क्या नारियों को डाकन या डायन कहना और फिर उनकी हत्या कर देना भारतीय संस्कृति का हिस्सा था?
ये डायन प्रथा जैसी कुरीति भारत जैसे समृद्धिशाली देश में कहाँ से आयी?
क्या यह भी अंग्रेजों द्वारा भारत को गुलाम बनाये रखने के लिए चली गयी कोई चाल थी?
भारतीय समाज की तथाकथित डायन
सर्वप्रथम हमें जानना चाहिए कि डायन प्रथा थी क्या और यह सिर्फ आदिवासी इलाकों तक ही सीमित क्यों रह गई?
वामपंथियों द्वारा जो झूठ फैलाया गया था वह सिर्फ सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए तथा भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए था। उसका वास्तविकता से कोई मतलब नहीं था। और जैसा कि कहते हैं कि झूठ अगर बार-बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है। और लोगों ने सच ऐसा माना कि वह भी इस षड्यंत्र में फंस गए और अनेकों स्त्रियों को कला जादू के आरोप में सजा दी गई,
जैसे उन्हें जिंदा जला दिया गया,
मारा गया पीता गया,
और अनेकों प्रकार के वीभत्स यातनाएं उन निर्दोष महिलाओं को झेलनी पड़ी। अंग्रेजों और उनकी विचारधारा से प्रेरित तथाकथित वामपंथी समाज सुधारकों द्वारा कहा गया कि, “भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जादू-टोने जैसी अंधविश्वास की गतिविधियों में संलग्न रहते थे।
जब गाँव में फसल की पैदावार अच्छी नहीं होती थी,
किसी परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती थी, या किसी के परिवार में बच्चे का स्वास्थ्य खराब हो जाए या कोई व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाए, तो ऐसी स्थिति में ग्रामीण लोग इन सारी घटनाओं का जिम्मेदार किसी निचली जात की महिला ठहरा देते थे।
और उस महिला को डायन कहकर अनेकों यातनाएं दी जाती थीं। जैसे उल्टा लटका के मारना,
आंखों में मिर्च डाल देना, पेड़ से बांधकर पीटना आदि। इस अंधविश्वास का अधिकतर शिकार महिलाएं ही होती थीं, खासकर निचली जात की महिलाएं!”
हमारे झूठे इतिहास में बताया गया कि, “अगर किसी व्यक्ति के पड़ोस में कोई निचली जात का परिवार रहता था,
और उस व्यक्ति के साथ कोई अनहोनी हो जाती थी तो उसका सारा दोष उसी परिवार के माथे थोप दिया था। ऐसे आरोप अधिकतर इसीलिए लगाए जाते थे ताकि उस परिवार की सम्पत्ति पर कब्जा किया जा सके”।
पेड़ से उल्टा लटकाकर तथाकथित डायन को तड़पाना
अब षड्यंत्र देखिए किस स्तर तक का रचा गया था। वामपंथियों द्वारा ये कहा गया कि, “भारत में इसका कोई लिखित इतिहास तो नहीं मिलता क्योंकि ऐसे कार्य गाँव के लोगों द्वारा भीड़ में किए जाते थे और इसका किसी सरकारी दस्तावेज में उल्लेख भी नहीं दिया जाता था”। अब इनसे कोई पूछे कि तुमनें जिस इतिहास को विक्षिप्त किया था,
वह भी तो लिखित में था! अगर लिखित में अभिलेख थे ही नहीं तो तुमनें विक्षेपण कैसे कर दिए? मतलब इतिहास में ऐसी कोई घटना मिली ही नहीं तो तुमनें ये कह दिया कि भारत में लोग लिखित अभिलेख रखते ही नहीं थे! क्या दिमाग पाया है इन वामपंथियों ने।
यहाँ एक बात सोचने वाली है कि वामपंथियों ने अगर भारत में ऐसी कहानियाँ बनाई हैं तो कहीं ना कहीं तो उन्होंने ऐसा देखा होगा। इतना दिमाग तो था नहीं की अपने मन से कोई भी कहानी बना दें। बिलकुल! उन्होंने ऐसा देखा था, भारत में नहीं बल्कि खुद ही के देश यूरोप में! और ये मैं नहीं कह रहा बल्कि यह तो नैशनल कैथौलिक रिपोर्टर में 25 अक्टूबर,
2017 में दिया गया एक लेख कह रहा है। इसमें लिखा है कि,
