भारत में भी अनेकों महिलाओं की डायन समझकर हत्याएं हुई हैं, जो अत्यंत दुखद है। आज भी विभिन्न आदिवासी इलाकों में यह प्रथा देखने को मिलती है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2001 से 2021 तक झारखंड में सबसे ज्यादा,
593 डायन हत्या के मामले सामने आए। ऐसे ही आसाम, बिहार,
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश,
ओड़िशा, आदि स्थानों पर भी डायन हत्या के मामले सामने आए हैं। परंतु अगर यह भारत की संस्कृति होता तो हर जगह से ऐसे मामले आते। लेकिन ऐसा नहीं है! और जहाँ से यह मामले आते भी हैं वहाँ इनकी संख्या बहुत कम है। इसका अर्थ यह हुआ कि उस राज्य के सभी लोग भी ऐसी कुरीति को नहीं मानते। एक ओर जहाँ यूरोप में साल भर में लाखों महिलाओं को डायन समझ कर मार दिया जाता था वहीं दूसरी ओर भारत में 20 वर्षों में सिर्फ कुछ हजार महिलाएं डायन समझ कर मारी गईं। मैं ये नहीं कहता कि सिर्फ इतने से ही आंकड़े हैं तो कोई बात नहीं,
मैं ये कह रहा हूँ कि इतने आंकड़े भी जो आए हैं,
वह भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर नहीं अपितु विदेशी आक्रमणकारियों के कारण आए थे।
यहाँ एक बात सोचने की है कि ज्यादातर मामले इन्हीं क्षेत्रों से ही क्यों आए, भारत के अन्य क्षेत्रों से क्यों नहीं?
भारत के इन्हीं क्षेत्रों में संथाल नमक एक जनजाति रहती थी। जिसे भारत की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति कहा जाता है। ये लोग इन्हीं स्थानों पर रहते थे जहां से सबसे ज्यादा डायन हत्याओं की घटनाएँ सामने आयीं। तो क्या ये लोग डायन जैसी कुरीति में विश्वास करते थे? नहीं!
संथाल जनजाति एक बहादुर और साहसी जनजाति थी। इन्हें नृत्य करना बहुत अधिक पसंद था। ये राजमहल की पहाड़ियों के इर्दगिर्द रहा करते थे। ये जंगल की उपज से अपनी गुजर-बसर करते थे और झूम खेती किया करते थे। ये जंगल के छोटे से हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फूस को जलाकर जमीन साफ कर लेते थे और राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर ये पहाड़िया लोग अपने खाने के लिए तरह-तरह की दालें और ज्वार-बाजरा उगा लेते थे। वे अपने कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरच लेते थे कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन में खेती करते थे और फिर उसे कुछ वर्षों के लिए परती छोड़ कर नए इलाके में चले जाते थे जिससे कि उस जमीन में खोई हुई उर्वरता फिर से उत्पन्न हो जाती थी।
इन्होंने 1855 में कार्नवालिस के स्थायी बंदोबस्त के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। स्थायी बंदोबस्त ईस्ट इंडिया कंपनी और जमींदारों के बीच कर वसूलने से संबंधित एक स्थायी व्यवस्था थी जिसे कार्नवालिस द्वारा 22 मार्च, 1793 को लागू किया गया था। इसी व्यवस्था के कारण संथाल जनजाति के लोगों पर भारी अत्याचार किया गया जिसके कारण मुर्मू समाज के चार भाइयों सिद्धू, कान्हू, चंद और भैरव द्वारा अंग्रेजों के इस कानून के विरोध में विद्रोह किया गया। इस विद्रोह का दमन अंग्रेजों के कैप्टन अलेक्जेंडर ने किया था।
इसी घटना को आधार बनते हुए वामपंथियों ने कहा कि इसी आंदोलन के दौरान संथाल नेताओं ने अनेकों महिलाओं की डायन समझ कर हत्या करी थी। परंतु क्या उनके पास इतना समय था कि एक साथ अंग्रेजों और डायनों, दोनों से लड़ लेते?
