जब सुग्रीव जी ने राम जी से कहा।
प्रभु यह जो आ रहा है वह रावण का भाई है ।शत्रु का भाई है
इस पर हमें विश्वास नहीं करना चाहिए।
मेरा मत यह है कि,हम
इसे बांध कर रखेंगे ।
श्री राम जी ने कहा अवश्य मित्र, तुम्हारा विचार उत्तम है
हम इसे बांधकर ही रखेंगे।
श्री राम जी का आशय था कि इसे हम रस्सी से नहीं बांधेंगे।
इसे हम अपने ह्रदय से बांधकर रखेंगे।
सुग्रीव जी तो प्रशन्न हो गए ,
कि चलो प्रभु ने मेरा सुझाव मान लिया।
दुश्मन के भाई के साथ यही व्यवहार होना ही चाहिए।
किंतु हनुमान जी चिंतित हो गए।
जब राम जी ने यह कहा तो हनुमान जी राम जी के मुख की ओर देखने लगै।
हनुमान जी को लगा। क्या प्रभु सही में इसे बांधकर रखेंगे?
क्या राम जी विभीषण जी को नहीं जानते हैं?
प्रभु की लीला कुछ समझ में नहीं आ रही है?
किसी ने हनुमान जी से कहा ।
कि जब सुग्रीव जी को विभीषण जी के ऊपर इतना संदेह है तो
तुम विभीषण के बारे में रामजी को बताते क्यों नहीं हो ?
कि यह कौन है?
इसका उद्देश्य क्या हो सकता है ?
तुम तो लंका में गए हो। और विभीषण जी से मिले भी हो।
विभीषण जी के सम्बन्ध में तो तुम्हें पूर्ण जानकारी है।
बताओ प्रभु को।
हनुमान जी बोले प्रभु को बताने की आवश्यकता नहीं है।
प्रभु सब जानते हैं ।
हनुमान जी को चिंतित जानकर श्री राम जी ने कहा हनुमान। चिंता मत करो।
सुग्रीव जी का स्वभाव सदा से संकुचित रहा है ।
इन्होंने हमारा भेद लेने के लिए तुम्हें भेजा था।
तुम हमारा भेद लेने आए थे ।
जब तुमने हमारा भेद लिया ।
और हमारा तुम्हारा परिचय हुआ तो तुम मेरे भक्त निकले ।
इसी तरह यदि विभीषण हमारा भेद लेने आ रहा है।
तो यह भी हमारा भक्त ही होगा।
सुग्रीव जी को अपने आप में विचार करना चाहिए।
कि इन्होंने तुम्हें हमारा भेद लेने भेजा।तो उनके अनुसार वह उचित था ।
और यदि कोई और भेद लेने जैसा काम करें तो उनके अनुसार वह अनुचित है। सुग्रीव जी कह रहे हैं कि, किसी का भेद जानना
अच्छी बात नहीं है।
तो फिर इन्होंने हनुमान को क्यों भेजा था हमारा भेद लेने?
यह सुनकर सुग्रीव जी सकुचा जाते हैं।
राम जी सुग्रीव जी से कहते हैं। मित्र चिंता ना करें ।
यदि यह हमारा भेद लेने आया है तो भी कोई हानि नहीं है ।
क्योंकि हमारे में कोई भेद है ही नहीं ।
तुम ही बताओ?
क्या तुम्हारे और हमारे बीच कोई भेद है ?
क्या अंगद और हनुमान जी के बीच कोई भेद है ?
क्या हमारी वानर सेना और हमारे बीच कोई भेद है?
सुग्रीव जी बोले प्रभु हमारे बीच कोई भेद नहीं है।
राम जी ने कहा ।फिर क्यों चिंता करते हो ।
जब हमारे बीच भेद है ही नहीं
तो यह लेकर क्या जाएगा?
आने दो ।
श्री राम जी बोले,सुग्रीव जी तुम चिंता मत करो।
यदि तुम्हें मायावी राक्षसों का भय है तो इन्हें तो लक्ष्मण
एक ही वाण से समाप्त कर सकते हैं।
*जग महुं सखा निशाचर जेते।*
*लक्ष्मण हनइ निमिष मंहु तेते।*
यदि यह मेरी शरण में आ रहा है शरणागत होना चाहता है तो मैं इसे अपने प्राणों की तरह रखूंगा
*जो सभीत आवा सरनाई।*
*रखिहऊं ताहि प्रान की नाई।।*
श्री राम जी कहते हैं।
जिस पर करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या का पाप लगा हो ।
और यदि वह मेरी शरण में आता है तो मैं उसका त्याग नहीं करता हूं ।
*कोटि बिप्र बध लागहि जाहू।*
*आएं सरन तजऊं नहीं ताहू।।*
और यह विभीषण पापी नहीं हो सकता है ।
क्योंकि पापी का स्वभाव होता है कि उसे मेरा भजन कभी सुहाता नहीं है।और यह तो दिन-रात मेरा भजन सुमिरन करते है।
*पापवंत कर सहज सुभाऊ।*
*भजनु मोर तेहि भाव न काऊ।।*
क्योंकि यदि यह दुष्ट हृदय का होता तो मेरे सामने आ ही नहीं सकता था।
*जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई*
*मोरें सनमुख आव कि सोई।।*
श्री राम जी सुग्रीव जी को समझाते है।
इसे बांधने से मेरा आशय है ।इसे रस्सी से नहीं बांधेगें।
इसे मैं अपने हृदय से बाधूंगा। रस्सी का बंधा हुआ तो छूट सकता है।
किंतु हृदय से बंधा हुआ कभी छूट नहीं पाएगा ।
तुम विभीषण जी को ससम्मान यहां लेकर आओ।
राम जी का आदेश सुनकर अंगद और वीर वानर विभीषण जी को लेकर आए ।
विभीषण जी ने दूर से ही राम जी और लक्ष्मण जी दोनों भाइयों को नेत्र भरकर देखा।
*इसके आगे का प्रशंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*
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