिया है । तब मुझे यह कहने का अवसर मिलेगा ।
अरे कुल द्रोही जिसने तेरे बाप को मारा है। आज तू उन्हीं का संदेश लेकर आया है । उन्ही की चाकरी कर रहा है। तुझे तो डूब मरना चाहिए ।
मेरी शरण में आजा । हम दोनों मिलकर तेरे बाप का बदला लेंगे।
यह सोचकर रावण ने अंगद जी से प्रश्न किया।? कि अब बाली के क्या हाल है ?
अब कहु कुशल बालि कहं अहई
किंतु रावण का अनुमान एकदम गलत निकला । अंगद जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जैसा रावण ने अनुमान लगाया था। अंगद जी ने सीधे यही कहा। कि बाली के क्या हाल है । ,दस दिन बाद तुम उन्हीं से जाकर पूछ लेना।
दिन दस गएं बालि पहिं जाई।
बूझेहु कुशल सखा उर लाई।।
जहां वह गए है। वहीं तुम भी जाने वाले हो। अंगद जी कहते गये। रे मूर्ख मैं जानता हूं । इस तरह की बातें करके तू मेरे हृदय में रामजी के विरुद्ध भेद पैदा करना चाहता है। लेकिन इतना जान ले। भेद उसी के ह्रदय में हो सकता है जिसके हृदय में रामजी नहीं बसते हों।
सुनु सठ भेद होइ मन ताकें।
श्री रघुवीर हृदय नहि जाके।।
मेरे तो रोम रोम में प्रभु का वास है।अंगद जी ने कहा रावण। शिव जी ब्रह्मा जी और सारे देवताओं के समुदाय जिनके चरणों की वंदना करते हैं।
सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई।
चाहत जासु चरन सेवकाई।।
उनके संबंध में इस तरह की बातें कर रहा है। तुझे शर्म आना चाहिए। इतनी बातों को तो अंधे बहरे भी समझते हैं। जिसमें तेरे तो बीस नैत्र और बीस कान हैं
अंधउ बधिर न अस कहहिं
नयन कान तव बीस।
प्रभु श्री राम जी की शरण में मेरे पिता श्री स्वयं मेरी बाहों को सौंप कर गए हैं।
अंगद जी की बातें सुनकर रावण बोला । मूर्ख बानर में धर्म को जानता हूं इसलिए धर्म की रक्षा के लिए मैं तुझे बर्दाश्त कर रहा हूं ।
नीति धर्म मैं जानत अहऊं
खल तव कठिन बचन सब सहऊं
अंगद जी ने कहा । रावण तू कितना बड़ा धर्मग्य है ज्ञानी है यह मैं जानता हूं। तेरी धर्मशीलता की कहानी मैंने सुनी है । तभी तो तू पराई स्त्री को चोरों की भांति हर करके लाया है ।
कह कपि धर्म सीलता तोरी।
हमहुं सुनी कृत पर त्रिय चोरी।।
ऐसा कृत्य करने वाले को तो चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।
बूडि न मरहु धर्म व्रतधारी।।
जिसमें तो तू समुद्र के बीचों बीच रहता है । इसके बाद भी डूब कर नहीं मर रहा है । अपनी बहन को बिना नाक कान के देखकर तूने धर्म को विचार कर ही तो क्षमा कर दिया।
कान नाक बिनु भगिनि निहारी।
छमा कीन्ह तुम्ह धर्म बिचारी।।
अंगद जी व्यंग करते हुए कहते हैं मैं बडा भाग्यवान हूं । जो मैंने तुम्हारा दर्शन पाया।
इसके आगे का प्रसंग अगले पोस्ट में जय श्री राम।।

