जय श्री राम।।
श्री राम जी, समुद्र से पार होने के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
इधर विभीषण जी के पीछे रावण ने अपने दूत भेजे थे।
जबहिं बिभिषण प्रभु पहिं आए।
पछें रावन दूत पठाए।।
रावण ने दूतों से कहा था।
तुम विभीषण के पीछे पीछे जाओ।
उस पर निगाह रखना ।
यह कहां जाता है।? किनसे मिलता है।और क्या करता है।
सारा समाचार मुझे आकर सुनाना ।
रावण के वह दूत जो विभीषण जी के पीछे पीछे आए थे ।
यहां आकर उन्होंने अपना वानर का रुप बनाकर रामजी की लीला देखी।
उन्होंने यहां आकर देखा।
किस तरह रामजी ने विभीषण जी को शरण दी थी।हृदय से लगाया था। और उन्हें लंकापति बनाकर उनका राजतिलक किया था।
श्री राम जी के प्रेम और समर्पण भाव को देखकर राक्षसों में श्री राम जी के प्रति सच्चै मन से प्रेम हो गया।
प्रभु के प्रति सच्चे मन से प्रेम होते ही, राक्षस निष्कपट हो गये। भगवान के प्रति प्रेम होने पर राक्षसों का कपट चला गया।
वह राम जी की जय जय कार करने लगे।
सकल चरित तिन्ह देखे।
धरें कपट कपि देह,
प्रभु गुन हृदय सराहहिं,
सरनागत पर नेह।।
वानरों ने देखा इनकी भाषा हमसे भिन्न है।यह कौन हैं?
उन्हें पकड़ा तब वह अपने
वास्तविक रूप में आ गए।
वानरों ने देखा कि यह तो रावण के दूत हैं ।
रावण के उन दूतों को पकड़कर सब वानर बंदरो के राजा सुग्रीव जी के पास ले आए।
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने।
सकल बांधि कपीस पहिं आने।।
बंदर नकल करने में बड़े प्रवीण होते हैं।
जब से लक्ष्मण जी ने सूर्पनखा की नाक काटी थी।
तब से बंदरों ने एक सूत्र बना लिया था।
जहां भी कहीं किसी राक्षस को देखते थे। तो तुरंत उसके नाक और कान काट देते थे।
यहां भी वानरों ने ऐसा ही करना चाहा ।
रावण के उन गुप्तचरों के नाक कान काटने लगे ।
वह घबराए ।और उन्होंने वानरों को श्री राम जी की सौगंध दे दी । कि यदि तुम हमारे नाक कान काटोगे तो तुम्हें श्री राम जी की सौगंध है।
सुग्रीव जी सोचने लगे अवसर अच्छा है।
राम जी तो समुद्र से प्रार्थना करने में लगे हैं ।
और दंड देने में लक्ष्मण जी तो कोई देर करते ही नहीं है।
अच्छा अवसर है , ऐसा जानकर सुग्रीव जी उन्हें लक्ष्मण जी के पास ले गए ।
और कहा लक्ष्मण भैय्या।
यह रावण के दूत है। यह विभीषण के पीछे पीछे चल कर हमारा भेद लेने आए थे।
यह अपने वास्तविक रूप में आ गए हैं।
मैं इन्हें पकड़ कर यहां लाया हूं। आप इन्हें कठोर से कठोर सजा दीजिए ।
लक्ष्मण जी ने कहा नहीं नहीं छोड़ दो इन्हें।
सुग्रीव जी कहने लगे भैया ।
यह हमारा भेद लेने आए थे ।लक्ष्मण जी ने कहा।
जब यह राक्षस बन कर हमारा भेद ले रहे थे तब तक तो तुमने इन्हें पकड़ा नहीं ।
और अब यह निष्कपट होकर श्री राम जी के भक्त हो गए हैं ।
तब तुम इन्हें सजा दिलवाना चाहते हो।
यह ठीक नहीं है।इन्हें छोड़ दिया जाए ।
सुनि लछिमन सब निकट बोलाए।
दया लागि हंसि तुरत छोड़ाए।।
लक्ष्मण जी के आदेश से रावण के उन दूतों को छोड़ दिया गया ।
वह राक्षस श्री राम जी और लक्ष्मण जी की जय जयकार करते हुए लंका की ओर चले गए।
तुरत नाइ लछिमन पद माथा।
चले दूत बरनत गुन गाथा।।
रावण अपने दूत सुक से पूछने लगा।?
मुझे उस विभीषण के समाचार सुनाओ?
गुप्तचर बनकर गये हुए उस सुक ने रावण को सब समाचार सुनाया।
रावण को बताया हे नाथ जैसे ही तुम्हारा भाई उनसे जाकर मिला श्री राम जी ने उसे लंका का राजा बना दिया।
राजतिलक कर दिया
मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा।
जातहिं राम तिलक तेहि सारा।।
हम रावण के दूत हैं ऐसा जानकर बंदरों ने हमें बांध लिया।
कई प्रकार के दुख दिए।
फिर वह हमारे नाक कान काटने लगे ।
तब हमने राम जी की सौगंध दी तब उन्होंने हमें छोड़ा।
श्रवन नासिका काटैं लागे।
राम सपथ दीन्हे हम त्यागे।।
रावण के दूत सुक ने रावण को बताया ।
नाथ राम जी की सेना में अतुलित बलशाली योद्धा है।
मेरा कहना मानो।
श्री जानकी जी को रघुनाथ जी को दे दीजिए।
जनकसुता रघुनाथहि दीजे।
एतना कहा मोर प्रभु कीजे।।
बढ़ी अद्भुत बात है।
सुक जो रावण का दूत था ।
जब उसने जाकर श्री राम जी की महिमा देखी। रामजी के दर्शन किए तो निष्कपट हो गया।
निष्कपट होने के कारण उसे भी सब में हनुमान जी की भांति प्रभु के दर्शन होने लगे।
रावण को भी वह प्रभु कहकर संबोधित कर रहा है।
यही राम जी की महिमा है। निष्कपट होने पर सारी सृष्टि राममय दिखाई देती है।
अपने ही गुप्तचर के द्वारा
रामजी की प्रशंसा सुनाने के अपराध के कारण
रावण ने अपने सुक मंत्री को लात मार कर भगा दिया।
अगस्त मुनि के श्राप के कारण सुक राक्षस हुआ था।
रावण के द्वारा लात मार कर भगा दिए जाने के पश्चात
वह पुनः अपने मुनि के स्वरूप में आ गया।
श्री राम जी की वंदना करने लगा और अपने आश्रम को चला गया।
इधर प्रभु श्री राम जी को समुद्र से प्रार्थना करते हुए 3 दिन बीत गए।
किंतु समुद्र पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
तब श्री राम जी ने क्रोध करते हुए अपने धनुष पर बाण का संधान किया।
यह प्रसंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।