महर्षि पाणिनि भारत मे सबसे बड़े व्याकरणाचार्य में से एक हैं। महर्षि पाणिनि द्वारा दी गई व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है। जिसमे आठ अध्याय और लगभग 4000 सूत्र हैं।
अष्टाध्यायी के प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं। व्याकरण में पाणिनि ने नैरुक्त एवं गार्ग्य संप्रदायों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न किया। पाणिनि ने अपनी " अष्टाध्यायी" की रचना गणपाठ , धातृपाठ ,उणादि, लिंगानुशान तथा फिटसूत्र ये ग्रंथो का आधार ले कर की है।पाणिनि के सूत्रों की शैली अत्यंत संक्षिप्त है। वे सूत्रयुग में ही हुए थे। श्रौत सूत्र, धर्म सूत्र, गृहस्थसूत्र, प्रातिशाख्य सूत्र भी इसी शैली में है किंतु पाणिनि के सूत्रों में जो निखार है वह अन्यत्र नहीं है। इसीलिये पाणिनि के सूत्रों को प्रतिष्णात सूत्र कहा गया है।
पाणिनि ने वर्ण या वर्णमाला को 14 प्रत्याहार सूत्रों में बाँटा और उन्हें विशेष क्रम देकर 42 प्रत्याहार सूत्र बनाए। पाणिनि की सबसे बड़ी विशेषता यही है जिससे वे थोड़े स्थान में अधिक सामग्री भर सके।आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाएं जैसे C, C++,JAVA आदि में प्रोग्रामिंग हाई लैंग्वेज में लिखे जाते हैं। जो अंग्रेज़ी के ही समान होती है। इस प्रकार पूरा कंप्यूटर जगत थ्योरी ऑफ कम्प्यूटेशन पर निर्भर करता है ।
इसी कम्प्यूटेशन पर महर्षि पाणिनि ( लगभग 500 ईसा पूर्व) ने एक पूरा ग्रंथ लिखा था। व्याकरणाचार्य पाणिनि को अब कहा जाने लगा है कि वे पहले सॉफ्टवेयर लेखक थे,जो यद्दपि हार्डवेयर रहित थे। महर्षि पाणिनि द्वारा प्रतिपादित व्याकरण के 400 नियम हैं।
ये नियम इतने तार्किक एवं वैज्ञानिक पद्दति पर आधारित हैं। कि उनकी संरचना पूरी तरह ऐसी लगती है जैसा कि विश्व भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं। व्याकरण मूल रूप से भाषा का संक्षिप्तिकरण होता है,नियमतः तभी निश्चित किया जाता है,जब भाषा विकसित हो गई हो,पाणिनि के व्याकरण द्वारा प्रत्येक शब्द का मूल रूप सहज ही स्पष्ट हो जाता है। यह बिल्कुल कंप्यूटर भाषा कोबोल एवं फोरट्रान जैसी है। किसी अन्य प्राकृतिक भाषा मे ,उदहारण के लिए अंग्रेज़ी में ,बड़ी संख्या में शब्दों का उच्चारण व अर्थ अस्पष्ट होता है। जैसे कि शब्द बैंक " का प्रयोग नदी के किनारे औऱ वाणिजियक/ वित्तीय बैंक के रूप में भी होता है। कंप्यूटर वैज्ञानिक इस प्रकार के भ्रम को उचित नही मानते हैं। वैज्ञानिक उसी भाषा को " प्राकृतिक " कहते हैं, जिसमे भ्रम,दोहरे अर्थ, चूक की संभावना आदि न हो। जिन भाषाओं में ऐसा होता है , वह भाषा प्राकृतिक नही बल्कि कृत्रिम भाषा है।
पाणिनि ने संस्कृत भाषा को पूर्ण, सुस्पष्ट एवं संक्षिप्त बनाया है। व्यज्ञानिको के अनुसार पाणिनि के व्याकरण को ठीक उसी प्रकार सूत्रबद्ध किया जा सकता है। जैसा कि कंप्यूटर द्वारा जनित शब्दावली । भारत,अमेरिका,जर्मनी समेत कई देश के वैज्ञानिक पाणिनि के संस्कृत सूत्रों से एक गणितीय सूत्र तैयार कर रहे जो कंप्यूटर सहजता से समझ जाए, ये क्रांतिकारी शोध आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में चल रहा है अभी। कुछ ही वर्षों में पूरे विश्व को महर्षि पाणिनि के सूत्र से पहली प्राकृतिक भाषा मिल जाएगी ,जिसका उपयोग नासा से लेकर हर क्षेत्र में होगा।
महर्षि पाणिनि के संस्कृत सूत्र के कारण विश्व बहुत जल्द कृत्रिम भाषा से आजाद हो जाएगा। पूरे विश्व के वैज्ञानिक हैरान है कि 2400 साल पहले महर्षि पाणिनि ने कैसे इतने शुद्ध एवं संक्षिप्त सूत्र विकसित किये होंगे ।The M L B D News letter ( A monthly of indological bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को first softwear man without hardwear घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था " Sanskrit software for future hardware " जिसमे बताया गया " प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते पर आज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है। व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं। NASA के वैज्ञानिक Mr.Rick Briggs.ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की।
महर्षि पाणिनि शिव जी के बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र से ज्ञात हुआ की जब शिव जी तांडव करते समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी।
पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार
"पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है" (लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी)।
"पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं"
(कोल ब्रुक)।
"संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है... यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है"
(सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर)
"पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा"।
(प्रो. मोनियर विलियम्स)