अगर दोनों घटनाओं को देखें तो समझ आया कि इस पहाड़ी विद्रोह को खत्म करने के लिए अंग्रेजों द्वारा यह षड्यंत्र रचा गया था। क्योंकि अंग्रेज उनसे ऐसे ही नहीं जीत पाते इसीलिए अपनी कुटिल नीतियों का प्रयोग किया।
अतः हम यह कह सकते हैं कि महिलाओं को डायन समझना भारतीय आदिवासी समाज की कोई परंपरा का हिस्सा नहीं था। यह कलंक भारत के लोगों ने नहीं अपितु विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लगाया गया था। भारत हमेशा से ही सभ्य था, है और रहेगा।
-------●-------
उपसंहार
वह देवियों सी सम्मानित थीं, परंतु अपमानित नहीं।
वह रत्नों सी शोभित थीं, परंतु शोषित नहीं।
ये तो अंग्रेजों का षड्यंत्र समझो, जिन्होंने स्त्री को कमजोर बनाया!
नहीं तो भारतीय स्त्री भी दुर्गा का रूप थीं, जो किसी से कम नहीं।
कृष्णांश अग्रवाल
पुस्तक के अंत में हमारे मन में यह प्रश्न उठना चाहिए कि जितनी भी कुप्रथाएं थीं वह महिलाओं को ही निशाने बनकर क्यों बनाई गईं? क्या पुरुषों के लिए कोई प्रथा नहीं थीं?
भारत में स्त्री और पुरुष दोनों को ही बराबर अधिकार दिए जाते थे और दोनों को ही समान नियमों का पालन करना होता था। कहीं पर भी किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं किया जाता था। परंतु अंग्रेजों द्वारा भारतीय समाज को तोड़ने के लिए भारतीय संस्कृति पर प्रतिघात करना जरूरी समझा गया। अब भारतीय समाज में महिलाओं का बहुत आदर था। स्त्रियों को भारत का स्वाभिमान समझा जाता था, भारत का अभिमान समझा जाता था। संपूर्ण विश्व में भारतीय सभ्यता ही एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ स्त्रियों को भी भगवान माना गया है। इसीलिए भारत की संस्कृति को नष्ट करने के लिए अंग्रेजों द्वारा स्त्रियों को चुना गया। जिस वजह से सभी कुप्रथाएं स्त्रियों को ही निशाना बनाकर बनायी गयी थीं।
ऐसा करने से अंग्रेजों को दोहरा लाभ हुआ। एक ओर तो भारतीय संस्कृति नष्ट हो रही थी क्योंकि समाज को पुरुष प्रधान बताया जा रहा था,
वहीं दूसरी ओर अंग्रेज भारत पर अपना आधिपत्य जमाने में सफल होते जा रहे थे।
और वह अपने कार्य में इतने सफल हुए कि उनके द्वारा किए गए विक्षेपों की छाया आज भी भारतीय इतिहास और संस्कृति में दिखाई देती है। जैसे आपने देखा होगा कि जितनी भी गालियां आज दी जाती हैं वह सभी महिलाओं को ही सन्दर्भित करते हुए क्यों दी जाती हैं?
इसका कारण भी यही है कि अगर किसी को क्षति पहुंचानी हो तो उसके सम्मान की ठेस पहुंचाओ। स्त्रियाँ भारत का सम्मान थीं इसीलिए अंग्रेजों द्वारा उन्हीं को निशाना बनाया गया। और हमें भी इस बात को समझने की जरूरत है कि जिन्होंने हमारा शोषण किया था उन्हीं के द्वारा लिखित इतिहास पर हम भरोसा कैसे कर सकते हैं।
हमें अपने इतिहास को बदलने की आवश्यकता है,
उसका संशोधन करना आज हमारी जरूरत है!