"1450 से 1750 के दशक में सम्भवतः 1,00,000 से अधिक चुड़ैलों को मारा गया था"। और सबसे अधिक महिलाएं ही इसका शिकार बनती थीं। यह बात सिर्फ एक लेख में नहीं अपितु अनेकों लेखों में यही बात लिखी हुई है।
“The Witch Hunt in Early Modern Europe” नामक पुस्तक में ब्रायन प. लेवाक लिखते हैं कि लगभग 1450 से लेकर 1750 के दशक में, अर्थात यूरोपीय इतिहास के आरंभिक आधुनिक काल में, हज़ारों महिलाओं को डायन के आरोप में मार डाला गया था। वह आगे लिखते हैं कि 16 वी सदी के अंत तक अनेकों शिक्षित यूरोपीय नागरिकों का मानना था कि डायन न केवल खतरनाक जादू करती हैं, अपितु वह अनेकों प्रकार की शैतानी गतिविधियों में भी लिप्त रहती हैं।
“Berkeley Law” के अनुसार आरम्भिक आधुनिक यूरोप में डायन पकड़ने की प्रक्रिया में दो लहरें आईं, पहली लहर 15 वी एवं शुरुआती 16 वी शताब्दी में आई और दूसरी लहर 17 वी शताब्दी में आई जिसमें डायनों को समूचे यूरोप में देखा गया था। परन्तु सबसे अधिक डायनों को दक्षिण पश्चिमी जर्मनी में देखा गया था, जहाँ पर 1561 से लेकर 1670 तक सबसे ज्यादा 90,000 डायनों को पकड़ने और मारने के सिलसिले सामने आए। परंतु भारतीय इतिहास में ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं मिलता जिसमें ऐसी कोई घटना घटी हो जिसके कारण किसी महिला को डायन समझ कर प्रताड़ित किया गया हो।
तो फिर भारतीय इतिहास में आज हम इस घटना को क्यों पढ़ रहे हैं?
अंग्रेजों ने भारत पर अपना आधिपत्य, युद्ध के द्वारा नहीं अपितु भारतीय संस्कृति को नष्ट करके जमाया था। भारत का ऐसा कोई भी राज्य नहीं था जिसे अंग्रेजों ने युद्ध में जीता हो। उन्होंने प्रत्येक राज्य में संधि की थी वह भी चालाकी से। पहले उस राज्य को अपनी नीतियों से कमजोर किया और फिर उस पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए संधि की और उनकी यही चालाकी हर जगह दिखाई देती है। उन्होंने समाज को कमजोर करने के लिए “फूट डालो राज करो” की नीति को अपनाया। अंग्रेज यह भली-भांति जानते थे कि भारत अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है, भारत अपने इतिहास के लिए जाना जाता है। और अगर भारत पर अपना आधिपत्य जमाना है तो उसकी संस्कृति,
उसके इतिहास को मिटाना पड़ेगा। Pइसलिए उन्होंने प्रत्येक स्थान पर फेरबदल किए चाहे वह भारतीय इतिहास हो या भारतीय संस्कृति।
अगर हम डायन प्रथा के इतिहास को देखें जो अंग्रेजों और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा हमें बताया गया, तो कुछ तथ्यों पर हमें ध्यान देना चाहिए जो डायन प्रथा के इतिहास को सही बताने तथा सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए प्रयोग में लाए गए थे।
अंग्रेजों द्वारा दिए गए प्रत्येक तथ्य के पीछे गहरी कूटनीति थी जिसके तहत उन्होंने भारतीय समाज को आपस में बाँटकर तोड़ा था। उन सभी तथ्यों पर हमें प्रश्न करने चाहिए। जैसे कि:-
हमें बताया गया कि डायन प्रथा ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती थी। अब प्रश्न यह उठता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ही क्यों शहरी क्षेत्रों में क्यों नहीं? जिन ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती-बाड़ी में संलग्न रहते थे, उन ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के पास इतना समय था क्या, कि वह किसी को डायन बताकर उसे प्रताड़ित करें?