औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों को अपने आधीन बनाने की कोशिश करी। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के लिए अधिक भूमि थी, इसीलिए ग्रामीण लोगों को उन्होंने मनाना चाहा परंतु वे नहीं माने। जिसके कारण अंग्रेजों ने उनके मन में एक दूसरे के प्रति हीन भावना उत्पन्न करना शुरू किया। अब गांव के लोग ठहरे भोले-भाले, आ गए अंग्रेजों की बातों में! अगर अंग्रेज ग्रामीण लोगों से युद्ध लड़ते तो मुँह की खाते क्योंकि ग्रामीण लोगों की ताकत तो उनके खान-पान से ही झलकती है। इसीलिए उन्होंने उनके भोलेपन का फायदा उठाया। अंग्रेजों ने जो डायन यूरोप की निर्दोष महिलाओं में देखी थी, उन्हें वही डायन भारतीय महिलाओं में भी दिखी। जिसके कारण उन्होंने गाँव के लोगों के मन में यह विचार डालना शुरू कर दिया और उनके मन में एक डर बैठा दिया, जिसके कारण ग्रामीण लोगों को भी समाज की महिलाओं में डायन नजर आने लगी। और वहीं से इस कुरीति की शुरुआत हुई।
अंग्रेजों द्वारा कहा गया कि भारतीय समाज अंधविश्वास में फँसा हुआ था, इसीलिए वहाँ महिलाओं को डायन मानने जैसी कुरीतियां शामिल थीं। अब प्रश्न यह उठता है कि जिस समाज में प्रत्येक वस्तु का सटीक तर्क सही तथ्य सहित दिया जाता था, वह समाज अंधविश्वासी कैसे हो गया?
अंधविश्वास का अर्थ होता है किसी पर भी बिना सोचे समझे विश्वास कर लेना, अर्थात किसी पर भी आंख बंद करके विश्वास कर लेना अंधविश्वास होता है। परंतु भारतीय संस्कृति में तो हर कार्य के पीछे कोई ना कोई तर्क अवश्य दिया जाता था और वो भी तथ्यों के साथ। बिना तथ्यों के तो आज तक भारतीय ऋषि मुनियों ने बात नहीं की! तो फिर ये कहना कि भारतीय अंधविश्वासी थे, कुछ हजम नहीं होता। अब लुटेरों की सभ्यता से आने वाले को क्या ही पता कि सभ्य समाज किसे कहते हैं, जैसा उन्होंने अपने यहाँ देखा था वही उन्होंने यहाँ देखा। इसमें आश्चर्यचकित होने वाली बात क्या है!
वामपंथियों द्वारा कहा गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अगर कोई बीमार हो जाता था तो वह झोला छाप चिकित्सकों के पास जाते थे जो उन्हें अंधविश्वास की राह में धकेल देते थे। अब प्रश्न उठता है कि भारतीय चिकित्सक क्या सच में झोला छाप चिकित्सक थे?
इस बात का उत्तर तो स्वयं अंग्रेज देते हैं! इन्हीं का एक सिपाही था कर्नल कूट जिसकी हैदर अली ने नाक काट दी थी क्योंकि उस समय मुगलों का भी भारत पर आधिपत्य था इसीलिए कभी-कभी अंग्रेजों का सामना इनसे भी हो जाता था। जब कर्नल कूट की नाक काट दी गई तो वह बहुत दिनों तक तो ऐसे ही घूमता रहा। फिर कुछ दिनों बाद उसे एक व्यक्ति मिला जिसने उसे दिलासा दिलाते हुए कहा कि तेरी कटी हुई ना को तो मैं ही जोड़ सकता हूँ। और फिर 30 दिनों के बाद उस व्यक्ति की नाक जुड़ भी गई। जिस व्यक्ति ने उसकी नाक जोड़ी वह नाई समुदाय से था,
जिसे आज हम पिछड़ा मानने हैं!
3 महीने बाद जब वह UK की संसद में पहुंचा तो वहाँ पर उसने बताया कि भारत में ऐसी भी विद्याएं हैं तो अंग्रेजों को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह भी इन विद्याओं को सीखने के लिए भारत आए। और उन्हें पता चला कि ऐसी विद्या भारत के हर गाँव में सिखाई जाती है। 1792 के दशक में जब थॉमस क्रूस नामक एक अंग्रेज भारत में शल्य चिकित्सा की विद्या सीखने आया तब उसने अपनी डायरी में बताया कि उसके गुरु भी नाई जाति के थे। उसने अपने गुरु के सानिध्य में एक मराठा सैनिक के दोनों हाथ जोड़ दिए जिसके दोनों हाथ कटे हुए थे। उसने यह विद्या बिलकुल निशुल्क सीखी थी। और ये अंग्रेज कहते हैं कि भारत में अनुभवी चिकित्सकों की कमी थी। और हम भारतीय मान भी लेते हैं।
अंग्रेजों द्वारा यह कहा गया कि डायन प्रथा के कारण निचली जाती कि महिलाओं को ही प्रताड़ित किया जाता था। अब प्रश्न वही उठता है कि भारत में तो ऊंच नीच के आधार पर कोई जातियाँ थी ही नहीं तो जिन महिलाओं पर अत्याचार हुआ वो निचली जाती कि कैसे हो गईं?
इस प्रश्न का उत्तर हम पिछले अध्याय में देख चुके हैं। भारतीय समाज को बांटने के लिए ही अंग्रेजों द्वारा ये जन्म आधारित जातियाँ बनाई गईं थीं। अब समाज को तोड़ने के लिए कुछ ना कुछ तो तिकड़म लगानी पड़ती! इसीलिए नीची और ऊंची जातियाँ बनाकर उच्च जाति के लोगों के मन में निचली जाति के लोगों के प्रति हीन भावना उत्पन्न कर दी। इसके लिए उन्होंने धर्म की आड़ लेकर अपने द्वारा ही बनाई गईं उच्च जाति के लोगों से ये कह दिया कि भारत में तो निचली जातियाँ जादू टोना करती हैं। और निचली जातियों के लोगों से ये कहता दिया कि उच्च जाति के लोग तुम्हारे अत्याचार करते हैं। जिसके कारण लोगों के मन में ऐसी फूट पड़ी कि वह आज तक चली आ रही है।
अंग्रेजों द्वारा बताया गया कि डायन प्रथा का अधिकतर शिकार महिलाएं ही होती थीं। अब प्रश्न उठता है कि महिलाएं ही क्यों पुरुष क्यों नहीं?